८ नवम्बर२०१७
नमस्कार:सर्वेषाम्
अथ श्री विचारणीय कथ्य से..
लेखन के पहलूओं पर चर्चा करते हुए
रचनात्मक स्वत्रंता के अंर्तगत हिंग्लिश लेखन विधा कहाँ है ?
हिंदी भाषा की पठनीयता के संकट और लेखन की विधा के बीच कड़ी बन
रही या विवशता है आजकल हिंदी की ..नए पाठक तलाशने की..
कहीं भाषा पर टेक्नोलॉजी का
प्रभाव तो नहीं..
ये बरतरी के पैमाने जुदा हो गए है..
राफ्ता-राफ्ता हम जो मार्डन होते जा रहे है..✍
विचाराधीन तथ्यों को आप सभी के समक्ष
छोड़ कर अब आगे बढते हुए
प्रस्तुत लिकों पर नज़र डाले..
भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं,
स्वधर्म में मरना भी पड़े तो ठीक है
परधर्म नहीं अपनाना चाहिए. स्वधर्म का
अर्थ यदि हम बाहरी संप्रदाय को लेते हैं, तो..
अंतर तक छूती सुंदर रचना विश्वमोहन जी की..
चारू चंद्र की चंचल चांदनी की चादर में
पूनम तेरी पावस स्म्रृति के सागर में
प्रेम के पीयूष के मुक्तक को मैं चुगता हूँ.
विरम सिंह जी की रचना फिल्मों से चर्चा में
चित्तौड दुर्ग की बुझी राख में बीती एक
कहानी है.
जलते दीपक में जौहर की वीरों याद
पुरानी है
चूल्हों की अग्नि में देखो पद्मावती
महारानी है
ज्वलंत विषय आरक्षण पर अरुण साथी जी की लेख
अंत में सुंदर भावपूर्ण मन के संवादों से सजी रचना पुरुषोत्तम जी..
युँ ही उलझ पड़े मुझसे कल सवेरे-सवेरे,
वर्षों ये चुप थे या अंतर्मुखी थे?
संग मेरे खुश थे या मुझ से ही दुखी थे?
सदा मेरे ही होकर क्युँ मुझ से लड़े थे?
सवालों में थे ये अब मुझको ही घेरे!
फिलहाल अब इज़ाज़त लेती हूँ..
इति शम
पम्मी सिंह
धन्यवाद...✍
शुभ प्रभात सखी पम्मी जी
जवाब देंहटाएंअच्छी व सुथरी रचनाएँ
सादर
सादर आभार आदरणीय पम्मी जी तथा आभार हलचल।
जवाब देंहटाएंऊषा स्वस्ति। विचारणीय अग्रलेख और ज्वलंत विषयों को समेटे रचनाएं। तकनीक के साथ भाषा का भी विकास होता है नए शब्द सृजित होते रहते हैं। इंग्लिश अर्थात हिंदी उर्दू संस्कृत और अंग्रेजी भाषा के शब्दों से मिलकर बनी एक जनसामान्य की भाषा। हिंदी के विकास के लिए जो सरकारी प्रयास किए जाते हैं वह नाकाफी हैं केवल नारे भर हैं। शब्दों को अछूत नहीं समझना चाहिए विश्व में जिन भाषाओं ने विकास किया है उन के अध्ययन से यह बात स्पष्ट हुई है कि उनमें अन्य भाषाओं के शब्दों को अपनाने की लचकदार प्रवृत्ति विद्यमान है। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं। आभार सादर।
जवाब देंहटाएंकृपया इंग्लिश को हिंग्लिश पढ़ें। धन्यवाद।
हटाएंसस्नेहाशीष संग शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुतीकरण
शुभप्रभात पम्मी जी,
जवाब देंहटाएंआपने समसामयिक हिंदी के हिंग्लिश पर आपकी चिन्ता सही है। तकनीकी विकास अपने साथ त्रुटियाँ भी लेकर आया है ये हमारी जिम्मेदारी है कि आने वाली पीढ़ी को सही जानकारी मिल पाये।
बहुत सुंदर प्रस्तुति एवं सारी रचनाएँ सराहनीय है। सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
बोलिया भी है कई
जवाब देंहटाएंऔर अंततः
यही होता है
ज्ञान...
-यशोदा
मन की उपज
हिंगलिश भी बोली का भाषिक संक्रमण है!सुन्दर प्रस्तुतीकरण ! आभार!
बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंआज का संकलन बहुत बढ़िया बहुत अच्छी जानकारी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति एवं सारी रचनाएँ सराहनीय है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंको चयन । मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंहर बार की तरह सुंदर प्रस्तुति..आभार पम्मी जी !
जवाब देंहटाएंवाह ! खूबसूरत संकलन ! बहुत खूब आदरणीया ।
जवाब देंहटाएंwaah
जवाब देंहटाएंसुंदर रचनाएँ पढ़वाईं पम्मीजी ने...सादर आभार ।
जवाब देंहटाएंभूमिका में विचारणीय विषय को उठाया है । बच्चे पढ़ते हैं अंग्रेजी माध्यम में... घरों में, रास्तों पर, बाजार में, मित्र पड़ोसियों में बात करते हैं हिंदी में...
फिर राज्य की भाषा भी सीखते हैं थोड़ी थोड़ी !
खिचड़ी नहीं पकेगी भाषा की, तो और क्या होगा ?
कोशिश करते रहेंगे हम कि हिंदी का शब्दभंडार बढ़ता रहे, हिंदी को सरल शुद्ध रूप में बोलने को प्रोत्साहन देते रहेंगे।
सुन्दर प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन....
जवाब देंहटाएंआदरणीया पम्मी जी आज का संकलन अच्छा लगा विशेषरूप से विश्वमोहन जी की कृति सभी रचनायें सुन्दर ! प्रस्तुति विशेष लगी आपकी।
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