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शनिवार, 27 अप्रैल 2019

1380... काश


Image result for लगन पर कविता

मेरे शिक्षिका बनने का नियुक्ति का पत्र आया
बहुत खुशी हुई 
बस एक कदम दूर थी ।
मगर पति के चेहरे पर 
खुशी कम 
रूखापन ज्यादा था ।
वजह एक थी 
उन्हे हमारी नौकरी करना पंसद नही था ।
उन्होने बस यही फरमान सुनाया 
बस तुम्हे घर का काम करना
सास ससुर की सेवा करना
मेरी आशा और पिता जी की मेहनत 
सब कुछ मिट्टी मे मिल गया ।
बहुत मिन्नत की 
मगर आज भी जिद् पर अङे है वो 
बस यही जबाब देते 
क्या तुम्हे पैसे की कमी?
सच कहू 
बहुत रूखा इन्सान है

जिसे मेरी काबलियत की परख न थी... Narender Paul

"समय के साथ रूखापन कम हो जाएगा... अगर आप दृढ निश्चयी हों...
खुद के लिए कहते हम तो बड़े तोप थे...
दोष दूसरे को दे लेते हैं...
हममें लगन कम न होता

काश



अब तो कविता-
बिन हाथ ,पैर ,आँख ,कान के हो गयी। 
जो मन चाहा ,लिख दिया। 
सन्दर्भ-व्याख्या-क्या पता ?
रजाई में दुबक कर लिख डाली ,
अँधेरे की कविता। 
नदी में डुबकी लगा ,
लिख डाली रोमानिया की सविता।

काश

काश कि ऐसा होता, काश कि वैसा होता kavita

अल्फ़ाज़ में कहीं कुछ अटक नहीं जाता
रूह को कहीं सुकून हासिल हो जाता
माना की जन्नत से फ़ासला काफ़ी है
पर मन्नत की नि’मत भी यही है
और फिर होता भी तो यही है ना

काश



तुम होते मेरे साथ हमेशा,
जैसे सीप और मोती,
सूरज और रौशनी,
मांग और सिंदूर,
दीपक और ज्योति...

काश

Aakash Parmar

शरमा जाती गर पलकें मेरा नाम सुनकर,
मेरा इश्क़ मुकम्मल हो रहा होता कही,

हर सजदे में दुआ मांगते,
तेरे जुस्तजू-ए-इश्क़ पूरा होने की कही,

काश



ग़म के अंधेरो निकलने की रोशनी चमका जाय
हमे खुशियों मे से खुशी का एक वक्त दे जाय
हम भी रोये किसी की यादो मे , काश कोई ऐसा एहसास दिला जाय
हमे उम्मिदो की नयी रोशनी मिल जाय ,सोते हुए

><
फिर मिलेंगे...


अब आती है बारी
साप्ताहिक विषय की
अड़सठवाँ विषय
वेदना
उदाहरण.....
भीगे एकांत में बरबस -
पुकार लेती हूँ तुम्हे
 सौंप अपनी वेदना -
 सब भार दे देती हूँ तुम्हे !

 जब -तब हो जाती हूँ विचलित
 कहीं  खो ना  दूँ तुम्हे
क्या रहेगा जिन्दगी में
जो हार देती हूँ तुम्हे !



अंतिम तिथि -27 अप्रैल 2019
प्रकाश्य तिथि- 29 अप्रैल 2019

7 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात दीदी..
    सदा की तरह बेमिसाल प्रस्तुति..
    सादर नमन...

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय ब्दीदी सुंदर लिंक संयोजन और दुर्लभ विषय पर अत्यंत भावपूर्ण अंक। काश शब्द सदा सर्वदा से मन के गहनपश्चाताप का परिचायक है।काश ये हो जाता -- काश ये ना होता _ इसी उहापोह का नाम शायद जीवन है। ये जीवन भर हर खुशी और गम के समानांतर चलता है। आज के अंक में जिन रचनाकारों की रचनाएँ शोभायमान हैं उन्हे हार्दिक शुभकामनाएं। आपको श्रम पूर्वक जुटाए लिंको के लिए साधुवाद। समस्त पाठक वृंद को सुप्रभात और प्रणाम।





    जवाब देंहटाएं
  3. सुंंदर संकलन के साथ बेमिसाल प्रस्तुति..

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन प्रस्तुति
    लगता है विषय विशेषांक दो दिन आने लगा है
    सादर नमन

    जवाब देंहटाएं

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