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सोमवार, 24 जुलाई 2017

738.....शब्दों का खेल-खेलना हमारा धर्म !

साहित्य समाज का दर्पण है ये कथन क्या वर्तमान में सत्य है ,आज मैं अपने विचार आप पर थोपने नहीं आया हूँ बल्कि आप सबके विचार जानना चाहता हूँ। हम लिखते हैं किसके लिए ? ज़ाहिर है समाज के हर वर्ग को अपने विचारों से अवगत कराने हेतु ,भला क्या है और क्या बुरा ?
समाज के हर वर्ग तक विचारों का पहुँचना अति आवश्यक है वो चाहे देश की राजनीति हो अथवा हमारा नज़रिया राष्ट्र में घटित घटनाओं पर ,मुद्दा है पहुँच ! जो केवल शब्दों पर आधारित है। 
मेरे विचार से शब्दों की समझ अत्यंत आवश्यक है, जनसाधारण में क्लिष्ट शब्दों की समझ एक टेढ़ी खीर है 
जबकि हमारे ज्ञानी साहित्यकार कठिन शब्दों का उपयोग अपनी रचनाओं में अपनी सार्थकता दिखाने हेतु करते हैं ,इस प्रकार रचनाओं में कठिन शब्दों का उपयोग करने की एक होड़ सी मची हुई है। 
पाठक क्या इनके विचार पूर्णतया समझ पाता है ? परन्तु यह जानने का परिश्रम कौन करे ? हम तो रचनाकार हैं उच्च कोटि  के शब्दों का खेल-खेलना हमारा धर्म ! धर्म से विचलित होना घोर पाप, भले ही हमारी रचनायें किताबों में पड़े-पड़े धूल खायें । 
अपने अनमोल विचारों को हम सरलता की धूल भरी धरती पर निमंत्रण नहीं देंगे।   
साहित्य समाज का दर्पण है इस दर्पण पर कठिन शब्दरूपी विचारों की ऐसी लक़ीर खींच देंगे ! जिसे पढ़ने हेतु  स्वर्ग से भेजा गया ईश्वर का कोई देवदूत आये और जनसाधारण को बताए कि मैंने कौन सी अमृत वाणी लिखी है जिसको पढ़ना आम आदमी के बस की बात नहीं। 
एक सारभौमिक सत्य ! मनुष्य की एक प्रकृति , कठिनता से सरलता की ओर अग्रसर होना 
और साहित्य में विचारों को कठिन शब्दों में व्यक्त करना 
परिणाम 
जनसाधारण का साहित्य से दूरी 
अतः जिसकी परिस्थितियों का मंथन ! वही इन अनमोल विचारों से अनिभिज्ञ 
हो भी क्यूँ न ,जटिल शब्दों के फंदे में अपना गला कौन फँसाये ? 
इन 'वेद' रूपी साहित्य के मर्म को कौन पढ़े 
ज़ाहिर है ! हम जैसे रचनाकार स्वयं 
कृपया अपने विचार बतायें ! इस मंथन को सफल बनायें। 
एक नवसिखिया लेखक की चेतावनी :  प्रस्तुत विचार एक 'विद्रोही' लेखक के हैं इससे  किसी अन्य विचारशील लेखक का सहमत होना न होना आवश्यक नहीं  
आपके अनमोल  विचारों का 
''पाँच लिंकों का आनंद''
परिवार हृदय से स्वागत करता है 

''सादर अभिवादन''
  
आज की प्रथम रचना आदरणीय ''सुशील कुमार जोशी'' द्वारा रचित   


 जब अपने 
मोहल्ले की 
अपनी गली में 

अपने जैसा ही 
कोई मिलता है 
अपनी तरह का 
अपने हाथ 
खड़े किये हुऐ 

चलते हैं आज की दूसरी रचना पर कोमल एहसासों के साथ कोई चिठ्ठी लाया है... 
आदरणीय ''रश्मि शर्मा'' की कृति 

