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शुक्रवार, 24 नवंबर 2017

861 भाषा की मर्यादा


सादर अभिवादन
मर्यादा " 
एक शब्द या कोई बंधन नहीं, जीवन के व्यवहारिक व्यवस्था का 
संपूर्ण सार है।  भाषा की मर्यादा, जिससे हमारे 
चरित्र और व्यक्तित्व का आकलन किया जाता है।
आज  ऐसे परिदृश्य देखने को मिल रहे जिससे पता चल रहा है
सार्वजनिक जीवन को प्रभावित करने वाली   विधायिका,न्यायपालिका और कार्यपालका, जैसी संंस्थाएँ, जो समाज पर प्रभावी स्थान रखती हैं इनसेे जुड़े लोगों के द्वारा एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करते वक्त 
जिस स्तरहीन भाषा का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है 
उससे भाषा की मर्यादा पर प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया है।
सवाल यह है हम किस दिशा में जा रहे?? 
आनेवाली पीढ़ी को क्या दे रहे ??
चिंता इस बात की है कि भाषा के भीतर बढ़ता भ्रष्टाचार एक असाध्य रोग की भाँति हमारे मानवीय मूल्यों को खोखला न कर जाये,
कृपया सोचियेगा अवश्य।

चलिए अब पढ़ते है आज की रचनाएँ.....

वक्त के पहिये अनवरत घूमते है परिदृश्य बदलकर भी कुछ चीजें 
शाश्वत रहती है इन्हीं उच्च भावों को शब्द देती
आदरणीया यशोदा दी की कलम से प्रसवित रचना
धरोहर से

अनुभव नए
शब्द नए
दर्द भी नया
पर कलम वही...

मनन नया
चिन्तन नया
भाव नये
पर कलम वही

जन्मदिन पर दी जाने वाली शुभकामनाओं पर नायाब मुक्तक 
आदरणीय अमित जी की इंद्रधनुषी लेखनी से
उड़ती बात से
रूहानी एक कविता का, सुनहरा छंद लायी है
गुलाबों के चमन से माँगकर, गुलकंद लायी है
ख़ुशी बनकर सँवरकर आयी है,तुमको दुआ देने
जन्मदिन हो मुबारक, मुस्कुराकर गुनगुनायी है।

मानवीय संवेदना का मौन रह जाना आजकल आम है इसी विषय पर
 आदरणीया अपर्णा जी की लेखनी से मन झकझोरती रचना
बोल सखि रे से
जानता हूँ व्यस्त हैं सब, 
मर गयी है सम्वेदना, 
फिर भी है उम्मीद........ 
कोई न कोई बचा ही लेगा 
ज़िंदा होगा इंसान किसी न किसी शरीर में जरूर...

मौसम के रंगों में भाव भरती आदरणीय पुरुषोत्तम जी की 
सुंदर कृति जीवन कलश से

व्यथित थी धरा, थी थोड़ी सी थकी,
चिलचिलाती धूप में, थोड़ी सी थी तपी,
देख ऐसी दुर्दशा, सर्द हवा चल पड़ी,
वेदनाओं से कराहती, उर्वर सी ये जमी,
सनैः सनैः बर्फ के फाहों से ढक चुकी.....

हृदयस्पर्शी भावों से भरी आदरणीया मीना जी की लेखनी से 
निसृत रचना चिड़िया से

कुछ समय बाद देखा
जमीं पर लाल अक्षरों में
उसी लहू के रंग से
उसने लिखा था एक शब्द
ढ़ाई आखर का 

हृदय की कोमल भावों को रेशमी भावों के रूहानी एहसास को 
शब्द देती आदरणीया रेणु जी की क्षितिज से
किसी के सर्वस्व समर्पण ने - 
महका दिया है ---
तुम्हारे अंग - प्रत्यंग को ,
तभी तो तुम्हारी देह ----
नज़र आती है हरदम -- 
किसी खिले फूल सी ---- ! ! 


