शुक्रवारीय अंक में आप सभी का हार्दिक अभिनंदन है।
राजस्थान के सबसे बड़े खारे पानी के सांंभर झील
प्रवासी पक्षियों की कब्रगाह बन गयी अब तक करीब
18,000 पक्षियों की मौत हो चुकी है।
सैकड़ों मील दूर, महाद्वीपों के पार से हर साल सर्दियों में राजस्थान की सांभर झील में आने वाले हजारों प्रवासी पक्षियों को देखना हर पक्षी प्रेमी का सपना होता है। लेकिन इस साल सांभर झील का पानी
दुःस्वप्न में बदल गया। प्रवासी और स्थानीय पक्षियों की होने वाली मौतों के बीच विशेषज्ञ इसके लिए जिम्मेदार कारण पर एकमत नजर नहीं आते। लेकिन सब एक बात कह रहे हैं कि अगर जल्द ही इसे रोकने के लिए कुछ नहीं किया गया तो और पक्षियों की जान जाएगी।
पर्यावरण प्रदूषण, पारिस्थितिकी असंतुलन कारण
चाहे कुछ भी हो पर प्रकृति की यह विनाशकारी चेतावनी
अनसुना करना मनुष्य के अस्तित्व के
ये कशमकश है ज़िंदगी
कि कैसे बसर करें ......
कविताएँ तो आप प्रतिदिन पढ़ते हैं
आज पढ़िये कुछ गद्य रचनाएँ-
यक़ीन कीजिए, हमारी यह अनुभूति निरा लफ़्फ़ाज़ी नहीं है। बहुत बार तो कुछ अहसास आगत की भौतिक हलचलों की आहट भी होते हैं। अर्किमिडिज का पानी से भरे टब में अपने को हल्का महसूस करना विज्ञान जगत की एक क्रांतिकारी अनुभूति थी। विज्ञान की दुनिया ऐसे ढेर सारे वृतांतो और दृष्टांतों से पटी पड़ी है, जहाँ कल्पना ने ठोस यथार्थ, सपनों ने हक़ीक़त और अनुभवों ने ज्ञान की भूमि तैयार की। जैव रसायन शास्त्री केकुल के सपने में साँप का अपनी पूँछ पकड़ना एक ऐसा ही विस्मयकारी सपना था जिसने बेंज़ीन की बनावट का हक़ीक़त दिया।
#प्रकृति_माँ (कुदरत) के लिए उसकी हर संतान बराबर है। मतलब, एक इंसान के जान की कीमत सही मायनों में एक शेर/हाथी/पक्षी/साँप/कुत्ता/बिल्ली/... इत्यादि के समान ही होती है, ये बात अलग है कि इंसान अपनी महत्वाकांक्षा और अहं के रहते यह बात मान ही नहीं सकता।
आजकल की परिस्थितियों में जहाँ प्रकृति को नष्ट कर देने के लिए हम उद्यत हैं, बेगुनाह जीव/जंतुओं के बारे में सोचकर रोना आ जाता है। अरे, उन्हें तो अपनी नाक पर रूमाल बाँधनी भी नहीं आती, मास्क भी वितरित कर दिये जायें तो क्या फ़ायदा?
आज जंगल इतिहास हो गया और गांव जवान शहर। पर इस शहर के बसने, जंगलों के विनाश और एक नए भविष्य की नई इबारत के पीछे बरतानिया हुकूमत का षडयंत्र है। उन्हें दरअसल मधुपुर नहीं बसाना था। मधुपुर तो महज एक गांव था जैसे आज साप्तर है या फागो या कुर्मीडीह। पर अंग्रेज बहादुर जब सन 1855 और 1857 में संताल लड़ाकों और भारतीय फौजियों के विद्रोह से परेशान हो गए और हताशा फैलने लगी तब रेल ब्रिटिश हुकूमत का नया हथियार बन गई।
स्त्रियों को चाहिए कि वे पुरुष को अपनी हर समस्या का 'समाधान केंद्र' न समझें। कभी उनकी भी सुनें। परेशानियाँ उनके जीवन में भी उतनी ही हैं। आपकी समस्याओं और रोज के बुलेटिन में उलझ वे अपना ग़म बाँट ही नहीं पाते कभी! दर्द उन्हें भी होता है, डर उन्हें भी लगता है पर आपकी रोज की हाहाकार ने उन्हें सुपरमैन, बैटमैन और चाचा चौधरी बना डाला है।
दरअसल इसके बीज भी हमने ही रोपे हैं। समाज को जाति, उपजाति और धर्म के बाड़े में बाँट कर। हमने कभी सोचा ही नहीं कि जब तक इस जाति, उपजाति और धर्म के परजीवी अमरबेल पनपते रहेंगे, तब तक हमारे ख़ुशहाली के वृक्ष 'पीयराते' (पीला पड़ते) रहेंगे।
उपर्युक्त लिखी चार पंक्तियों का मतलब
कल आ रही हैं आदरणीय विभा दीदी
एक अनोखे विषय का अँक लेकर
बेहतर से बहुत ही शानदार
जवाब देंहटाएंआई विविधता...
आभार...
सादर..
न चादर बड़ी कीजिये,
जवाब देंहटाएंन ख़्वाहिश दफन कीजिये,
चार दिन की ज़िन्दगी है,
बस चैन से बसर कीजिये.
साधुवाद
काश समय पर याद रह जाये यह बात छूटकी
सराहनीय प्रस्तुतीकरण
बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजी, अत्यंत आभार हृदयतल से, इस अरुचिकर और आलोकप्रिय ढर्रों की परंपरा के लेख जो आम पाठकों की पसंद के प्रतिकूल हैं, को अपने लिंक में शामिल करने का जोखिम उठाने के लिए। इसे बदस्तूर जारी रखें। साहित्य में अज्ञेय ने भी ऐसा ही जोखिम उठाया था जिसे प्रयोगवाद कहा गया। ढेर सारी शुभकामनायें!!!
जवाब देंहटाएंवाह!,श्वेता ,शानदार प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएं18000 पक्षियों की मौत ? दुखद। पर किसे पड़ी है?
जवाब देंहटाएंसुन्दर अंक।