डाकिया बन बूंदे 
पहुँचातीं हैं यादों के ख़त 
ऐसे में किवाड़ ना खोलें 
तो और क्या करें हम 


मुनव्वर राणा की ये पंक्तियाँ 
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है 
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है 
बात हो माँ की पिता का जिक्र न हो अधूरा सा लगता है 
आदरणीय ''साधना वैद'' जी की ये रचना 


जीवन तुम भी जी रहे हो ! लेकिन अपनी शर्तों के साथ !
 नितांत निरंकुश होकर ! बिना किसी दखलंदाजी के ! 
बिलकुल अपने तरीके से !

अंदाजे बयां चाहे जैसे भी हो जिंदगी तो जिंदगी है अपने ख़्यालों में मस्त ! 
आदरणीय ''मीना शर्मा'' की कृति 

  इस बार अलग था कुछ,अंदाजे-बयां उनका,
लफ्जों में छुपा खंजर,अब दिल में उतरता रहा।

आँखों में जो चमकते, टूटे वही सितारे,
हमराज मेरा, मेरे सब राज उगलता रहा ।

मैं अपनी सारी परेशानियाँ आज-कल यशोदा दीदी से कहता हूँ चाहे वो ब्लॉग सम्बंधित हो अथवा ब्लॉग के प्रस्तुति का अवलोकन किन्तु प्रीति श्रीवास्तव की ये रचना अपने ही आप से सब कुछ कह रही  है। 
आदरणीय ''यशोदा अग्रवाल'' द्वारा संकलित एवं ''प्रीति श्रीवास्तव'' द्वारा रचित यह रचना  

 की हिमाकत मैने जहां मे सनम !
संगदिलो से जंग लड़ नही सकती !!

अब तो खुदाया का आसरा है !
दर्दे-दिल से अब गुजर नही सकती !!

यादें ... बस यादें
'आसान नहीं सपनों से खेलना' आदरणीय ''दिगंबर'' साहब की एक 
कृति  

मिट्टी की
कई परतों के बावजूद
हलके नहीं होते
कुछ यादों की निशान
हालांकि मूसलाधार बारिश के बाद

साफ़ हो जाता है आसमान

 बिटिया ---- 
सफ़र का अंतिम पड़ाव , कोमल भावनाओं से ओत-प्रोत 
आदरणीय ''रेणु बाला'' जी की सुन्दर ,मीठी एहसासों से भरी एक 
कृति   

  सखियों  की  बड़ी  प्यारी  है ,
पिता  का  गर्व  है  बहुत    ऊंचा
भाई  की   परम हितकारी  है  ;
  अधूरी ममता  पूरी  करती --
 जब  '' माँ ''  कह  पुकारती  बिटिया !!!!!!! 



अंत में ''मेरी भावनायें''आपकी प्रतीक्षा में 

क्या रखा शब्दों में 
पगले !
विचार जो तेरे खेत रहे 
लिखता तूँ जिनके बारे में 
उनकी भागीदारी  शेष रहे 
लिख रहा है 
वेद-पुराण 
दुःख-सुख उनके 
विषय बनाकर 
लिख दे ! सुन्दर 
विचार स्वर्ण सा 
समझ सकें 
वे 
सोच रहें  

26 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात....
    श्रेष्ठ रचनाएँ....
    आभार...
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. लाजवाब है आज का संकलन ... अच्छे सूत्र गहन विचार लेखन पर ...
    आभार मुझे शामिल करने का ...