अंतर्मन की अनकहे भावों को शब्दों में पिरोती 
आदरणीया अनीता जी की कलम से बहती भावपूर्ण 
सरिता अनु की दुनिया से



हाँ !
ख़ामोशी  से जलना
आता है मुझे
अपने अंदर उमड़ रहे
सवालों को समेटकर.......
उदासी की सफ़ेद  चादर
ओढ़ना  पसंद है मुझे
चाहे तुम मुझे पढ़ो  या न पढ़ो ...!
मेरी स्याह रातें

अभी - अभी..खामोशी का परचम
डॉ. इन्दिरा गुप्ता की कलम से..विविधा पर


खामोश जुबाँ 
खामोश नजर 
खामोश 
बसर खामोश ! 

आज के लिए बस इतना ही
आप सभी के बहुमूल्य सुझावों
की प्रतीक्षा में


श्वेता

17 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभातम। भाषा के स्तर पर प्रश्न खड़े कर दी बेहद सारगर्भित विचारणीय भूमिका। विविध विषयों पर आधारित खूबसूरत रचनाओं का संकलन। बधाई श्वेता जी
    इस अंक में चयनित सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं। आभार सादर।

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात..
    बेहतरीन प्रस्तुति
    विमर्श का विषय भी मनभावन
    भाषा की मर्यादा
    या फिर
    मर्यादा की भाषा
    बस यही एक सोच का विषय
    होना चाहिए..
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात....। सबसे पहले आज की उल्लेखनीय प्रस्तुति के लिए प्रस्तुतकर्ता बधाई के पात्र हैं । भाषा के भीतर बढ़ते भ्रष्टाचार जो एक असाध्य रोग की भाँति हमारे मानवीय मूल्यों को खोखला न कर रहा है, इस तथ्य को प्रमुखता से पटल पर रख चर्चा का विषय बनाना, आसान नही रहा होगा।
    उम्मीद है यह यह पहल एक सार्थक दिशा प्रदान करेगा भाषा की महत्ता को और समाज में एक कुलीन संस्कारी भाषा की व्युत्पत्ति हो सकेगी।
    साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात,भाषा की मर्यादा विचरणीय प्रशन,मानव मन वर्तमान समय में इतना व्याहारिक हो गया है कि उसके स्वार्थ की पुर्ति ना हो तो जगह,महौल कहीं भी वो उबल पड़ता है..!दुसर शब्दो मे हताशा कह सकते है जो निरंतर हमे आमर्यादित बना रही हे..!
    बेहतरीन रचनाओं का संकलन ,जो कभी इस छोर‌ तो कभी उस छोर ले जा रही हे,मुझे भी सभो के साथ मान देने के लिए धन्यवाद एंवम अन्य सभी साथी रचनाकारो को भी बधाई एंवम शुभकामनाएं..!! ्

    जवाब देंहटाएं
  5. विचारणीय प्रश्न से शुरुआत अच्छी लगी
    विमर्श हो तो निष्कर्ष निकले
    मेहनत दिख रही
    अक्षय शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन प्रस्तुति.
    जब आदमियत, सम्वेदना,मूल्य, सब गर्त में जा रहे हो तो भाषा को मर्यादा में रहने का सवाल कंहा उठता है. भाषा व्यक्ति, परिवेश, शिक्षा और सन्सकारों का आइना होती है.समाज से खत्म होते मूल्यों का प्रभाव भाषा पर दिखता ही है.
    सवाल है क्या कोई रास्ता है जो इस ह्रास से बचा सकता है समाज को.....

    आज भाषा के सवाल को पटल पर रखकर आपने सोचने पर मजबूर किया है....
    और मर्यादा की भाषा या भाषा की मर्यादा.. महत्वपूर्ण चिन्तन का विशय
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई.मुझे भी शामिल करने के लिये आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अर्पणा जी,आपकी टिप्पणी बहुत अच्छी लगी..अपने विचारो को मुखर रुप मे प्रस्तुत किया..पढ़कर भाषा को लेकर और भी ज्ञान व‌हत हुवा ...धन्यवाद..!

