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मंगलवार, 14 नवंबर 2017

851...बच्चों के लिये स्वस्थ्य सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण में बड़ा होने की अनुमति और अवसर प्रदान करें....



जय मां हाटेशवरी.......
सोच रहा हूं....
आज बाल-दिवस पर आयोजित होने वाले किसी सामारोह में....
सड़क पर भीख मांगते हुए बच्चों के लिये भी कोई घोषणा होगी?...
जिन मासूमों को ढाबों या कारखानों में काम करते हम अक्सर देखते हैं, 
क्या उनके पुनर्वास के  बारे में भी कुछ सोचा जाएगा ?....
बच्चों तक नशीले पदार्थ पहुंचाने वाले तस्करों  की सूचना देने वालों को 
प्रोत्साहित करने के लिये भी कोई योजना बनेगी क्या ?.....
एक मासूम बालक, अपराधी क्यों बनता है,  कहीं इस पर भी मंथन होगा क्या ?....
जो माता-पिता नशे में या अन्य किसी कारण से अपने बच्चों  की अनदेखी करते हैं. 
अर्थात उनकी देख-भाल नहीं करते, ऐसे माता-पिता को कड़ी से 
कड़ी सजा देने वाला कोई कानून बनेगा क्या?...
आज बाल दिवस के अवसर पर 
कुछ मजदूरों के बच्चे तो साहित्यकार बनने की और अग्रसर हैँ
तो कुछ सड़क का कचरा बीन कर नशे की दौड़ मे शामिल हैं...
प्रस्तुत है दोनों प्रकार की झलकियाँ.....
 चाह है मेरी की दुनियां घूमूँ ,
हर जगह मस्ती में झूमूँ | 
देखूं मैं नई किरणों का शहर,
जंहा न हो दुश्मनों का कहर | 
पद यात्रा से  हवाई यात्रा करूँ ,
आसमान में जाकर नई साँस भरूँ | 

When a little bird try to fly,
fall down many times but not shy.
till it rise up and then try. 
but its little unique,
not help him to fly.  
अनपढ़ों को पढ़ाता है तू, 
सबके दिल को छू जाता है तू | 
इस देश के वासियों को, 
अच्छी बातें है बताता तू | 


 महान व्यक्ति के साथ ही राष्ट्रीय सम्पत्ति भी माना जाता है। वैयक्तिक रुप से, माता-पिता, अभिभावक और पूरे समाज के रुप में हमारा एक नैतिक कर्तव्य है कि हम बच्चों के लिये स्वस्थ्य सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण में बड़ा होने की अनुमति और अवसर प्रदान करें ताकि वो जिम्मेदार नागरिक, शारीरिक रुप से तंदरुस्त, मानसिक सतर्क और नैतिक रुप से स्वस्थ्य बन सकें। ये राज्य का कर्त्तव्य है कि वो 
सभी बच्चों को उनकी बढ़ती हुई आयु की समयावधि पर विकास के लिये समान अवसर प्रदान करे जो असमानता को कम करके और सामाजिक न्याय को सुनिश्चित कर सके। बच्चों से आज्ञाकारी, 
बड़ों का आदर करने वाला और अपने अंदर अच्छे गुणों को धारण करने वाले होने की अपेक्षा की जाती है। हालांकि, बहुत से कारणों के कारण बच्चों का एक निश्चित प्रतिशत पहले से कही हुई सामाजिक और वैध उक्तियों को नहीं मानते। इस तरह के बच्चे अधिकतर अपराधिक गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं 
जिसे बाल अपराध या किशोर अपराध के रुप में जाना जाता है।



आजकल उत्तर-प्रदेश में नगरपालिका चुनावों का दौर चल रहा है और ऐसे में गली गली घूमकर नेतागण प्रचार के कार्य में जुटे हैं चलिए ये सब तो सही है किन्तु अगर कुछ नागवार गुजर रहा है तो वह है बच्चों द्वारा चुनाव प्रचार .बच्चे अपनी साइकिलों पर घूमकर कहीं हाथी तो कहीं हवाई जहाज का प्रचार करने में जुटे हैं और
ये सब जानते हैं कि बच्चे कुछ भी बगैर लालच के नहीं करते और वह भी वह काम जिससे उनका कोई सरोकार नहीं कोई मतलब नहीं लेकिन वे पूरे जोश से जुटे हैं नेतागण की जिंदाबाद करने में क्योंकि उन्हें लालच दिया जा रहा है चॉकलेट का टॉफ़ी का और इनके लालच में वे वोट मांग रहे हैं जिसके बारे में उन्हें कुछ पता भी नहीं और पता होने की अभी कोई ज़रुरत भी नहीं क्योंकि अभी उन्हें जीवन में पढ़ना है ,बहुत कुछ सीखना है .