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर सूत्र ! मेरी प्रस्तुति को सम्मिलित करने के ल्लिये आभार आपका एकलव्य जी ! हृदय से धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  4. शुभ प्रभात !
    सारगर्भित ,विचारणीय भूमिका के साथ ध्रुव जी ने प्रस्तुत किया है बेहतरीन अंक। सभी सूत्र एक से बढ़कर एक। पाठकों को ऐसी पाठ्य सामग्री एक साथ मिलना किसी उपहार से काम नहीं। भाषा की क्लिष्टता पर शोचनीय प्रश्नचिह्न.... आभार सादर।

    जवाब देंहटाएं
  5. आदरणीय ध्रुव जी,
    आपने एक बहुत ही विचारशील विषय उठाया है,एक स्वस्थ्य चर्चा जरूर होनी चाहिए। रचनाओं में शब्दों की क्लिष्टता आम जनमानस के समझ से परे है एकदम सत्य कहा।
    आपको क्या लगता है साधारण जनमानस को साहित्य से कितना सरोकार है,कितना प्रभाव डालता है साहित्यिक लेखन जनमानस के विचारों पर??? चाहे साहित्य समाज का दर्पण हो पर समाज के जिस तबके पर संवेदनशील रचनाएँ लिखी जाती है उनमें तो 99.99% लोग साहित्य का मतलब भी नहीं समझते। अपने दैनिक जीवन के संघर्षों में जुटा साधारण जनमानस फुरसत के समय में मनोरंजन चाहता है हमारे लिखे विचारों को जो कभी अच्छी लगी तो रिट्वीट करेगे या शेयर करेगे इतना भर ही।
    रचनाकारों द्वारा लिखी रचनाएँ हमारे साहित्य को समृद्ध करती है ,किसी भी रचनाकार द्वारा लिखी रचनाएँ साहित्यिक वर्ग के लिए विशेष होती है,क्योंकि यहाँ सब समझते है उनकी रचनाओं का मर्म,जिस क्लिष्ट भाषा की आप बात कर रहे वो भी साहित्य का लालित्य है जो ऐसा लिखते है उनका विशेष गुण भी।
    क्षमा चाहेगे हम अगर आपका मनतंव्य ठीक से हम न समझ पाये हो। मेरी मंदबुध्दि आपकी उत्तम विचारों पर इतना ही सोच पायी ये मेरे व्यक्तिगत विचार है।
    लिंको का चयन बहुत सुंदर और आपके विचार मंथन को विवश करते है।
    हार्दिक शुभकामनाएँ मेरी।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुप्रभात,
    सुन्दर चर्चा ......सुन्दर हलचल .......सुन्दर लिंक्स,
    आभार|

    जवाब देंहटाएं
  7. रचनाओं में शब्दों की क्लिष्टता आम जनमानस के समझ से परे है एकदम सत्य कहा।
    साहित्य लेखन विशेष वर्ग को ही आकर्षित करती है..शब्दों को अलंकृत करना रचनाकारों का रचनात्मक प्रयोग है,इसे
    परिवर्तन करना विशेष गुण मौलिकता से खिलवाड़ है..
    विचारणीय भूमिका निश्चय ही सोचनीय है
    लिकों का चयन एवम् प्रस्तुति बहुत बढिया

    जवाब देंहटाएं
  8. उम्दा संकलन.....
    सरल सहज भाषा प्रत्येक जनमानस तक पहुँच सकती है....
    जैसे :-रामचरित मानस.पूज्य तुलसीदास जी कृत...परन्तु ऐसे में बाल्मीकि कृत रामायण की महिमा कम नहीं होती....
    हमारे समाज में हर तबके के लोग है...जिन्हे जो अच्छा लगे ग्रहण कर लेंगे...
    लेखक भी जिस वर्ग के लिए रचना करते हैं उसी कोटि की भाषा में लिखते करते हैं...