      हटाएं
    2. सहमत । बहुत सुंदर विचार अपर्णाजी।

      हटाएं
  7. अच्छी लगी ......उत्तम संयोजन
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  8. सच ..स्तरहीन भाषा का उपयोग कर निर्भिकता का प्रमाण देना हो गया है.. बहुत सुंदर संकलन श्वेता जी, विचारणीय मुद्दे के साथ उत्तम प्रस्तुति, सभी रचनाकारों को बधाई.. धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  9. मेरा तो कवि मन चर्चा में शामिल कवियों की भाषायी शाइस्तगी में डूब गया। जो देख रहा हूँ जो पढ़ रहा हूँ जो गुन रहा हूँ उसी में मुतमइन हूँ। जब तक आप सब गुणीजनों जैसे शिष्ट और अदबी भाषा के पैरोकार हैं तब तक भाषा को कुछ नहीं होना जाना। मौक़ापरस्तों की भाषायी बेअदबी को तवज़्ज़ो क्या देना।

    बहुत ही शानदार हलचल अंक। श्वेता जी को बहुत बहुत बधाइयाँ। उनके संवेदनशील कविमन से ऐसी ही दिलकश प्रस्तुति की अपेक्षा रहती है। मेरी रचना को स्थान देने के लिये कृतज्ञ हूँ। सभी बेहद उम्दा रचनाकारों को उनकी शानदार रचनाओं के लिये बधाइयाँ

    जवाब देंहटाएं
  10. मर्यादा और भाषा की मर्यादा...विचारणीय विषय है...
    बहुत सुन्दर संकलन..बेहतरीन प्रस्तुतिकरण...

    जवाब देंहटाएं
  11. प्रिय श्वेता जी - आज की विचारणीय भूमिका के विषय को विस्तार देते हुए सभी साहित्य गुणीजनों ने चार चाँद लागा दिए | भाषा की मर्यादा शिष्टाचार का आधार है | इसे बने रहना होगा जिसको बनाये रखने में सभी का सहयोग अपेक्षित है | प आदरणीय रविन्द्र जी -- अपर्णा जी और अनिता जी के बहुमूल्य विचारों के साथ मुझे अमित जी की बात विशेष रूप से प्रेरक लगी कि '' मौक़ापरस्तों की भाषायी बेअदबी को तवज़्ज़ो क्या देना '' बहुत अनमोल है ये कथन | सचमुच यदि मर्यादा का खंडन करने वाले दो चार हैं तो इसकी गरिमा बुलंद करने वाले हजार हैं | तो चिंता नहीं चिंतन करना चाहिए | आज के संकलन की सभी रचनाएँ पढ़ी -- बेहतरीन रचनाओं के लिए आज के सभी साथी रचनाकारों को बधाई | मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपकी हार्दिक आभारी हूँ | आज के आयोजन की सफलता पर आपको हार्दिक बधाई |
    ''

    जवाब देंहटाएं
  12. " मर्यादा "
    एक शब्द या कोई बंधन नहीं, जीवन के व्यवहारिक व्यवस्था का
    संपूर्ण सार है। बहुत सुंदर सुविचार है आदरणीय श्वेताजी।
    आप जैसी सुरुचिसंपन्न चर्चाकार के द्वारा चुनी गई बेहतरीन रचनाओं को पढ़ना आनंद व संतुष्टि की अनुभूति करा गया। मेरी रचना को हलचल में स्थान देने हेतु अत्यंत आभार।

    जवाब देंहटाएं
  13. abhineta nahipal ek kvi bhi they,unhonne likha hai
    kya kheenchoge vstr tum
    kya lootoge laaj
    rajniti nirvstr hai
    dushasn mharaj

    जवाब देंहटाएं

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