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रविवार, 21 अप्रैल 2019

1374.....आखिर ऐसा हुआ क्यो

जय मां हाटेशवरी.......
आज विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र.......
खुद के लिये......
एक खुशहाल भविष्य खोज रहा है......
आओ इस के लिये हम सभी......
जाति, धर्म, क्षेत्र से ऊपर उठकर.....
अपना अमूल्य मत उसे ही दें......
जिसके हाथों में हमारा भारत सुरक्षित लगे.....
अब पेश है..... आज के लिये मेरी पसंद.....

काहे हंगामा करे, रोए ज़ारो-क़तार,
आंसू के दो बूँद बहुत हैं, पलक भिगोले यार।

***
मन को इतना मार मत , मर जाएँ अरमान ,
अरमानों के जाल में, मत दे अपनी जान

सारे डिब्बे चल रहे थे,
ख़ुद-ब-ख़ुद नहीं,
आगे-आगे एक इंजन था,
जो सबको चला रहा था.

Image result for गुब्बारे के चित्र
प्यार की कश्ती की
 पतवार देती हूँ तुम्हे !
कांच सी दुनिया   ये
तुम  मिले कोहिनूर से
क्या दूं  बदले में ?
बस प्यार देती हूँ तुम्हे !!!

तुम्हारे आंकड़ों पर यकीन करें भी कैसे?
जहर भरा आखिर फिर खुराक क्यूँ है?

माना परिंदे छोड़े गए हैं उड़ान भरने को
नकेल से बंधी फिर इनकी नाक क्यूँ है?

खुद ही संभालो मत मांगो सहारा तुम
लहरों से डरा हुआ भला तैराक क्यूँ है?

जायजों
के
सिंहारूढ़
होने के
जयकारों में

अपनी
जायज
आवाज मिलायें

निशान
लगाये
नाजायजों को
मिलजुल
कर
आँख दिखायें

मां नमन तुम्हें, मां वंदन तुम्हें।
मां स्तुति है, श्रष्टि दयाल की।।
मां तुम भूत हो, ईष्ट अंक, अब।
अभागा कुछ न कर सका मैं।
समर्पित हो, कृति ये।


मेरी फ़ोटो
यकीन को खोना तो नहीं चाहिए ,फिर खोया क्यों ?
इतने मजबूर हालात है क्यो ?
उलझे-उलझे सवाल है क्यो ?

धन्यवाद।

10 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  2. व्वाहहहहह..
    बेहतरीन रचनाएँ पढ़वाई आपने....
    आभार.
    सादर....

    जवाब देंहटाएं
  3. आज के खूबसूरत अंक में 'उलूक' की बड़बड़ को भी जगह देने के लिये आभार कुलदीप जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रिय कुलदीप जी - देर से उपस्थिति के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ | अंक उसी दिन देख लिया था पर अति व्यस्तता वश यहाँ उपस्थिति दर्ज ना करा सकी | मेरी रचना को चुन इस संकलन का हिस्सा बनाने के लिए आपकी आभारी हूँ बहुत सराहनीय अंक के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनायें |

    जवाब देंहटाएं

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