दो दिन बाद हिमाचल में विधान सभा चुनाव है....
कोठखाई की रेप-पिड़िता गुड़िया को इनसाफ तो नहीं मिल सका....
पर विपक्षियों को उमीद है कि ये मुद्दा उन्हे कुछ वोट अवश्य दिला सकता है....
गुड़िया के इन्साफ की लड़ाई के लिये सुनाई दे रहा शोर तो....घटना के कुछ दिनों बाद ही थम गया था....
बचा-खुचा शोर भी 9 नवंबर यानी चुनाव के बाद थम जाएगा....
जिन पर सुरक्षा की जिम्मेवारी थी....वो चंद पैसों में बिक गये थे....
बहशी दरिंदे खुले आम घूम रहे हैं....
ओ गुड़िया! अब तुझे इनसाफ नहीं मिलेगा....
चुनाव के बाद तो सब कुछ ही नया होगा....
"गुड़िया हम शरमिंदा है....
तेरा कातिल जिंदा है...."
आख़िरी कदम
हम जब एक लम्बा सफ़र
तय कर लेते हैं,
तो एक आख़िरी कदम बढ़ाना
इतना मुश्किल क्यों हो जाता है,
या फिर आख़िरी कदम
वही क्यों नहीं बढ़ा लेता,
जिसने कोई सफ़र किया ही न हो.
ज़िंदगी के गीत खुल के गाइए ...
होंसला मजबूत होता जाएगा
इम्तिहानों से नहीं घबराइए
फूल, बादल, तितलियाँ सब हैं यहाँ
बेवजह किब्ला कभी मुस्काइए
हिन्दू आतंक का वक्तव्य निराधार है
इसी संदर्भ में दक्षिण भारतीय फिल्मों के चर्चित अभिनेता कमल हासन ने किसी पत्र के लिए लिखे गए अपने आलेख में भारत में बढ़ते हिन्दू आतंक को लेकर अपना रोष प्रकट किया है। कमल जैसे अभिनेता, जो अपनी विभिन्न फिल्मों में बुराई के परिहार हेतु उग्र हिंसा का सहारा लेकर अच्छाई स्थापित करने का संदेश देते रहे हैं,
समझ नहीं आता कि वैश्विक स्तर पर आतंक फैलाने के लिए सिद्धदोषी मुसलिम आतंकी समूहों, इन समूहों के सरगना मुसलिम आतंकियों को आतंकी न कहकर, वे हिन्दुओं को किस आतंक के लिए आतंकी कह रहे हैं। भारत में मुसलिमों द्वारा फैलाए जा रहे आतंकवाद का दमन करने के लिए हिन्दुओं ने ऐसी आतंकी गतिविधियों पर पिछले तीन वर्षों में राजनीतिक, सामाजिक व व्यक्तिगत रूप में अत्यधिक साहसी प्रतिक्रिया दिखाई है, तो इसमें गलत क्या है। क्या भारत के नागरिक आत्मरक्षा तथा राष्ट्रीय गौरव के सम्मान हेतु वैश्विक स्तर पर दोषी मुसलिम आतंकवादियों का विरोध भी न करें। क्या हिन्दुओं द्वारा किया जानेवाला ऐसा विरोध हिन्दू आतंक कहलाएगा? क्या
कमल हासन या कोई भी व्यक्ति अपनी जान की रक्षा के लिए प्रतिहिंसा नहीं करता? हिन्दू भी आत्मरक्षा में प्रतिहिंसा ही कर रहा है। ऐसा करना विरोधाभासी निर्णयों के लिए ख्यात राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय कानून में भले ही अपराध आंका जाता हो, लेकिन न्याय के प्राकृतिक सिद्धांत के अनुरूप आत्मरक्षा हेतु यही एकमात्र
उपाय है।
अन्दाज नहीं आ पाता है हो जाता है कब्ज दिमागी समझ में देर से आ पाता है पर आ जाता है
लिखने की
सोचने तक
नींद के आगोश
में चला जाता है
सो जाता है
कब्ज होना
शुरु होता है
होता चला
जाता है
भूपेन हजारिका जी की छटी पुण्यतिथि
नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई, निर्लज्ज भाव से बहती हो क्यूँ. . . .
इतिहास की पुकार, करे हुंकार, ओ गंगा की धार, निर्बल जन को सबल संग्रामी, समग्रगामी. . बनाती नही हो क्यूँ. . . .
ज्वालामुखी मुहाने जन्में , क्या चिंता अंगारों की !
प्यार बाँटते, दगा न करते , भीख न मांगे दुनिया से !
