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मंगलवार, 30 अक्तूबर 2018

1201...बकना जरूरी है ‘उलूक’ के लिये, पढ़ ना पढ़, बस क्या लिखा है ये मत पूछ

सादर अभिवादन....
ऋतु शरद आ ही गई
रहेगी कुछ महीने
फिर चली जाएगी
ग्रीष्मा को छोड़कर
हमारे पास
आना-जाना तो लगा रहता है....
हम भी सोच रहे हैं कुछ दिन शिर्डी हो आएँ
सोच तो सोच ही है...
चलिए देखें आज के पिटारे में क्या है......
विषय हम-क़दम का तिरालीसवाँ अंक
एक चित्र है इस बार
इसी चित्र को देखकर आपको कविता बनानी है
प्रेषण तिथिः 03 नवम्बर 2018
प्रकाशन तिथिः 05 नवम्बर 2018
रचनाएँ प्रारूप में ही आनी चाहिए
अब चलें नियमित अंक की ओर...

नाप के नक़्शे बनाए ... क्या हुआ
क्या खज़ाना ढूंढ पाए ... क्या हुआ

नाव कागज़ की उतारी थी अभी
रुख हवा का मोड़ आए ... क्या हुआ

हर नज़र में तेरी ही तलाश हैं...,
हर धड़कन को तेरा ही इंतज़ार हैं..! 
हर फूल तेरे ही नाम हैं...,
हर ख़ुशबू में तेरा ही ख़ुमार हैं...! 
गिरती बरसात की बूंदे जब भी...,
खोले पिटारा तेरी ही यादों का...! 
ठंडी चलती पुरवाई में तेरा ही एहसास हैं...,

बेइंतेहा खूबसूरत नज़ारा
अमनो-चैन की घड़ी
और दिलों में खुशी
पाकीज़ा चांदनी सी ..
कुछ देर ही सही,
इस बेशुमार दौलत का 
आज हर कोई हक़दार है ।


कुछ वादों की हवा चली
कुछ मुलाकातों की हवा चली
कहीं तानाकशी का दौर है
कहीं झूठी अफवाहों का जोर है

आज और कल...मीना भारद्वाज
जब से मिट्टी के घड़ों का चलन घट गया । 
तब से आदमी अपनी जड़ों से कट गया ।। 

कद बड़े हो गए इन्सानियत घट गई । 
जड़ें जैसे अपनी जमीं से कट गई ।।


सोचता हुआ 
बकवास 
करने वालों की 
कोई नहीं 
होती है पूछ 

जय हिन्द 
भारत माता की जय 
वन्दे मातरम की 
जरूरी है बहुत 
कब्रगाहों में भी गूँज। 

आज बस इतना ही...
अच्छा तो हम चलते हैं
यशोदा









15 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात,
    बहुत सुंदर रचनाये,आज का पिटारा फिर एक आनंदमय सुबह लेके आया हैं,

    नाव कागज़ की उत्तरी थी अभी
    रुख हवा का मोड़ आये

    बहुत शानदार

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभप्रभात यशोदा जी बहुत सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाएं बहुत सुंदर सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई आदरणीय सुशील जोशी सर की रचना बेहद पसंद आई पर वहां टिप्पणी पोस्ट नहीं हो पा रही है मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार यशोदा जी

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन रचनाओं का संकलन यशोदा जी । शिरडी साईं धाम को नमन 🙏🙏 इस संकलन में मेरी रचना को स्थान देने के लिए सादर आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुहानी हलचल ... हवा के झोंके जैसी ...
    आभार मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए आज ...

    जवाब देंहटाएं
  5. सुप्रभात दी,
    बहुत ही उम्दा रचनाएँ हैं आज के अंक में।
    सुंदर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर हलचल। आभार यशोदा जी 'उलूक' के बकने को जगह देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  7. कागज़ की नाव से लेकर मिट्टी के घड़ों तक ...क्या बात है !
    इनके बीच शरद के चंद्रमा को घुसपैठ करने की अनुमति देने के लिए धन्यवाद यशोदाजी !
    : )

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही सुन्दर संकलन और प्रस्तुति यशोदा जी

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत ही सुन्दर हलचल प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  10. शानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन... सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं।
    आदरणीय जोशी जी की रचना टिप्पणी नहीं हो पा रही है....।

    जवाब देंहटाएं
  11. सभी पाठकों का धन्यवाद और उनसे जोड़ने वाली यशोदा जी का हार्दिक आभार.

    जवाब देंहटाएं

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