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गुरुवार, 16 नवंबर 2017

853...मेरा हृदय छालों से भर जाता है...

सादर अभिवादन। 
जैसे-जैसे मौसम में बदलाव होता जा रहा है हमें धूप उतनी ही प्रिय लगने लगती है। डॉक्टर शीत ऋतु को हेल्दी सीजन कहते हैं।  बच्चों और वृद्ध जनों को यह ऋतु अधिक प्रभावित करती है।  साँस सम्बन्धी तकलीफ़ें बढ़ जाती हैं हवा में नमी के कारण वहीँ वृद्ध जनों को हार्ट अटैक का ख़तरा बढ़ जाता है। अतः सावधानी बरतना उत्तम उपाय है। मुझे ग्वालियर के वरिष्ठ साहित्यकार गीतकार और मेरे मार्गदर्शक आदरणीय जानकी प्रसाद "विवश" जी की दो पंक्तियाँ याद हो आयीं हैं -
"सर्दियों में धूप हमको इस तरह प्यारी लगी ,
आपकी छवि व्यथित मन को बेहद सुखकारी लगी।"

चलिए अब आपको अपनी पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलते हैं -  
पेश है आदरणीया ऋता शेखर 'मधु' जी की एक ख़ूबसूरत रचना- 

ऋता शेखर 'मधु' 

कटते रहे शजर और बनते रहे मकाँ 
हर ही तरफ धुआँ है कहाँ आदमी रह

आकाश में बची हुई बूँदें धनक बनीं
हमदर्द जो हों लफ़्ज़ तो यह ज़िन्दगी रहे

यथा नाम तथा गुण को चरितार्थ करतीं 
आदरणीया रश्मि प्रभा जी हाज़िर हैं 
अपनी एक गंभीर उत्कृष्ट कोटि की रचना के साथ -
मैं तुमसे कभी नहीं मिलना चाहूँगी
फिर भी,
गर मिल गए
तो मेरी खामोश नफरत को कुरेदना मत
क्योंकि उससे जो आग धधकती है
उस चिता में
तुम्हारे संग 
कुछ आत्मीय चेहरे भी 
झुलसने लगते हैं 
उन चेहरों को निकालते हुए 
मेरा हृदय छालों से भर जाता है 
फिर ...



हिंदी साहित्य की  दो महान विभूतियों आचार्य रामचंद्र शुक्ल और डॉक्टर रामविलास शर्मा  ने हिंदी गद्य के विकास में जो अतुलनीय योगदान समर्पित किया है उस पर एक शोधपरक आलेख के साथ आदरणीय  
अश्विनी कुमार लाल-  




डॉ. रामविलास शर्मा हिंदी-उर्दू को एक ही भाषा की दो शैलियां मानते थे। इनके तमाम साहित्‍य को एक ही जाति का साहित्‍य कहा है। अंग्रेजों ने हिंदी-उर्दू के बीच विभाजक रेखा खींच कर, उनका संबंध मजहब से जोड़ दिया है जो हमारे जातीय एकता में बाधक सिद्ध हुई है। डॉ. रामविलास शर्मा इस संदर्भ में लिखते हैं- “हिंदी-उर्दू विवाद को इतना जहरीला बना दिया गया है कि बहुत से लोग भूल गए हैं कि वे एक ही बोलचाल की भाषा के दो रूप हैं, इनका तमाम साहित्‍य भला-बुरा जो कुछ है, एक ही जाति का साहित्‍य है। जैसे-जैसे लोग यह समझेंगे कि हिंदी-उर्दू वाले एक ही प्रदेश के रहने वाले हैं, एक ही कौम हैं, उनकी बोलचाल की भाषा एक है और इसलिए उनके साहित्‍य की भाषा को भी एक होना पड़ेगा, वैसे-वैसे यह अलगाव कम होगा।”15 इस प्रकार डॉ. रामविलास शर्मा ने हिंदी-उर्दू को एक ही भाषा की दो शैलियों के रूप में देखा, जो ठीक भी है।

आपको आश्चर्यचकित कर देने वाली चित्रावली 
ब्लॉग "नई विधा" पर पेश कर रही हैं 
आदरणीया दिव्या अग्रवाल जी -

Car Graveyard in Chatillon Belgian Forest

और अंत में पेश है आदरणीया दीदी विभा रानी श्रीवास्तव जी की एक 

प्रभावशाली अर्थपूर्ण लघुकथा -

 "मसक गया"…..  विभा रानी श्रीवास्तव 

Profile photo

तभी एक का फोन घनघनाया

हैलो!"

"इतनी रात तक कहाँ
बौउआ रही हो?"
"बैठ गए हैं ऑटो में बस पहुंचने वाले ही हैं"
"बहुत पंख निकल गया है ... बहुत हो
गई मटरगश्ती...
कल से बाहर निकलना एकदम बन्द तुम्हारा..."
पूछ! नहीं लौटूँ जेल, चली जाऊँ दीदी के घर..."

आज बस इतना ही। 
आपके उपयोगी फीड बैक की प्रतीक्षा में। 
फिर मिलेंगे।

17 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात रवीन्द्र जी
    एक स्वयंसिद्ध प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सस्नेहाशीष संग शुक्रिया
    खुशी के पल होते हैं जब लेखन पसंद किया जाता है आभार होता है जब चर्चा में शामिल किया जाता है
    आपलोगों के श्रम से निखरने लगा है ये ब्लॉग

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात रवींद्र जी,
    मौसम का असर दिखने लगा है अब,दो पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी। उम्दा लिंक्स आज के अंक में।अति सराहनीय प्रस्तुतिकरण, सभी रचनाएँ बहुत अच्छी है। सभी चयनित रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ मेरी।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात , बहुत अच्छा है आज का अंक। सभी रचनाएं गंभीर साहित्य का प्रभाव छोड़ती हुईं। रवीन्द्र जी बधाई। सब रचनाकारों को बधाई। अच्छा लग रहा है पांच लिंकों का आनंद का सफर।

    जवाब देंहटाएं
  5. भाई रवीन्द्र सिंह यादव  जी....
    सुंदर व पठनीय प्रस्तुति दी है आपने....
    आभार आप का....

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर संकलन,
    सब रचनाकारों को बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  7. उषा स्वस्ति..
    सुंंदर पंक्तियाँ के साथ प्रस्तुति और भी अच्छी बन पड़ी है
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत बेहतरीन अंक। मोहक रचनाओं का चयन। शानदार प्रस्तुतिकरण रविन्द्र जी। सभी रचनाकारों को बधाई

    जवाब देंहटाएं
  9. उम्दा लिंक संकलन एवं बेहतरीन प्रस्तुतिकरण....

    जवाब देंहटाएं
  10. रामविलासजी भाषा वैज्ञानिक तो थे ही, साथ साथ उन्होंने अपनी आलोचना धारा को भाषा, साहित्य और समाज की संगम स्थली में ही प्रवाहित किया. जैसे उनके लिए साहित्यकार वह था जो अपने समय से न्याय करता हो, उसी परंपरा में 'हलचल' में आज उन्हें याद कर आपने भी आज के दिन के साथ बखूबी न्याय किया. इस पुष्ट संकलन की आपको बधाई और साधुवाद, रविद्रजी!

    जवाब देंहटाएं
  11. बेहतरीन संकलन सभी रचनाये मोहक पठनीय ।

    जवाब देंहटाएं
  12. बेहतरीन संकलन सभी रचनाये मोहक पठनीय ।

    जवाब देंहटाएं
  13. बेहतरीन रचनाये बेहतरीन लेखक 🌹

    जवाब देंहटाएं

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