अन्य रचनाएँ.....


याद है घुँघरू का बजना रात के चोथे पहर
क्या चुड़ेलों की कहानी, है अभी तक गाँव में ?
लौट के आऊँ न आऊँ पर मुझे विश्वास है
जोश, मस्ती और जवानी, है अभी तक गाँव में

 मेरे विचार मेरी अनुभूति

है धर्म कर्म शील सभी व्यक्ति जागरूक
दिन रात परिक्रमा करे’ दिनकर कहे बग़ैर |
दुर्बल का’ क़र्ज़ मुक्ति सभी होनी’ चाहिए
क्यों ले ज़मीनदार सभी कर कहे बग़ैर |

रोज की बात
कुछ अलग
बात होती है
मान लेते हैं

छुट्टी के
दिन ही सही
एक दिन
का तो
पुण्य कर
लिया कर

आजाद जी आए और गप्‍प शप्‍प होने लगी । बातचीत में उन्‍होने कहा गुरूजी चाए तो बहाना है दरअसल मैं आपको कुछ दिखाना चाहता हूं। मैंने कहा, हां हां दिखाओ। आजाद जी ने एक परिचय कार्ड मेरे हाथों में दिया। गौर से देखा तो वह बार को‍ंसिल ठियोग का परिचय पत्र था। आजाद जी ने विधि स्‍नातक की 
उप‍ाधि प्राप्‍त कर ली थ्‍ाी और पंजीकरण भी करवा लिया था।
आजाद जी मुझे आभार देते हुए कह रहे थे आपने जो रास्‍ता दिखाया उससे ही ये सम्‍भव हो पाया। 
आभार तो आजाद जी का जिन्‍होने मुझे याद रखा मैं तो मात्र माध्‍यम बना

कौन सा बल है तुम मे,
जो धरा के मनुष्य मे नही
यदि होता तो मेरे लिए सरल होता
प्रतिदिन टूटते इन अश्रुओं के बांध को
एक स्थायित्व देना

कल पोते और बहू का सूरज पूजन भी था तो कुछ सामान लेने बाजार गये, वहाँ एक वृद्ध महिला ट्राली खेंच रही थी, कांपते हाथ से, अकेले सामान लेने आना मुझे जन्मदिन मनाने का कडुवा सच दिखा गया। स्वयं से खुश होते रहो, स्वयं ही जिन्दा रहो और स्वयं ही अपने लिये खुशी का माध्यम बनो। बस सब आपको इस दिन हैपी बर्थ-डे बोल देंगे लेकिन वृद्ध होते हुए आप समझ नहीं पाते कि अकेले ट्राली खेंचते हुए जीने का सुख क्या है? नवीन सोसायटी को देखकर लगता है कि हम एक दायरे में अलग-अलग बन्द हैं,
युवा अपने दायरे में हैं और बच्चे अपने। वृद्धों के लिये धीरे-धीरे जगह कम होती जाती है, या वे ही खुद को अलग कर लेते हैं, लेकिन पुराने जमाने में परिवार ही सभी का दायरा होता था, सब मिलकर ही ईकाई बनते थे। अमेरिका में परिवार का सच समझ आने लगा है, भारतीय लोग अब परिवार को साथ रखने में खुश दिख रहे हैं, लेकिन बड़े ही शायद आश्वस्त नहीं हो पा रहे हैं और हमें अकेली ट्राली खेंचती हुई भारतीय वृद्ध महिला जन्मदिन का महत्व दिखा रही है। हम परिवार के लिये उपयोगी बनें, सारा परिवार एक आत्मीय भाव से बंधा रहे और हम उस दिन कुछ देने की परम्परा को पुन: जीवित करें। मैंने अपना जन्मदिन आप लोगों की बधाई लेते हुए और पोते का सूरज पूजन कर, सूरज का आभार मानते हुए बिताया। आए हुए मेहमानों को हाथ से बनाकर भोजन खिलाया तब लगा कि हम अभी देने में सक्षम हैं। आप सभी का आभार, जो एक परिवार की भावना
प्रकट करती है, हम एक दूसरे को खुशियां देकर खुश होते हैं और यही भाव हमेशा बना रहे। मैं भी आप लोगों के लिये कुछ अच्छा करूं, अच्छे विचारों का आदान-प्रदान हो, बस यही कामना है।



