आज भी हमारे देश में बाल-विवाह जैसी कुप्रथा प्रचलित है....
अभी दो तीन दिन पहले हिमाचल महिला व बाल विकास विभाग के प्रयासों से दो बच्चियों के बाल-विवाह होने से रोके गये....
बचपन
जो एक गीली मिट्टी के घडे के समान होता है इसे जिस रूप में ढाला जाए वो उस रूप में ढल जाता है । जिस उम्र में बच्चे खेलने - कूदते है अगर उस उमर में उनका विवाह करा दिया जाये तो उनका जीवन खराब हो जाता है ! तमाम प्रयासों के बाबजूद हमारे देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अंत नही हो पा रहा है । बालविवाह
एक अपराध है, इसकी रोकथाम के लिए समाज के प्रत्येक वर्ग को आगे आना चाहिए । लोगों को जागरूक होकर इस सामाजिक बुराई को समाप्त करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए । बाल विवाह का सबसे बड़ा कारण लिंगभेद और अशिक्षा है साथ ही लड़कियों को कम रुतबा दिया जाना एवं उन्हें आर्थिक बोझ समझना । क्या इसके पीछे आज भी अज्ञानता ही जिमेदार है या फिर धार्मिक, सामाजिक मान्यताएँ और रीति-रिवाज ही इसका मुख्य कारण है, कारण चाहे कोई भी हो इसका खामियाजा तो बच्चों को ही भुगतना
पड़ता है ! राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और प. बंगाल में सबसे ख़राब स्थिति है । अभी हाल ही में आई यूनिसेफ की एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है । रिपोर्ट के अनुसार देश में 47 फीसदी बालिकाओं की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में कर दी जाती है । रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 22 फीसदी बालिकाएं
18 वर्ष से पहले ही माँ बन जाती हैं । यह रिपोर्ट हमारे सामाजिक जीवन के उस स्याह पहलू कि ओर इशारा करती है, जिसे अक्सर हम रीति-रिवाज़ व परम्परा के नाम पर अनदेखा करते हैं ।
बाल विवाह को रोकने के लिए सर्वप्रथम 1928 में शारदा एक्ट बनाया गया व इसे 1929 में पारित किया गया । अंग्रेजों के समय बने शारदा एक्ट के मुताबिक नाबालिग लड़के और लड़कियों का विवाह करने पर जुर्माना और कैद हो सकती है । इस एक्ट में आज तक तीन संशोधन किए गए है । शारदा एक्ट महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध नाटक 'शारदा विवाह' से प्रेरित होकर बनाया गया । राजस्थान में बीकानेर रियासत के तत्कालीन महाराजा गंगासिंह ने इसे लागु करने के लिए सर्वप्रथम प्रयास किए थे । इसके पश्चात सन् 1978 में संसद द्वारा बाल विवाह निवारण कानून में संशोधन कर इसे पारित किया गया । जिसमे विवाह की आयु लड़कियों के लिए कम से कम 18 साल और लड़कों के लिए 21 साल निर्धारित किया गया । बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 की धारा 9 एवं 10 के तहत् बाल विवाह के आयोजन पर दो वर्ष तक का कठोर कारावास एवं एक लाख रूपए जुर्माना या दोनों से दंडित करने का प्रावधान है । तीव्र आर्थिक विकास, बढती जागरूकता और शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद भी अगर यह हाल है, तो जाहिर है कि बालिकाओं के अधिकारों और कल्याण की दिशा में अभी काफी कुछ किया जाना शेष है । क्या बिडम्बना है कि जिस देश में महिलाएं राष्ट्रपति जैसे
महत्वपूर्ण पद पर आसीन हों, वहाँ बाल विवाह जैसी कुप्रथा के चलते बालिकाएं अपने अधिकारों से वंचित कर दी जाती हैं । बाल विवाह न केवल बालिकाओं की सेहत के लिहाज़ से, बल्कि उनके व्यक्तिगत विकास के लिहाज़ से भी खतरनाक है । शिक्षा जो कि उनके भविष्य का उज्ज्वल द्वार माना जाता है, हमेशा के लिए बंद भी हो जाता है । शिक्षा से वंचित रहने के कारण वह अपने बच्चों को शिक्षित नहीं कर पातीं ।
आज की प्रस्तुति के आरंभ में आदरणीय साधना वैद जी की सुंदर रचना
अनमना मन
हमको फिर से
मौन रहना
भा गया है !
