शुभ रविवार....
"सुघड़ गृहणी ".......रेवा टिबड़ेवाल
आँखों से अब
आँसू नहीं बहते
जज़्ब हो गए हैं कोरों मे ........
दिल भी अब
दुखता नहीं
बांध दिया है सिक्कड़ों से
आसमान के वर्तमान को या
अपने अतीत को
और उन छवियों में
अपनों को तलाशती
मैं तुम्हें देख पा रही हूँ
आशाएं.....कमलकिशोर पाण्डेय
'स्व' तक सीमित और दिखावे वाले
महानगर में भी
बेहोशी आ जाने पर
अपने सहयात्री को
पानी दे देता
कोई अनजान शख्स
कुछ भी व्यर्थ नहीं जीवन में
हर बात में अर्थ को पा लो
चंद साँसों की मोहलत मिली है,
चाहो तो हर खुशी तुम पा लो
और
सामाने बैठी औरतों की
ज़ोरदार तालियों के बीच
वह उतर आया
मंच से आहिस्ते आहिस्ते
झूमते झूमते !!
शब्दों से प्रभु ...
सजादो मेरा मन ....
कविता खिले ...
व्यथा मुखर ....
शब्द हुए प्रखर .....
काव्य निखर .....
अर्धसत्य...मीना शर्मा
कैसे समझूँ मैं तुम्हें ?
कैसे जानूँ ?
मन घुट रहा है सवालों से !
अच्छा, इतना तो बता दो,
तुम्हें सत्य कैसे कहूँ ?
और 'अर्धसत्य' कहूँ,
तो मंजूर होगा क्या तुम्हें ?
उलूक उवाच...डॉ. सुशील जोशी
अब जनाब क्या
सारी की सारी बात
हम ही आपको
बताते चले जायेंगे
कुछ बातें आप
अपने आप भी
पता नहीं लगायेंगे
पता लगाईये और
हमें भी बताइये
कुछ पैसा खर्च
वर्च कर जाइये
हवाई जहाज से
यात्रा कर के आईय़े
आप जरूर किसी
ना किसी ऎसे
कुत्ते से टकरायेंगे
शुभ प्रभात....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति..
आभार
सादर
उम्दा प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन ! मेरी रचना को शामिल करने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंप्रभावी लिनक्स |मेरी रचना को शामिल करने हेतु सदर आभार आदरणीय दिग्विजय जी !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर पोस्ट लिंक्स सहजे आपने |बहुत बढ़िया जी |
जवाब देंहटाएंरविवारीय अंक अपनी विशेषता के साथ पेश हुआ है। बेहतरीन सूत्रों का चयन। आभार सादर।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया लिकों का चयन..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति। आभार दिग्विजय जी 'उलूक' के 'कुत्ते' को आज की हलचल में जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन....
जवाब देंहटाएं@हिन्दी कुत्ता अंग्रेजी में भौंका.....पर दरवाजे पर आ दुम अपनी भाषा में ही हिलाता है
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