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वाद-विवाद में विष घना ,बोले बहुत उपाध
सकारात्मकता उत्सर्जित करती है।
आइये सर्वप्रथम आस्वादन करते हैं
दो कालजयी रचना का-
★★★★
स्मृतिशेष हरिवंशराय बच्चन
मौन और पीड़ा
एक दिन मैंने
मौन में शब्द को धँसाया था
और एक गहरी पीड़ा,
एक गहरे आनंद में,
सन्निपात-ग्रस्त सा,
विवश कुछ बोला था;
सुना, मेरा वह बोलना
दुनिया में काव्य कहलाया था।
★★★★
स्मृतिशेष सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
मौन
मौन मधु हो जाए
भाषा मूकता की आड़ में,
मन सरलता की बाढ़ में,
जल-बिन्दु सा बह जाए।
★★★★
उदाहरण में दी गई रचना
......
अब आई हुई रचनाएँ..
मौन ...
मेरे मौन को तुम मत कुरेदो !
यह मौन जिसे मैंने धारण किया है
दरअसल मेरा कम और
तुम्हारा ही रक्षा कवच अधिक है !
इसे ऐसे ही अछूता रहने दो
आदरणीय आशा सक्सेना
है मौन का अर्थ क्या ?
तुम मौन हो
निगाहें झुकी हैं
थरथराते अधर
कुछ कहना चाहते हैं |
प्रयत्न इतना किस लिए
मैं गैर तो नहीं
सुख दुःख का साथी हूँ
हम सफर हूँ |
आदरणीय अनुराधा चौहान
मौन(गीत)
मेरे इस मौन निमंत्रण को,
नहीं ठुकरा देना तुम।
कहीं लोगों की बातों में,
न मुझको भूल जाना तुम।
चले आना ना रुकना तुम,
न कहना कि बंदिशें हैं।।
आदरणीय सुजाता प्रिय
मौन भाषा....
भाषा तो
बहुत है दुनियाँ में,
मौन भाषा की महिमा ही अलग।
न अक्षर
इसके ना मात्राएँ,
फिर भी इसकी गरिमा ही अलग।
आदरणीय मीना शर्मा
लावारिस लाश ....
मौन की सड़क पर
पड़ी रही एक रिश्ते की
लावारिस लाश रात भर !!!
आँसुओं ने तहकीकात की,
राज खुला !
किसी ने जिद और अहं का
छुरा भोंककर
किया था कत्ल उस रिश्ते का !
आदरणीय अभिलाषा चौहान
मौन-मनन
मौन
श्रेयस्कर हो सदा
यह उचित कैसे भला
मौन में समाहित
अथाह वेदना
भीरूता का अंश घुला
मौन की भाषा
कौन पढ़ सकता भला
आदरणीय अनीता सैनी
मौन में फिर धँसाया था मैंने उन शब्दों को
पूनम की साँझ में
मृदुल मौन बनकर वे
पराजय का
दुखड़ा भी न रो पाये
तीक्ष्ण असह वेदना
से लबालब
अनुभूति का जीवन
जीकर
पल प्रणय में भी नहीं खो पाये
आज का हमक़दम आपको कैसा लगा?
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहती है।
हमक़दम का नया विषय जानने के लिए
कल का अंक पढ़ना न भूलें।
★★★★★
एक प्रश्न
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बस शब्दों के मौन हो जाने से
न बोलने की कसम खाने से
भाव भी क्या मौन हो जाते है??
नहीं होते स्पंदन तारों में हिय के
एहसास भी क्या मौन हो जाते है??
एक प्रतिज्ञा भीष्म सी उठा लेने से
अपने हाथों से स्वयं को जला लेने से
बहते मन सरित की धारा मोड़ने से
उड़ते इच्छा खग के परों को तोड़ने से
नहीं महकते होगे गुलाब शाखों पर
चुभते काँटे मन के क्या मौन हो जाते है??
ख्वाबों के डर से न सोने से रात को
न कहने से अधरों पे आयी बात को
पलट देने से ज़िदगी किताब से पन्ने
न जीने से हाथ में आये थोड़े से लम्हें
वेदना पी त्याग का कवच ओढकर
अकुलाहट भी क्या मौन हो जाते है??
#श्वेता सिन्हा
बेहतरीन संग्रहणीय अंक..
जवाब देंहटाएंश्रम को नमन..
सभी को शुभकामनाएँ..
सादर...
मौन पर सराहनीय रचना आईं
जवाब देंहटाएंसभी को साधुवाद
शुभ प्रभात 🙏 बहुत सुंदर लिंक्स, बेहतरीन रचनाएं, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्वेता जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचनाएं |
जवाब देंहटाएंमेरी रचना "मौन का अर्थ क्या " शामिल करने के लिए आभार श्वेता जी |
वाह!!बेहतरीन प्रस्तुति !!सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति प्रिय श्वेता दी.
जवाब देंहटाएंमुझे स्थान देने हेतु तहे दिल से आभार.
सादर
अति उत्तम प्रस्तुति प्रिय श्वेता
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सूत्रों का चयन ! हर रचना के पार्श्व से मौन की मुखरित होती ध्वनि मन को छू जाती है ! सभी रचनाएं अनुपम ! सभी रचनाकारों को मेरा सादर अभिनन्दन ! मेरी रचना को आज की इस विशिष्ट प्रस्तुति में स्थान देने के लिए आपका हृदय ताल से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमौन को परिभाषित करती श्रेष्ठ रचनाएं,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार सखी सादर 🙏🌷😊
मौन को परिभाषित करती सुंदर संकलन प्रिय श्वेता | मौन आन्तरिक ऊर्जा को संग्रहित करने की सर्वोत्तम क्रिया है | मौन वाचालता के प्रवाह में कही गयी अनावश्यक बातों से हमारी रक्षा करता है तो वहीँ कुछ कहने को सीमित कर बाहुत प्रेरक और अनमोल कर देता है |
जवाब देंहटाएंदो पंक्तियाँ मेरी भी -
मौन प्रखर है , मौन मुखर है ,
मौन में सब रंग मिलते
मौन भाव की सृजन भूमि जहाँ फूल सृजन के खिलते |
सभी रचनाकारों को बधाइयाँ इस विशेष आयोजन का हिस्सा बनने के लिए |
बस शब्दों के मौन हो जाने से
जवाब देंहटाएंन बोलने की कसम खाने से
भाव भी क्या मौन हो जाते है??
नहीं होते स्पंदन तारों में हिय के
एहसास भी क्या मौन हो जाते है??
इस प्रश्न के बाद मौन की व्याख्या करने को और कुछ कहाँ बचता है ? दिनभर जरूरी काम से बाहर रही। वास्तव में अभी अन्य रचनाएँ पढ़ी ही नहीं हैं।
अंक में रचनाओं की मुख्य पंक्तियाँ दर्शा रही हैं कि सभी रचनाएँ पठनयोग्य हैं। अवश्य पढ़ूँगी कल। सादर एवं सस्नेह आभार मुझे इस विशेषांक का हिस्सा बनाने हेतु.....
शुरू से आखिर तक शानदार ,मौन पर विविध दृष्टिकोण देती सार्थक सुंदर रचनाएं अंत में सापेक्षिक प्रश्र, सुंदर संकलन सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
एक से बढ़कर एक बेहतरीन रचनाएँ ,भूमिका से समापन तक लाजबाब प्रस्तुति ,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंहर रचना कुछ कहती है