    जवाब देंहटाएं
  9. सरल, सुगम शब्द ही सुग्राह्य होते हैं

    जवाब देंहटाएं
  10. ध्रुव जी मैं आपकी बात से सहमत हूँ ।साहित्य समाज का दर्पण है ।
    और दर्पण जितना साफ होगा ,अक्स उतना ही साफ दिखेगा। मैं भी इस बात से सहमत हूँ कि लेखक को शालीन ,सुगम ,सरल भाषा जो आम जनमानस को अच्छे से समझ आ जाये उपयोग करनी चाहिये ।
    मैं स्वयं भी सरल भाषा का प्रयोग करती हूँ ,शायद मुझे तो आती ही सीधी ,और सरल भाषा है ।
    आप सबने ने बचपन मे स्कूल एक कहानी पड़ी होगी मुंशीप्रेम चन्द द्वारा लिखी "ईद गाह" कितना सुंदर संदेश है इस कहानी का और भाषा एकदम सरल आम जनमानस के समझ में आने वाला ।

    जवाब देंहटाएं
  11. ध्रुव जी मैं आपकी बात से सहमत हूँ ।साहित्य समाज का दर्पण है ।
    और दर्पण जितना साफ होगा ,अक्स उतना ही साफ दिखेगा। मैं भी इस बात से सहमत हूँ कि लेखक को शालीन ,सुगम ,सरल भाषा जो आम जनमानस को अच्छे से समझ आ जाये उपयोग करनी चाहिये ।
    मैं स्वयं भी सरल भाषा का प्रयोग करती हूँ ,शायद मुझे तो आती ही सीधी ,और सरल भाषा है ।
    आप सबने ने बचपन मे स्कूल एक कहानी पड़ी होगी मुंशीप्रेम चन्द द्वारा लिखी "ईद गाह" कितना सुंदर संदेश है इस कहानी का और भाषा एकदम सरल आम जनमानस के समझ में आने वाला ।

    जवाब देंहटाएं
  12. वाह क्या बात ध्रुव जी ,क्या रखा है शब्दों में पगले,
    विचार तो तेरे खेत रहे है ,सारा खेल विचारों का ही तो है
    विचार अच्छे हो तो उसका सुगम संयोजन करके लिखते रहो आत्मा को संतुष्टि मिलते रहेगी मेरा तो यही मानना है ।

    जवाब देंहटाएं
  13. ध्रुव सिंह जी....क्या खूब चर्चा की है आपने....
    बहुत ही सुंदर....
    आभार.....

    जवाब देंहटाएं
  14. प्रिय एकलव्य -- सबसे पहले आपका सादर सस्नेह आभार व्यक्त करती हूँ कि आपने सुन्दर संकलन संजोया और उसका हिस्सा मुझे भी बनाया - सभी साहित्य मित्रों ओर पाठकों को सस्नेह हार्दिक आभार -

    जवाब देंहटाएं
  15. नवसिखिया विद्रोही लेखक की चेतावनी पढ़ ली :) सावधानी जरूरी है । जरूरी है स्वस्थ बहस भी । बहुत अच्छा लगता है जब प्रतिक्रिया आती हैं । आभार है 'उलूक' के सूत्र को जगह दे कर सम्मान देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  16. प्रिय एकलव्य आपके शब्दों से मैं पूरी तरह सहमत हूँ ;; कि उच्च कोटि के शब्दों का खेल-खेलना हमारा धर्म ! धर्म से विचलित होना घोर पाप, भले ही हमारी रचनायें किताबों में पड़े-पड़े धूल खायें । '' साहित्य में भाषा का बहुत नहीं बल्कि सारा ही महत्व है | मैं आदरणीय श्वेता जी जिबात से भी सहमत हूँ कि क्लिष्ट भाषा को साहित्य का लालित्य कहा जाता है -- पर माफ़ी चाहती हूँ ये भाषा एक विशेष वर्ग तक ही सीमित हो कर रह जाती है |सरल सुगम भाषा ही पाठकों के दिल तक सीधा जाती है | गोस्वामी तुलसीदास जी , मुंशी प्रेमचंद
    हरिवंशराय बच्चन इत्यादि अन्र्क उदाहरण हैं जिन्होंने सरल भाषा में लिखा और पाठकों के दिल में गहरी पैठ बनायीं | क्योकि अंततः तो पाठकों के लिए ही साहित्य रचा जाता है - पर इसी विषय इसके समानांतर मुझे एक साहित्य मित्र की एक बात बहुत पसंद आई कि यदि हम कहीं अंग्रेजी का कलिष्ट शब्द पाते हैं तो तुरंत शब्दकोश की मदद से उसका अर्थ जाने बैठ जाते हैं -- काश हम ऐसा ही प्रयास अपनी भाषा हिंदी के लिए करें तो कितना अच्छा हो !! इससे हम अपने भाषा ज्ञान को और समृद्ध कर सकते हैं | आजकी सार्थक चर्चा से बहुत अच्छा लग रहा है |

