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गुरुवार, 20 जुलाई 2017

734...... बहुत मुश्किल से बनते हैं, घरौंदे मेरे दोस्त !

सादर अभिवादन !
तीसरे वर्ष में प्रवेश कर चुका है। सुधि पाठकों व 
समर्पित रचनाकारों की लय बन चुका यह मंच  
निरंतर नवीनता और परिवर्तन के आयाम 
तलाशता हुआ आपकी पसंद बना हुआ है। 
आपके असीम स्नेह ,आशीर्वाद , सक्रिय सहयोग ने हमें गदगद 
होने के अवसर दिए हैं। दो वर्ष की यात्रा में आदरणीय बहन जी 
यशोदा अग्रवाल द्वारा रोपा गया पौधा अब 
152,262 (19 -07 -2017  7:02 PM ) 
पेज व्यूज़ के साथ आपके बीच अपनी पहचान क़ायम कर चुका  है। 

आजकल हमारे जीवन में कंप्यूटर के उपयोग की अधिकता हो गयी है।  नेत्र विशेषज्ञ कहते हैं कि प्रति 20 मिनट में आँखें  कंप्यूटर स्क्रीन से हटाकर 20 सेकण्ड के लिए विश्राम देना आँखों के स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है।  साथ ही आँखों का यदि कोई नंबर नहीं भी है तो भी ज़ीरो नंबर के लेंस के  चश्मे के द्वारा ही कंप्यूटर पर कार्य करें क्योंकि कम्प्यूटर से निकलने वाली हानिकारक किरणें हमारी आँखों के लिए ज़रूरी  नमी को सुखा  देती हैं अर्थात चश्मे के द्वारा ही कंप्यूटर पर  कार्य किया जाय। 

चलिए अब आपको ले चलते हैं आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर -

जीवन में नीरसता जब छा जाए तो निधि सक्सेना जी की यह रचना रोमांच लाने के रास्ते तलाशती हुई हमें ताज़गी से भर देती है -

थोड़ा रोमांच भर लायें..
मुद्दत हुई हमें जी भर के हँसे
चलें किसी दरिया किनारे
मौजों से थोड़ी मौजें मांग लायें..

ग़ज़ल में नए प्रयोगों के साथ अपनी अभिव्यक्ति को हमारी अभिव्यक्ति बना देने वाले लोकेश नशीने जी की एक मर्मस्पर्शी ग़ज़ल -

वजूद हर ख़ुशी का ग़म से है इस जहाँ में
फिर जिंदगी क्यूँ इतनी उदास हो गयी है

चराग़ जल रहा है यूँ मेरी मोहब्बत का
दिल है दीया, तमन्ना कपास हो गयी है

ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा को रोचकता प्रदान करने में माहिर आदरणीय हर्ष वर्धन जोग जी की एक और ज्ञानवर्धक ,आकर्षक चित्रावली से सुसज्जित यात्रा-
                                                

किले के अंदर कई सुंदर महल हैं जैसे मोती महल, फूल महल, शीश महल. साथ ही दौलत खाना, सिलेह खाना, तोप खाना वगैरा भी हैं. बहुत बड़े भाग में म्यूजियम है जहां अपने समय के सुंदर और शानदार शाही कपड़े, फर्नीचर, कालीन, हथियार, पालकियां, हौदे आदि रखे गए हैं. किले के अंदर की ऊँचाई सात आठ माले के बराबर है. लिफ्ट का भी इन्तेजाम है और अंदर ही बहुत सुंदर दस्तकारी की दुकानें भी हैं. लिफ्ट और म्यूजियम के प्रवेश के लिए टिकट हैं. 

स्वर्गीय कवि अजित कुमार जी के निधन पर द्रवित कर देने वाली रवीन्द्र पांडे जी की एक रचना 
ये रीत जगत की न्यारी है,
निर्धारित सबकी बारी है...
वो छोड़ चले पद चिन्ह यहाँ,
जैसे सुन्दर फुलवारी है...
शब्दों भावों की फुलवारी,
तन मन को महकाएंगी...
देश-दुनिया में हिंसा और नफ़रत का माहौल एक कवि ह्रदय को किस प्रकार उद्वेलित करता है इसकी झलक महसूस कीजिये आदरणीय शांतनु सान्याल जी की इस रचना में -
जब आग लगी हो सारे शहर में बेलगाम - -
तब अपने - ग़ैर में कोई बँटवारा नहीं होता।
बहुत मुश्किल से बनते हैं, घरौंदे मेरे दोस्त -
अपनी मर्ज़ी से कोई यूँ ही बंजारा नहीं होता।
सिर्फ़ समझ का है उलटफेर, ऐ ईमानवालों !
हरगिज ख़ुदा, हमारा या तुम्हारा नहीं होता।


रचनाकार मानस तैयार करते हैं। 
अपनी निहित निष्ठाओं से 
ऊपर उठकर सभी 
देशहित को सर्वोपरि रखकर 
अपना -अपना यथायोग्य 
योगदान भटके हुए लोगों 
को ज्ञान का उजियारा 
दिखलाने में समर्पित करें। 
अब आज्ञा दें।  
फिर मिलेंगे। 
  रवीन्द्र सिंह यादव

16 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात....
    बेहतरीन प्रस्तुति..
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात ,आदरणीय
    रवींद्र जी कमाल की प्रस्तुति
    साधारण शब्दों में बहुत अच्छी अभिव्यक्ति
    जनसाधारण को भी आकर्षित करता है एवं आपके
    विचार अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचने में सहायक होते हैं
    इसका एक अच्छा उदाहरण आपने आज के अंक में अपनी प्रस्तुति से
    सिद्ध किया है,
    शब्दों की क्लिष्टता आम जन को साहित्य से दूर ले जाती है
    इसके लिए आपको हृदय से धन्यवाद।
    लिंको का चयन शानदार
    आभार ,
    "एकलव्य"

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय रवींद्र जी
    ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ शुरू की आपकी प्रस्तुति अलग अंदाज़ में अच्छी लगी। लाज़वाब लिंको का संयोजन
    और अंत में आपके सुंदर प्रेरक विचार।
    हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  4. नायाब संकलन
    मेरी रचना को स्थान देने के लिये हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. शुभ प्रभात,आदरणीय
    बहुत अच्छी अभिव्यक्ति
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर लिंक, सुन्दर हलचल,

    मेरे चिट्ठे (https://kahaniyadilse.blogspot.in/2017/07/foolish-boy.html) पर आपका स्वागत है|

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही शानदार प्रस्तुति ....
    उम्दा लिंक संकलन...

    जवाब देंहटाएं
  8. उम्र बीत जाती है घरौंदे बनाने में, पल भर नहीं लगता उसे गिराने में !

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत अच्छी रचनाएँ थीं |तीसरे वर्ष में पहुँचने के लिए बधाई |

    जवाब देंहटाएं
  10. बधाई पांच लिंकों का आनंद तीसरे वर्ष में प्रवेश करने के लिये. बेहतरीन प्रस्तुति आज की .

    जवाब देंहटाएं

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