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शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

854....जीवन का स्वभाव चलते जाने की पुष्टि है

सादर अभिवादन।
आधुनिक तकनीक की उपयोगिता और संचार माध्यम के क्रांति के इस दौर में इलेक्ट्रॉनिक बुक (ई-बुक) के प्रति लोगों का रूझान बढ़ा है, परंतु छपाई के पुस्तकों की प्रासंगिकता भी कम नहीं हुई है।  ई-बुक की पहुँच आभिजात्य वर्ग तक ही सीमित है जबकि पुस्तक आम जनमानस के सभी वर्ग की पहुँच में है। 

डर इस बात का है कि 
ई-बुक के बढ़ते प्रचलन से कहीं  पुस्तकों की परंपरा और उत्कृष्ट साहित्य की संस्कृति खत्म न हो जाए। इलेक्ट्रॉनिक किताबें छपी हुई किताबों को नजरअंदाज कर देंगी क्या?
चिंता की बात है कि देश के बड़े हिस्से में बच्चों के लिए किताब का अर्थ पाठ्यपुस्तक से अधिक नहीं है। 
कुछ सवालों का जवाब आप पर छोड़कर चलिए पढ़ते है 
आज की रचनाएँ......

कल मशहूर श़ाय़र अकबर इलाहाबादी का जन्म दिन था
उनकी दो रचनाएँ पढ़िए...

बेपर्दा नज़र आईं जो चन्द बीवियाँ
कोई हँस रहा है कोई रो रहा है
कोई पा रहा है कोई खो रहा है

कोई ताक में है किसी को है गफ़लत

कोई जागता है कोई सो रहा है

अंतर्मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती
आदरणीया यशोदा दी की
सुंदर रचना
देखो पलट कर
वो साया है
तुम्हारा ही..
तलाशो उसे
अपने भीतर
भूलकर अंधेरे को
जला लो फिर से
एक बाती 

१९ नवंबर को रानी लक्ष्मी बाई की १८२वीं जयंती है। पढ़िये 
आदरणीय अमित जी की
प्रखर लेखनी से एक ओजमयी रचना
विस्मृति की धुंध हटाकर के, स्मृति के दीप जला लेना
झांसी की रानी को अपने, अश्कों के अर्घ चढ़ा देना।
आज़ादी की बलिबेदी पर, हँसतें हँसते कुर्बान हुई
उस शूर वीर मर्दानी को, श्रद्धा से शीश झुका देना।

बेटी के आगमन पर पीहर का हाल बयान करती
आदरणीया नीतू जी की
हृदयस्पर्शी भावपूर्ण कविता
मायके में बिटिया रानी

पलकों को आँचल से पोछा,
चेहरे पर मुस्कान सजाई,
जब देखी आंगन में मैंने,
अपने बाबुल की परछाई,
बार बार घड़ी को देखे,
जैसे समय को नाप रहे थे,

नये साल की सुगबुगाहट शुरु हो गयी है
बदलते वक्त को खूबसूरत शब्दों में पिरोती
 आदरणीय पुरुषोत्तम जी की
भावपूर्ण रचना

नव ऊर्जा बाहुओं में भरकर,
कीर्तिमान नए रचने को कहकर,
लक्ष्य महान राहों में रखकर,
आँखों में नए सपने देकर,
विकास पुरोधा बनकर, बदल रहा ये साल...

जीवन का सच बयान करती 
आदरणीया अनुपमा जी की
दार्शनिक भाव लिए बहुत सुंदर रचना
विराट दुख के साँचों में 

ढल कर भी
ज़िन्दगी
ज़िन्दगी ही रहेगी 

और अंत में अद्भुत शब्दों के मनमोहक डंक में उलझाते 
आदरणीय विश्वमोहन जी की
डेंगू के कहर से त्रस्त मार्मिक अभिव्यक्ति

प्लेटलेट्स की पतवार फंसी 'डेंगी' में।





तुमसे श्वेत तो वो ' एडिस'
काल-दंश-धारी!
चाहे हो राजा या रंक
बिना भेद के मारता डंक।

