कल भाई कुलदीप जी के वापसी नहीं होनी थी
पर अकस्मात वे टाईम से पहुँच गए
उसी फिक्र में मैं प्रस्तुति तैय्यार कर रखी थी
आज देखिए उन चुनी रचनाओं के साथ कुछ और रचनाएँ..
अपनी बात.....अनुपम वर्मा
आज वो पौधे बडे हो चुके हैं !!!खुशबू है उन चम्पा के फूलों में
मगर जुबैर और हानिया की मोहब्बत की खुशबू !!
अकसर कुंदुस बेगम के आँसुओं के क़तरे ओस के कतरों के साथ इन पौधों की सब्ज पत्तियों पर जम जाते हैं
अकसर वह इन मासूमों की अनाम कब्रों पर अपने गुनाह की सज़ा के लिये दुआ माँगती हैं
तेरे लिए खुद ही तेरा नजराना हुआ फिरता हूँ...... विजयलक्ष्मी
" दीवानगी बताऊँ क्या मस्ताना हुआ फिरता हूँ
न हो मुलाक़ात उनसे दीवाना हुआ फिरता हूँ ||
बेख्याली है कि बारिश में भीगता फिरता हूँ
बरसते है बादल जब मस्ताना हुआ फिरता हूँ ||
आज की पहली प्रस्तुति बेहद मार्मिक है
आज्ञा दें
सादर
हमेशा की तरह एक बढ़िया प्रस्तुति यशोदा जी ।
जवाब देंहटाएंbhut sundar...
जवाब देंहटाएंsabhi link lajvab hai...
abhar...
बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति यशोदा जी ! कुछ व्यक्तिगत समस्याओं के कारण कल प्रतिक्रया नहीं दे सकी क्षमाप्रार्थी हूँ ! आज की प्रस्तुति में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार !
जवाब देंहटाएंयशोदा जी बहुत सुन्दर प्रस्तुति,मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत आभार आपका
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