आज कुछ अधिक व्यस्त हूं.....
इस लिये बिना भूमिका के ही.....
आज की प्रस्तुति का आरंभ....
मेरी प्रिय पंजाबी कवयित्रि अमृता प्रीतम जी की चंद पंक्तियों के साथ.....
आज मैंने अपने घर का नम्बर हटाया है
और गली के माथे पर लगा
गली का नाम हटाया है
और हर सड़क की
दिशा का नाम पोंछ दिया है
पर अगर आपको मुझे जरुर पाना है
तो हर देश के
हर शहर की
हर गली का
द्वार खटखटाओ
यह एक श्राप है
एक वर है
और जहाँ भी
आज़ाद रुह की झलक पड़े
समझना वह मेरा घर है
क्यों नहीं कहती झूठ है यह
बेटी बोझ नहीं कंधे का,
जनमानस को यह दिखलाओ तुम,
कर्मठ कर्मों का दीप जला,
परिस्थितियों को पैनीकर राह जीवन में बना,
हालात का बेतुका बोझ नहीं दिखलाओ तुम,
कफ़न का उजला रंग शर्माएगा,
सूर्य-सी आभा घर-आँगन में,
धरा के दामन में फैलाओ तुम |
झील
किसी ने ज़मीं और बादल के , बीच में आकर मारा
किसी ने खोल दिया नौकाओं का एक अनोखा सा शहर,
किसी ने सब ख़त्म करने का , एक आखिरी मोहर मारा
"नील " इस झील के उस पार ही इसकी मर्ज़ों की दवा होगी ,
ऐसा लगता है कि इस पार तो वक्त ने हर चारागर मारा
चिड़िया का हमारे आँगन में आना :
तरस जाए आज के समय में हो रहे शहरीकरण की मार भी सीधे रुप से इन्हीं पर पड़ी है। जिसकी वजह से घरेलू चिड़ियों की संख्या दिनों-दिन घटती जा रही है और घरेलू चिड़ियों का अस्तित्व लगातार संकट में है। जब से खेती में नई-नई तकनीकें प्रयोग में आई हैं, खेतों में उठने-बैठने वाली घरेलू चिड़ियों पर भी बुरा असर पड़ा है।
आंवले की पाचक एवं स्वास्थ्यवर्धक गटागट ( digestive amla gatagat )
आंवले को हर मर्ज की दवा माना जाता हैं। इसलिए ही आंवले को अमृतफल कहा जाता हैं। आंवला हमारे दाँतों और मसूड़ों को स्वस्थ और मजबूत बनाता हैं। स्नायु रोग, हृदय की बेचैनी, मोटापा, ब्लडप्रेशर, गर्भाशय दुर्बलता, नपुंसकता, चर्मरोग, मुत्ररोग एवं हड्डियों आदि रोगों में आंवला बहुत ही उपयोगी होता हैं। ऐसे उपयोगी आंवले से आज हम बनायेंगे आंवले की खट्टी-मिठ्ठी, पाचक और स्वास्थ्यवर्धक गटागट। ये गटागट तुरंत बन जाती हैं क्योंकि इन्हें धूप में भी सूखाना नहीं पड़ता। तो आइए बनाते हैं, आंवले के पाचक और स्वास्थ्यवर्धक गटागट...
बरगद
एक बड़ा सा आसमां
जहाँ वो अपनी जड़े फैला सके
लंबी उड़ान भर सके
वो खूद बरगद है
चाहती है
हथेली पर अंकुरित
नन्ही पौध को बरगद बनाना
यात्रा
वर्तमान राजनीति ने इंसान से उसका ह्रदय छीन परस्पर द्वेष और घृणा करना ही सिखाया है। ये देशभक्ति नहीं सिखाती बल्कि देशवासियों को आपस में लड़ाने का कार्य करती है।
सार यह है कि राजनीति मनुष्य को तोड़ने का काम करती है और यात्रा जोड़ने का।
जिन्दगी मैंने कब क्या कहा तुझसे
शायद बहना ही मेरी जिन्दगी रही ,
मेरी मिठास पर भी थोडा अकड ले ,
शायद ये दौर ही है आदमी का यहा,
किस के सामने दुःख ले बैठी मैं यहा,
यहा तो प्यास बुझाने की होड़ लगी है ,
आँचल को मैं खुद मैला कर बैठी यहा
पर्व, प्रगतिशीलता और हम
सोचती हूँ पिछले दो दशकों में जितनी तेजी से हम धार्मिक अनुष्ठानों, पर्वों के प्रति सक्रिय हुए हैं, जितनी तेजी से इन अनुष्ठानों ने राज्यों की, वर्गों की सीमायें पार की हैं अपनी महत्ता के आगे सरकारों को नत मस्तक कराया है काश उतनी ही तेजी से धर्मों की, जातियों की ऊंच-नीच की बेड़ियाँ तोड़ने, एक-दूसरे के प्रति
संवेदनशील होने की ओर अग्रसर भी हुए होते. धर्म, संस्कृति और पर्व अब सब किसी और के कंट्रोल में हैं वो जो जानते हैं इसकी यूएसपी. कि कैसे इनका इस्तेमाल किया जा सकता है. धर्मों का सकारात्मक इस्तेमाल करना आखिर कब सीखेंगे हम. मुझे लगता है इसकी कमान स्त्रियों को अपने हाथ में लेनी होगी.