आज के लिए बस इतना ही
आपके बहुमूल्य सुझावों की
प्रतीक्षा में

22 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात..
    एक वजनदार प्रस्तुति
    चौथी प्रस्तुति में और निखार आया है
    आभार...
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहद खूबसूरत प्रस्तुतीकरण
    बहुत खुशी हुई

    जवाब देंहटाएं
  3. ललित लवंग लता परिशीलन कोमल मलय समीरे ' शैली में सुन्दर रचनाओं के संकलन से सुवासित हलचल वाटिका इन पंक्तियों को पूरी तरह से चरितार्थ कर रही है:-
    " अन्तर्मन के आसमान में
    रंग बिरंगे पंख लगाकर
    उड़ते फिरते सोच के पाखी
    अनवरत अविराम निरंतर " बहुत सुदर! बधाई!! बधाई!! बधाई!!!!!!

    जवाब देंहटाएं
  4. उम्दा रचनायें
    शानदार संकलन

    जवाब देंहटाएं
  5. कुछ भी हो किताब तो किताब है । सुन्दर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह...
    विवेचना का गूढ़ विषय..
    किताबें...
    इनका स्थान कोई नहीं ले सकता...
    साधुवाद...

    जवाब देंहटाएं
  7. सुप्रभात।
    आदरणीया श्वेता जी विचारणीय भूमिका के साथ शानदार अंक।
    बधाई
    सभी चयनित रचनाकारों को शुभकामनाएँ
    किताबों का महत्व हमेशा रहेगा..
    आभार।

    जवाब देंहटाएं
  8. ई पुस्तकों के इस जमाने में भी हमारे लिए तो वही पल ज़िंदगी का होता है जब फूल पौधों से घिरे छोटे से बालकनी गार्डन में एक कप गर्म गर्म चाय हो और साथी हो एक खूबसूरत किताब ! गुलज़ार साहब ने क्या खूब लिखा है -
    "कभी सीने पे रख के लेट जाते थे
    कभी गोदी में लेते थे
    कभी घुटनों को अपने रिहल की सूरत बनाकर
    नीम-सजदे में पढ़ा करते थे,छूते थे जबीं से
    वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइंदा भी
    मगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल
    और महके हुए रुक्के
    किताबें गिरने, उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे
    उनका क्या होगा ? वो शायद अब नहीं होंगे !!!

    जवाब देंहटाएं
  9. आदरणीया श्वेता जी बेहद खूबसूरत प्रस्तुतीकरण
    आभार।

    जवाब देंहटाएं
  10. बेहद आकर्षक प्रस्तुति आदरणीया श्वेता जी। सार्थकता को पोषित करतीं रचनायें। अभिनव अंक। मेरी रचना को स्थान देने के लिये ह्रदय से आभार। चर्चा में शामिल सभी को बधाइयाँ।

    जवाब देंहटाएं
  11. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बेहतरीन प्रस्तुति,
      हाथो मे किताबे,उतनी ही अच्छी लगती है।
      जितनी सरदीयों मे हथेलियों के बीच गरम अदरख वाली चाय...!
      बेहतरीन संकलन..सभी रचनाकारो को ढेर सारी शुभकामनाऐं.....!

      हटाएं
    2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
  12. बेहतरीन प्रस्तुति
    सुंदर लिंक संयोजन
    सभी रचनाकारों को बधाई
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत अच्छी प्रस्तुति | सभी रचनाएं अच्छी लगी | रचनाकारों को बधाई

