डर इस बात का है कि ई-बुक के बढ़ते प्रचलन से कहीं पुस्तकों की परंपरा और उत्कृष्ट साहित्य की संस्कृति खत्म न हो जाए। इलेक्ट्रॉनिक किताबें छपी हुई किताबों को नजरअंदाज कर देंगी क्या?
उनकी दो रचनाएँ पढ़िए...
बेपर्दा नज़र आईं जो चन्द बीवियाँ
कोई हँस रहा है कोई रो रहा है
कोई पा रहा है कोई खो रहा है
कोई ताक में है किसी को है गफ़लत
कोई जागता है कोई सो रहा है
वो साया है
तुम्हारा ही..
तलाशो उसे
अपने भीतर
भूलकर अंधेरे को
जला लो फिर से
एक बाती
झांसी की रानी को अपने, अश्कों के अर्घ चढ़ा देना।
आज़ादी की बलिबेदी पर, हँसतें हँसते कुर्बान हुई
उस शूर वीर मर्दानी को, श्रद्धा से शीश झुका देना।
कीर्तिमान नए रचने को कहकर,
लक्ष्य महान राहों में रखकर,
आँखों में नए सपने देकर,
विकास पुरोधा बनकर, बदल रहा ये साल...
ढल कर भी
ज़िन्दगी
ज़िन्दगी ही रहेगी
और अंत में अद्भुत शब्दों के मनमोहक डंक में उलझाते
आदरणीय विश्वमोहन जी की
डेंगू के कहर से त्रस्त मार्मिक अभिव्यक्ति
आदरणीय विश्वमोहन जी की
डेंगू के कहर से त्रस्त मार्मिक अभिव्यक्ति
प्लेटलेट्स की पतवार फंसी 'डेंगी' में।
तुमसे श्वेत तो वो ' एडिस'
काल-दंश-धारी!
चाहे हो राजा या रंक
बिना भेद के मारता डंक।
आज के लिए बस इतना ही
आपके बहुमूल्य सुझावों की
प्रतीक्षा में
काल-दंश-धारी!
चाहे हो राजा या रंक
बिना भेद के मारता डंक।
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंएक वजनदार प्रस्तुति
चौथी प्रस्तुति में और निखार आया है
आभार...
सादर
बेहद खूबसूरत प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंबहुत खुशी हुई
सादल सुप्रभात, नमन ।।।।।
जवाब देंहटाएंललित लवंग लता परिशीलन कोमल मलय समीरे ' शैली में सुन्दर रचनाओं के संकलन से सुवासित हलचल वाटिका इन पंक्तियों को पूरी तरह से चरितार्थ कर रही है:-
जवाब देंहटाएं" अन्तर्मन के आसमान में
रंग बिरंगे पंख लगाकर
उड़ते फिरते सोच के पाखी
अनवरत अविराम निरंतर " बहुत सुदर! बधाई!! बधाई!! बधाई!!!!!!
उम्दा रचनायें
जवाब देंहटाएंशानदार संकलन
कुछ भी हो किताब तो किताब है । सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंविवेचना का गूढ़ विषय..
किताबें...
इनका स्थान कोई नहीं ले सकता...
साधुवाद...
सुप्रभात।
जवाब देंहटाएंआदरणीया श्वेता जी विचारणीय भूमिका के साथ शानदार अंक।
बधाई
सभी चयनित रचनाकारों को शुभकामनाएँ
किताबों का महत्व हमेशा रहेगा..
आभार।
ई पुस्तकों के इस जमाने में भी हमारे लिए तो वही पल ज़िंदगी का होता है जब फूल पौधों से घिरे छोटे से बालकनी गार्डन में एक कप गर्म गर्म चाय हो और साथी हो एक खूबसूरत किताब ! गुलज़ार साहब ने क्या खूब लिखा है -
जवाब देंहटाएं"कभी सीने पे रख के लेट जाते थे
कभी गोदी में लेते थे
कभी घुटनों को अपने रिहल की सूरत बनाकर
नीम-सजदे में पढ़ा करते थे,छूते थे जबीं से
वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइंदा भी
मगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल
और महके हुए रुक्के
किताबें गिरने, उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे
उनका क्या होगा ? वो शायद अब नहीं होंगे !!!
आदरणीया श्वेता जी बेहद खूबसूरत प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंआभार।
बेहद आकर्षक प्रस्तुति आदरणीया श्वेता जी। सार्थकता को पोषित करतीं रचनायें। अभिनव अंक। मेरी रचना को स्थान देने के लिये ह्रदय से आभार। चर्चा में शामिल सभी को बधाइयाँ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति,
हटाएंहाथो मे किताबे,उतनी ही अच्छी लगती है।
जितनी सरदीयों मे हथेलियों के बीच गरम अदरख वाली चाय...!