ज्वालामुखी मुहाने जन्में , क्या चिंता अंगारों की ! -सतीश सक्सेना
व्यामोह
पहले छोटी-छोटी चीज़ें भी
कितना खुश कर जाती थीं
मोगरे या सेवंती के फूलों का
छोटा सा गजरा,
काँच के मोतियों की सादी सी माला,
एक मीठा सा गीत,
एक छोटी सी कहानी,
कल कल झर झर बहता झरना,
गगन में उन्मुक्त उमड़ते घुमड़ते
बेफिक्र काले ऊदे बादल,
खूब ऊँचाई पर आसमान में लहराते
दिल के आकार के लाल नीले गुब्बारे,
पेंच लड़ाती रंग बिरंगी पतंगें,
झुण्ड बना कर दूर क्षितिज तक
उड़ान भरते चहचहाते पंछी !
और मन कभी भूले से भी
मुरझाता न था !
ये मेरे हाथ जो छूते हैं मुझे...
जब हम अकेले होते हैं हज़ारों लोगो के साथ। जब आपके साथ होता है सृष्टि का अकेलापन, युगों का अकेलापन, समय का अकेलापन और स्थानों का अकेलापन। जब आपके साथ होता है ईश्वर का अकेलापन। अकेलापन जो संतान नहीं होता। अकेलापन जो सहवासी होता है आपका। जो रहता है आपके साथ यात्राओं में, घरों में, सड़कों पर, पहाड़ों पर, गाड़ियों में और विचारों में। अकेलापन जो नहीं छोड़ता कभी आपका साथ, कहीं भी, कभी भी। चला जायेगा यह कुछ समय के लिए आपसे दूर, अलग कहीं। पर रहता है हमेशा किसी कोने में खड़ा मुस्कुराता क्योंकि लौट के उसे आना ही है आपके साथ, आपके मर जाने के बाद भी। एक ही साथी जो कभी नहीं छोड़ता हमारा साथ बाकी सांसारिक संबंधों की तरह। और हम चाहते हैं हमेशा इससे पाना छुटकारा। पर क्या संभव है अपनी आत्मा से छुटकारा पा लेना? खुद से छुटकारा पा लेना? अकेलेपन से छुटकारा पा लेना, हमेशा के लिए? मानिये या न मानिये, पर कभी न कभी हम सब अकेले रहे हैं और कभी न कभी अकेले रह जायेंगे। यह प्रश्न भी लग सकता है और उत्तर भी, समस्या भी और समाधान भी, नकारात्मक भी और सकारात्मक भी। पर जो सन्देह से परे है और जो अटल है, वह सत्य है।
"पिछले हपते....
नैट ने बीच में ही साथ छोड़ दिया था....
सबसे खतरनाक होता है....
मजधार में फंसना...
इन दो रचनाओं के रचनाकारों को तो सूचना भी दे चुका था....
अंत में पेश है....
वे दोनों रचनाएं...
दहेज प्रथा भी एक आतंकवाद है
- जापान में लोग पैसा इकट्ठा करते हैं, ताकि वे कारोबार शुरू कर सकें।
- अमरीका में लोग पैसा इकट्ठा करते हैं, ताकि वे दुनिया घूम सकें।
- इंग्लैंड में लोग पैसा इकट्ठा करते हैं, ताकि आराम की जिंदगी जी सकें।
- चीन में लोग पैसा इकट्ठा करते हैं, ताकि उनकी औलाद तरक्की कर सके।
- भारत में लोग पैसा इकट्ठा करते हैं, ताकि बेटी की शादी कर सकें। इसके लिए बाप सूदखोरों से ऊंची दर पर कर्ज लेता है, अपनी जमीन गिरवी रखता है। फिर उस कर्ज की किस्तें चुकाने के लिए जिंदगी भर सूदखोर का गुलाम बना रहता है। उसकी औलाद तकलीफों का सामना करती हैं। वे गलत रास्ते पर भी जा सकती हैं।
इस तरह दहेज प्रथा तमाम बुराइयों की जड़ है। यही वजह है कि लोग भ्रूणहत्या जैसा कदम उठाते हैं। दहेज देने से बेहतर है कि बेटी को शिक्षा दीजिए, उसकी पढ़ाई बंद मत कराइए। जो लोग दहेज मांगें, उनका रिश्ता ठुकराने का हौसला रखें।
कोई माने या न माने, दहेज प्रथा भी एक आतंकवाद है। इसमें एक बेगुनाह बाप की चीखें बारातियों के शोर में खो जाती हैं।
ओ माय गॉड...इस इक्किसवी सदी में भी किराए पर मिलती हैं बीवियां!!!