फिर वही पतझड़ का मौसम
फिर वही वीरान मंज़र
दर्द के इस गाँव का
हर ठौर पहचाना हुआ सा
हैं सुपरिचित रास्ते सब
और सब खामोश गलियाँ
साथ मेरे चल रहा है दुःख
हम साया हुआ सा !
बादलों की ओट से झांकता है चाँद
ये भापूर्ण रचना है.... आदरणीय रेखा जोशी जी
आ गये हम तो यहाँ परियों के देश में
यहाँ चाँदनी पथ पे बिखेरता है चाँद
…………………………………
दीप्त हुआ चाँदनी से चेहरा तेरा
रोशन हुआ आलम जगमगाता है चाँद
........................................... ..........
आदरणीय सुरेन्द्र शुक्ला " भ्रमर" जी अपनी कविता चीख रही माँ बहने तेरी -क्यों आतंक मचाता है
के माध्यम से समझाने का प्रयास कर रहे हैं, उन युवाओं को जिनके कदम आतंकवाद की ओर बढ़ रहे हैं.....
मार-काट नित खून बहाना
कुत्तों सा निज खून चूसना -
खुश होना फिर- कौन मूर्ख सिखलाता है
नाली के कीड़े सा जीवन क्या 'आजादी' गाता है
==============================
कितनी आशाएं सपने लेकर
माँ ने तेरी तुझको पाला
क्रूर , जेहादी भक्षक बनकर
बिलखाया ले छीन निवाला
आदरणीय ज्योति देहलीवाल जी बता रही हैं...
एक इंसान जिसने देशभक्ति की भावना को जाग्रृत करने का सही तरीका बतलाया!
राष्ट्रगान अनिवार्य करवाने के पीछे सरकार की मंशा ज़रुर देशप्रेम की भावना को जाग्रृत करने की रही हो लेकिन किसी भी भावना को कानून के डंडे से जाग्रृत नहीं किया जा सकता। अब सवाल उठता हैं कि देशप्रेम की भावना को जाग्रृत कैसे किया जाए? तो इस सवाल का जबाब दिया हैं तेलंगाना के करीमनगर जिले के जम्मिकुंटा कस्बे के एक पुलिस ऑफिसर प्रशांत रेड्डी ने। उन्होंने गांव के लोगों से बात करके...इसी वर्ष 15 अगस्त के दिन से सभी को राष्ट्रगान के लिए तैयार किया। जब यहां पहली बार राष्ट्रगान हुआ तो लोगों को कुछ भी समझ में नहीं आया। बहुत से लोग तो अपने काम में ही लगे रहें। जो लोग खड़े भी हुए वो सावधान मुद्रा में नहीं थे। लेकिन अब लोगों को राष्ट्रगान के नियमों की पूरी जानकारी हो गई हैं। प्रशांत रेड्डी जी की पहल से वहां के लोगों में देश के प्रति सम्मान बढ़ रहा हैं।
आदरणीय जयन्ती प्रसाद शर्मा की लघु-कथा
स्वाभिमान
शान्त स्वर में कहा “ठीक है तुम रहो, मैं जा रहा हूँ"।
अगले ही पल स्वाभिमानी पिता का निस्पंद शरीर कुर्सी पर लुढ़क गया।
आदरणीय पल्लवी सक्सेना जी के विचार....