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत अच्छी प्रस्तुति. सभी रचनाएँ कमाल की हैं.
    आदरणीय श्वेता जी, बहुत सुन्दर भूमिका से आगाज़ किया है आज की हलचल का. इ-बुक के बढ़ते प्रचलन के बावजूद पुस्तकों के प्रति रूचि कंही घट रही है तो कंही बढ़ रही है. शायद आप अवगत होंगी, जमशेदपुर में आजकल पुस्तक-मेला चल रहा है. मेले में सभी आयुवर्ग के लोग अच्छी तादाद में पंहुंच रहे हैं. बच्चो और युवाओं का उत्साह देखते बन रहा है.
    दो दिन पहले (टांगराइन गाँव- पूर्वी सिंघ्भूम के पोटका प्रखंड का एक सुदूरवर्ती गाँव) के मध्य और प्राथमिक विद्ययालय के बच्चे(अधिकाँश आदिवासी) पुस्तक मेला घूमने आये थे उस विद्यालय के प्रधानाचार्य आदरणीय अरविन्द तिवारी की पहल पर. उनमे से कुछ बच्चे शहर पहली बार आये थे.उन बच्चों का उत्साह और किताबों के प्रति उनका प्यार देखते बन रहा था. मुझे लगता है आज जरुरत है किताबों के प्रति रूचि जगाने की, जैसे अरविन्द जी ने की. किताबों की खुशबू अगर एक बार किसी को भा गयी तो ताजिन्दगी वो उनसे दूर नहीं जा सकता.
    पुस्तकमेला में आये प्रकाशक भी खुश है किताबों की बढ़ती बिक्री को देखकर. कुल मिलाकर माहौल आशावान नज़र आ रहा है.
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत सुन्दर.... ई-बुक के नये नये प्रचलन से थोड़े समय जरूर लोग किताबों से दूर रह सकते हैं, पर किताबों की बात कुछ और ही है समय के साथ-साथ फर्क समझ आ ही जायेगा... फिर याद आनी हैं किताबें अपने गाँव की तरह....
    बहुत सुंदर पठनीय लिंक संकलन....

    जवाब देंहटाएं
  16. नयनाभिराम। करो करो करो आज का अंक बहुत श्रम के साथ बुद्धिमत्ता के साथ तैयार किया गया है। पन्ने पलटने वाली पुस्तक और ई-पुस्तक के बारे में चर्चा प्रासंगिक है। इस वक्त इटावा के अपने गांव में हूं इंटरनेट सेवाएं बदतर हालात में है। एक पेज खोलने में कई मिनट लगते हैं 4जी और 5जी की चर्चाएं हैं लेकिन यहां तो 2G भी ठीक से नहीं चलता फिरी पुस्तक पढ़ने वालों पर क्या गुजरती होगी क्या यह केवल साधन संपन्न वर्ग के लिए ही सुविधा उपलब्ध कराई गई है अतः पन्ने पलटने वाली पुस्तक का कोई कोई मुकाबला नहीं। जब चाहे जहां चाहे वहां ले जाओ जितनी देर पढ़ना चाहो उतना पढ़ो अपनी सुविधा अनुसार इंटरनेट पर निर्भरता का कोई विचार नहीं। बधाई श्वेता जी। आज के अंक में चयनित सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  17. बेहतरीन प्रस्तुति
    सुंदर लिंक संयोजन
    सभी रचनाकारों को बधाई
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  18. __________________🌹🌹


    Suno Jaana ________________________🌹🌹
    Mai Akser Sochta Hoon
    Wo Darjen Bhar Mahino Mai
    Sada Mumtaaz Lagta Hai
    November Kis Liye Aakhir
    Humesha Khass Lagta Hai
    Buht Sehmi Huii Subhaain
    Udassi Se Bharri Shaamain
    Dupher Roii Roii Si
    Wo Raatain Khoi Khoi Si
    Wo Thandi Thandi Hawao Ka
    Wo Kam Roshan Ujaalo Ka
    Kabhi Guzere Hawaalo Ka
    Kabhi Mushkil Sawaalo Ka
    Bichar Jaane Ki Mayoussi
    Millan Ki Ass Lagta Hai
    November iss Liye Shayed
    Humesha Khass Lagta Hai __________🌹🌹
    🌹

    🌹

    🌹#akhil kumar___________🌹🌹

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