धन्यवाद।
या घर या गली और यह संसार ना मेरा है ना तेरा है ,चिड़िया रैन बसेरा है..
जवाब देंहटाएंआपने अमृता प्रीतम की चंद पँक्तियों को हम पाठकों के समक्ष रखा, चिंतन शक्ति को गति दी , इसके लिए आभार। आप की भूमिका प्रस्तुति में सबसे अलग होती है। उसे उसे न पाकर अवश्य निराशा हुई है। लेकिन ,जैसा कि आपने पहले ही लिखा है कि अतिव्यस्तता के कारण ऐसा नहीं कर सका । बहरहाल, आप एवं सभी रचनाकारों को प्रणाम एवं धन्यवाद।
यह घर और यह गली पढ़ा जाए
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअमृता जी की कविता डालने के लिए धन्यवाद। उस समृद्ध कलम के लिए हमारा सम्मान है। मेरी रचना को चुनने के लिए धन्यवाद। सादर - नील
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी links
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तूति। मेरी रचना को पांच लिंकों का आनंद में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, कुलदीप भाई।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात एवं प्रणाम,
जवाब देंहटाएंएक रचना का अंश आपकी नज़र करना चाहता हूं....
हर वो दौर बदला जाएगा
जो हद्द से गुजारा जाएगा
जो लीक पिट रहे सदियों से
अब गुजरा जमाना पुकारा जाएगा
अलग न कोई बस्ती होगी मेरी
रह कर ही दलदल में
कवँल खिलाया जाएगा,
होगा मंजूर अगर
मुझे नकारा पुकारा जाएगा
हमें साथ चलना है
हमसफ़र बनकर
हों विचार मिले आपसे मगर
ये जरूरी तो नहीं
मेरी कहानी कुछ और है
आपको ही उस कहानी का
किरदार बनाया जाएगा
मुझे मंजूर कुछ और है
कुछ दिन साथ रहेंगे दुश्मनों की तरह
फिर बगैर साथ पल भी रायगाँ जाएगा
होके रहेगा कुछ तो देखा जाएगा।
हर वो दौर बदला जाएगा
जो हद्द से गुजारा जाएगा .....
अमृता प्रीतम जी का वो मकां हम भी ढूंढ रहे है मगर मिल ही ना रहा। हर जगह हताशा, निराशा हाथ लगती है।
जिस भी गली गया मैं पाया कि किस मोटे सिरिये की जंजीर से बंधी पड़ी है स्त्री इस दौर की। कई गांव तो ऐसे हैं जहां जूती की नोक के नीचे की रेत समझी जाती है। कितनी ही स्त्रियां मजबूरी की सांस लेती लेती मर गयी, मरती जा रही है और मरती रहेगी। इतने घिनोने समाज में कोई खुश कैसे रहे, कोई खुशियां कैसे मना सकता है। मुझ से नहीं होता सहन अब। जॉन साहब का शेर है कि
" क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में
जो भी ख़ुश हैं हम उससे जलते हैं"
जब मैं इन चूड़ियों को देखता हूँ ना तो लगता है
ये सृंगार में बहुत बाद में जुड़ी होगी
पहले पहल तो ये हथकड़ियां रही होगी
बाद में इसे स्त्री द्वारा ही स्वीकार कर लिया गया होगा
कि यही हमारा नसीब है
और बन गयी हथकड़ियां हाथों की चूड़ियां
कितनी ही शक्तियों की कब्र बनकर।
यही हाल पैरों का है
घर से बाहर निकलने पर रोक लगाने के लिए
डाल दी होगी पैरों में बेड़ियां
और स्त्री इसे ही नसीब समझ बैठी होगी
और बन गयी बेड़ियां पैरों की पायल.... कितनी ही मंजिलों की चाहत को चाहत ही रखने का यंत्र।
पुरुष ने कोई कसर नहीं छोड़ी स्त्री के सुंदर रूप को कुरूप बनाने में ताकि वो अपना हक्क उस पर कायम रख सके... उसने इसके कान छिदवाए, नाक छिदवाए और फिर भी इसका सौंदर्य कम नहीं हुआ तो चुनरी बनाई जो किसी तिरपाल से कम नहीं...
आज समझदार स्त्री भी बोझ रहित नहीं होना चाहती जैसे पुरुष रहता है सदियों से। गुलामी की आदत जो खून में रचा दी गयी है इसके।
अब बस....
हर वो दौर बदला जाएगा....
सुन्दर प्रस्तुति कुलदीप जी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति ,सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सर
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकरो को हार्दिक बधाई, मेरी रचना को स्थान देने के लिये तहे दिल से आभार आपका
सादर