मध्यप्रदेश के शिवपुरी में ‘धड़ीचा प्रथा’ प्रचलित हैं। इस प्रथा अनुसार यहां हर साल एक मंडी लगाई जाती हैं जिसमे भेड़-बकरियां, गधे-घोडे नहीं लड़कियों को खड़ा किया जाता हैं। यहां हर साल पुरुष आते हैं और अपनी मनपसंद की लड़की को चुनकर उसकी किमत तय करते हैं। इन लड़कियों और महिलाओं की बोली 12,000 रुपए से लेकर 25,000 रुपए तक लगाई जाती हैं। किराए की राशी इस बात पर निर्भर करती हैं कि युवा महिला का परिवार कितना गरीब हैं और उसे पैसों की कितनी जरुरत हैं। इतना ही नहीं सौदेबाजी होने के बाद बाक़ायदा 10 रुपए से लेकर 100 रुपए के स्टाम्प पेपर पर लिखा पढ़ी करके शादी की मंज़ूरी दी जाती हैं। सौदे का समय पूरा होने के बाद महिला को दूसरे व्यक्ति को बेचा जाता हैं। मासिक आधार से लेकर सालाना के हिसाब से गरीब घरों की लड़कियों और महिलाओं की शादी उन अमीरजादों से कराई जाती हैं, जो अपने लिए पत्नियाँ नहीं ला सकते।
खराब लिंगानुपात के कारण इस कुप्रथा को बढ़ावा मिल रहा हैं। लड़कियों की कमी ने दलालों और बिचौलियों को प्रेरित किया हैं कि वे गरीब परिवारों की लड़कियों को इस काम में लगाएं। ये कुप्रथा कई सालों से हमारी संस्कृति में घुल गई हैं। चौंकाने वाली बात यह हैं कि आज तक इसके खिलाफ़ कोई कारवाई नहीं की गई हैं। सर्कस में,
सिनेमा में जानवरों को इस्तेमाल पर रोक लगानेवाला मानवाधिकार आयोग का इस ओर आज तक ख्याल ही नहीं गया! ऐसा प्रतीत होता हैं कि गरीब परिवारों की महिलाएं और लड़कियों की कीमत इन जानवरों से भी गई बिती हैं! ''बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं'' की केंद्र सरकार की योजना के बाद भी हमारे अपने देश में बेटियों को भेड़-बकरियों की तरह बेचा जा रहा हैं! ताज्जुब की बात तो यह भी हैं कि आज तक बड़ी-बड़ी नारी सशक्तिकरण की संस्थाओं ने भी इनकी सुध नहीं ली!
धन्यवाद।
शुभ प्रभात भाई कुलदीप जी
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति
सादर
आदरणीय कुलदीप जी
जवाब देंहटाएंसुप्रभात।
विचारणीय भूमिका के साथ बहुत हु उम्दा लिंकों की प्रस्तुति की है आपने। सारी रचनाएँ एक से बढ़कर एक है पढ़कर बहुत अच्छा लगा। बहुत सुंदर संकलन है।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
Dhanyawad Ji
जवाब देंहटाएंसुप्रभात..
जवाब देंहटाएंसुंदर रचनाओं का संकलन के साथ उम्दा विचारणीय प्रस्तुति। धन्यवाद
बहुत ही बढ़िया सार्थक हलचल प्रस्तुति। उम्दा चर्चाओं और रचनाओं का गुलदस्ता। सभी रचनाकारों को बधाईयाँ
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति। आभार कुलदीप जी 'उलूक' के कब्ज का भी जिक्र करने के लिये।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचनाओं का संकलन!!! आभार!!!
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संकलन परन्तु कुछ लेखकों के मत विरोधाभास प्रतीत होते हैं। हमारा संविधान "धर्मनिरपेक्ष"की बात करता है इसमें यह तर्क कि यह हम पर थोपा गया है। गले नहीं उतरता !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक संकलन,बेहतरीन प्रस्तुतिकरण....
जवाब देंहटाएंसुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज की हलचल ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद कुलदीप जी ! हार्दिक आभार !
जवाब देंहटाएंसार्थक सूत्रों के साथ हलचल ...
जवाब देंहटाएंआभार मुझे भी शामिल करने का ...
बढ़िया लिंक ,आभार आपका !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात। भाई कुलदीप जी विचारणीय अग्रलेख आपका जिसमें ओज और पीड़ा का भाव भी महसूस होता है। समाज के विभिन्न अवयवों की प्रतिध्वनि आपके अंक में। चिंतन जरूरी है ऐसे विषयों पर ताकि सर्वमान्य हल के साथ हम आगे बढ़ सके समाज में सामंजस्य स्थापित बना रहे। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं। आभार सादर।
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