बेहतरीन संकलन..सभी रचनाकारो को ढेर सारी शुभकामनाऐं.....!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक संयोजन
सभी रचनाकारों को बधाई
सादर
बहुत अच्छी प्रस्तुति | सभी रचनाएं अच्छी लगी | रचनाकारों को बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति. सभी रचनाएँ कमाल की हैं.
जवाब देंहटाएंआदरणीय श्वेता जी, बहुत सुन्दर भूमिका से आगाज़ किया है आज की हलचल का. इ-बुक के बढ़ते प्रचलन के बावजूद पुस्तकों के प्रति रूचि कंही घट रही है तो कंही बढ़ रही है. शायद आप अवगत होंगी, जमशेदपुर में आजकल पुस्तक-मेला चल रहा है. मेले में सभी आयुवर्ग के लोग अच्छी तादाद में पंहुंच रहे हैं. बच्चो और युवाओं का उत्साह देखते बन रहा है.
दो दिन पहले (टांगराइन गाँव- पूर्वी सिंघ्भूम के पोटका प्रखंड का एक सुदूरवर्ती गाँव) के मध्य और प्राथमिक विद्ययालय के बच्चे(अधिकाँश आदिवासी) पुस्तक मेला घूमने आये थे उस विद्यालय के प्रधानाचार्य आदरणीय अरविन्द तिवारी की पहल पर. उनमे से कुछ बच्चे शहर पहली बार आये थे.उन बच्चों का उत्साह और किताबों के प्रति उनका प्यार देखते बन रहा था. मुझे लगता है आज जरुरत है किताबों के प्रति रूचि जगाने की, जैसे अरविन्द जी ने की. किताबों की खुशबू अगर एक बार किसी को भा गयी तो ताजिन्दगी वो उनसे दूर नहीं जा सकता.
पुस्तकमेला में आये प्रकाशक भी खुश है किताबों की बढ़ती बिक्री को देखकर. कुल मिलाकर माहौल आशावान नज़र आ रहा है.
सादर
बहुत सुन्दर.... ई-बुक के नये नये प्रचलन से थोड़े समय जरूर लोग किताबों से दूर रह सकते हैं, पर किताबों की बात कुछ और ही है समय के साथ-साथ फर्क समझ आ ही जायेगा... फिर याद आनी हैं किताबें अपने गाँव की तरह....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पठनीय लिंक संकलन....
नयनाभिराम। करो करो करो आज का अंक बहुत श्रम के साथ बुद्धिमत्ता के साथ तैयार किया गया है। पन्ने पलटने वाली पुस्तक और ई-पुस्तक के बारे में चर्चा प्रासंगिक है। इस वक्त इटावा के अपने गांव में हूं इंटरनेट सेवाएं बदतर हालात में है। एक पेज खोलने में कई मिनट लगते हैं 4जी और 5जी की चर्चाएं हैं लेकिन यहां तो 2G भी ठीक से नहीं चलता फिरी पुस्तक पढ़ने वालों पर क्या गुजरती होगी क्या यह केवल साधन संपन्न वर्ग के लिए ही सुविधा उपलब्ध कराई गई है अतः पन्ने पलटने वाली पुस्तक का कोई कोई मुकाबला नहीं। जब चाहे जहां चाहे वहां ले जाओ जितनी देर पढ़ना चाहो उतना पढ़ो अपनी सुविधा अनुसार इंटरनेट पर निर्भरता का कोई विचार नहीं। बधाई श्वेता जी। आज के अंक में चयनित सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक संयोजन
सभी रचनाकारों को बधाई
सादर
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जवाब देंहटाएंSuno Jaana ________________________🌹🌹
Mai Akser Sochta Hoon
Wo Darjen Bhar Mahino Mai
Sada Mumtaaz Lagta Hai
November Kis Liye Aakhir
Humesha Khass Lagta Hai
Buht Sehmi Huii Subhaain
Udassi Se Bharri Shaamain
Dupher Roii Roii Si
Wo Raatain Khoi Khoi Si
Wo Thandi Thandi Hawao Ka
Wo Kam Roshan Ujaalo Ka
Kabhi Guzere Hawaalo Ka
Kabhi Mushkil Sawaalo Ka
Bichar Jaane Ki Mayoussi
Millan Ki Ass Lagta Hai
November iss Liye Shayed
Humesha Khass Lagta Hai __________🌹🌹
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🌹#akhil kumar___________🌹🌹