वे शकुन्तला थीं
जिन्होंने भरत को
भरत बनाया था
आज की शकुन्तला
भरत को
भर्त्सना से भरती हैं।
कहानियाँ नहीं बदलीं
पात्र नहीं बदले
बस समय बदल गया है
चरित्र बदल गया है
पटकथा का रुख बदल गया है।।


धन्यवाद।

20 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात....
    बाल दिवस पर अशेष शुभ कामनाएँ
    बढ़िया प्रस्तुति..
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. ऊषा स्वस्ति।
    भाई कुलदीप जी बाल-दिवस विशेषांक की रचनाऐं ख़ूबसूरत और विचारणीय हैं। बधाई आपको शानदार प्रस्तुतीकरण के लिए। बाल कवियों का सृजन मनमोहक और फ़ख़्र करने वाला है। आपकी भूमिका में व्यक्त की गयी चिंता जाएज़ है. बचपन के प्रति बेरुख़ी,भुखमरी ,बेकारी ,ग़रीब परिवारों में शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति विवशताभरी उदासीनता , संस्कारहीनता और परवरिश के लिए अनुकूल उपयुक्त माहौल न मिलना भारत में भटकाव की ओर बढ़ते बच्चों की दुर्दशा के कुछेक कारण हैं। नेहरू जी ने अपना जन्मदिवस बच्चों को समर्पित किया था इसलिए 14 नवम्बर बाल-दिवस के रूप में चर्चित हुआ।
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं। आभार सादर।

    जवाब देंहटाएं
  3. बच्चे और वृद्ध दोनों को शामिल रखना अच्छा लगा
    हम शुतुरमुर्ग हैं

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर बालदिवस अंक। आभार कुलदीप जी 'उलूक' की बकवास को भी जगह देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  5. विचारणीय भूमिका के साथ सुंदर बालदिवस विशेषांक की प्रस्तुति, सभी चयनित रचनाकारों को बधाई
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  6. bal divas ke avsar par bahut sundar v sarthak links kan chayan kiya hai kuldeep ji. meri post ko sthan dene hetu hardik dhanyawad.

    जवाब देंहटाएं
  7. बाल दिवस पर अनेक प्रश्न करती आजकी पोस्ट ...
    आभार मुझे भी जगह देने का आज के दिन ...

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही उम्दा बाल दिवस विशेषांक

    जवाब देंहटाएं
  9. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत अच्छी सामयिक प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  11. आदरणीय कुलदीप जी,आज बाल दिवस के विशेष अंक में आपकी लिखी भूमिका मन झकझोरने वाली है।

    नन्हें फूल न मुरझाये धूप जरा सी तेज है।
    कर दो छाया घनी ममत्व की तुम इंसान हो
    नही टूटेगे पंख हथेलियों पर रखना जरा सा
    फिर न भय होगा गर नीड़ कंटकों की सेज है ।।

    आज प्रस्तुति अत्यंत सराहनीय है सभी रचनाएँ बहुत ही उम्दा है। सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं असीम शुभकामनाएँ मेरी।

    जवाब देंहटाएं
  12. सुन्दर प्रस्तुति हमेशा की तरह।
    आभार मुझे भी जगह देने का आज के मंच पर ...

    जवाब देंहटाएं
  13. Wowww yaar Bohat Badiya Article tha. Bohat ache se btaya ap ne. Thank you so much itna sab kuch btane ke liye aur sare doubts clear karne ke liye

    जवाब देंहटाएं
  14. अच्छे विचार लिखे है आपने
    https://www.hindidarshan.com/digital-india-saksarta-yojana/

    जवाब देंहटाएं

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