प्रद्युम्न ह्त्या कांड (बच्चे तो आखिर बच्चे ही होते हैं)
यह कैसी मानसिकता है आज कल कि नयी पीढ़ी की प्रद्युम्न हत्या कांड अपने आप में बहुत से सवाल उठता है। लोग कहते है प्रतियोगिता का ज़माना है, आगे बढ़ना उतना ही ज़रूरी है जितना जीने के लिए सांस लेना। लेकिन कोई यह क्यूँ नहीं कहता कि प्रतियोगिता का दौर तो हमेशा से रहा है। लेकिन सवाल यह उठता है कि आज की पीढ़ी में इतना आक्रोश क्यूँ ? अपने लोगों में अर्थात अपने यार दोस्तों में अपनी बात को सही सिद्ध करने के लिए व्यक्ति किसी की जान ले लेने पर अमादा हो जाये। परीक्षाएँ पहले भी होती थी। प्रतियोगिता का दौर तभी था। बल्कि पहले तो बहुत ज्यादा था जब बच्चों के पास महज डॉक्टर, इंजीनियर, वकील बहुत हुआ तो सरकारी कर्मचारी बनाना सर्वाधिक महत्वपूर्ण हुआ करता था। इस के अतिरिक्त तो कोई और विकल्प सोचा भी नहीं जा सकता था। परंतु आज तो ऐसा नहीं है। बल्कि आज तो सफलतापूर्वक जीवन जीने के इतने संसाधन
हो गए है कि मेरे जैसे लोगों तो बहुत से विषयों के बारे में ठीक तरह से पूरी जानकारी भी नहीं है। फिर आज भी क्यूँ छात्रों/छात्राओं का जीवन अंकों में सिमटी ज़िंदगी की तरह हो गया है। अंक नहीं तो मानो जीवन नहीं, अंक न हुए मानो जल हो गया। जल ही जीवन है से बात पलट कर अंक ही जीवन है हो गयी है।
अब अंत में...आदरणीय महेन्द्र वर्मा जी की खूबसूरत रचना....
पूजा से पावन
चेहरे उनके भावशून्य हैं आखों में भी नमी नहीं,
वे मिट्टी के पुतले निकले पहले जो इन्सान लगे ।
उजली-धुँधली यादों की जब चहल-पहल सी रहती है,
तब मन के आँगन का कोई कोना क्यों वीरान लगे ।
धन्यवाद।
शुभप्रभात भाई जी
जवाब देंहटाएंसमाज की कुरीतियों पर एक विशेष रचना
एक अच्छा अँक
सादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति कुलदीप जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज की हलचल ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार कुलदीप जी !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचनायें
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन
लाज़वाब प्रस्तुति,बाल विवाह जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे को पटल पर रखकर आपने चर्चा के लिये सबका ध्यान आकर्षित किया है.इस प्रकार की कुरीतियों को दूर करने के लिय सामाजिक जागरुकता आवश्यक है,कानून इसमें बहुत कुछ नहीं कर पाता .
जवाब देंहटाएंसभी रचनायें बहुत अच्छी हैं. सभी चयनित रचनाकारों को बधाई.
सादर
बाल विवाह पर सुंदर चर्चा।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, कुलदीप जी।
महत्वपूर्ण मुद्दे के साथ सुंंदर प्रस्तुति सभी चयनित रचनाकारों को बधाई
जवाब देंहटाएंआभार
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआप सभी सुधीजनों को "एकलव्य" का प्रणाम व अभिनन्दन। आप सभी से आदरपूर्वक अनुरोध है कि 'पांच लिंकों का आनंद' के अगले विशेषांक हेतु अपनी अथवा अपने पसंद के किसी भी रचनाकार की रचनाओं का लिंक हमें आगामी रविवार तक प्रेषित करें। आप हमें ई -मेल इस पते पर करें dhruvsinghvns@gmail.com
जवाब देंहटाएंतो आइये एक कारवां बनायें। एक मंच,सशक्त मंच ! सादर
आदरणीय कुलदीप जी सर्वप्रथम आपको इस विचारणीय भूमिका हेतु बधाई। सभी रचनायें उम्दा !
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक संकलन....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह! कुलदीप जी बहुत-बहुत बधाई आपको इस समाजोपयोगी विचारोत्तेजक भूमिका के साथ बेहतरीन अंक प्रस्तुत करने के लिए। इसन के लिए चयनित सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं। आभार सादर। समय अभाव के कारण समय पर उपस्थित नहीं हो सका क्षमा चाहता हूं।
जवाब देंहटाएं