    जवाब देंहटाएं
  17. आदरणीय सुशील जी की रचना पर टिपण्णी करने में असमर्थ रही हु -- सो उन्हें इसी मंच पर अपनी सादर सस्नेह शुभकामनाएं प्रेषित कर रही हूँ --उनकी सरल , सुगम और रोचक रचना के लिए ----

    जवाब देंहटाएं
  18. ध्रुवजी,मैं आपकी बात से सहमत हूँ किंतु पूर्णतः नहीं । हिंदी भाषा में केवल सरलता को महत्त्व देने पर भाषा के लालित्य और शिल्प की तो कहीं ना कहीं अनदेखी हो ही जाती है। कुछ भावनाएँ ऐसी होती हैं जिन्हें सरल शब्दों में ही व्यक्त होना चाहिए। मेरे ब्लॉग पर एक कविता है....
    "चलते चलते ही मुस्कुरा लो तुम
    व्यस्त होकर भी खिलखिला लो तुम"
    यह कविता मेरी आज तक की सबसे लोकप्रिय और सरलतम शब्दों वाली रचना रही। शब्दों का चुनाव विषय के अनुरूप स्वतः ही हो जाता है, उसे करने के लिए किसी विशेष प्रयास की जरूरत नहीं पड़ती। कम से कम मेरा तो यही अनुभव रहा है। एक सरल उदाहरण देती हूँ। वर्तमान समय में हलके और नाजुक अलंकारों को पसंद किया जा रहा है किंतु ब्याह शादी या समारोह के अवसर पर तो भारी और जड़ाऊ अलंकार पहने जाते हैं ना ! बस यही बात भाषा में है। कई बार रचनाओं में कुछ शब्द स्वतः ही आ जाते हैं जो सामान्य तौर पर क्लिष्ट की श्रेणी में आते हैं। उनके अति प्रयोग से,कृत्रिम प्रयोग से बचना जरूरी है।
    सरल सहज भाषा वाली रचनाएँ पाठकों के मन को छू जाती हैं, इस बात में कोई दो राय नहीं ।

    जवाब देंहटाएं
  19. इतनी सुंदर रचनाओं के संकलन के साथ एक महत्त्वपूर्ण सार्थक चर्चा को विस्तार का मौका देने वाले विद्रोही लेखक ध्रुव जी का तहेदिल से आभार। अपनी रचना को पाँच लिंकों में देखना प्रफुल्लित कर गया....

    जवाब देंहटाएं
  20. बहुत सुन्दर चर्चा। हमारी रचना शामिल करने के लिए हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  21. बहुत सुन्दर प्रस्तुति. साहित्य में क्लिष्ट भाषा पर चर्चा अच्छी लगी.

    जवाब देंहटाएं
  22. उठी लहर एक
    ऊँची..
    मनुष्य से भी
    आई बड़ी तेजी से
    ले गई बहाकर
    सारा कुछ मैल मनका
    पर छोड़ भी गई
    ढेर सारी..प्रतिक्रियाएँ
    गुस्सा, प्यार, सहमति
    बधाई..
    संग वाह-वाही
    सराहनाएँ....
    सादर

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