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बुधवार, 31 अगस्त 2016

411.....साँसें चल रहीं हैं! शायद जिंदा ही दफन किया जाऊँगा

सादर अभिवादन
कल भाई कुलदीप जी के वापसी नहीं होनी थी
पर अकस्मात वे टाईम से पहुँच गए
उसी फिक्र में मैं प्रस्तुति तैय्यार कर रखी थी

आज देखिए उन चुनी रचनाओं के साथ कुछ और रचनाएँ..


अपनी बात.....अनुपम वर्मा
आज वो पौधे बडे हो चुके हैं !!!खुशबू है उन चम्पा के फूलों में
मगर जुबैर और हानिया की मोहब्बत की खुशबू !!
अकसर कुंदुस बेगम के आँसुओं के क़तरे ओस के कतरों के साथ इन पौधों की सब्ज पत्तियों पर जम जाते हैं
अकसर वह इन मासूमों की अनाम कब्रों पर अपने गुनाह की सज़ा के लिये दुआ माँगती हैं



तेरे लिए खुद ही तेरा नजराना हुआ फिरता हूँ...... विजयलक्ष्मी
" दीवानगी बताऊँ क्या मस्ताना हुआ फिरता हूँ
न हो मुलाक़ात उनसे दीवाना हुआ फिरता हूँ ||

बेख्याली है कि बारिश में भीगता फिरता हूँ
बरसते है बादल जब मस्ताना हुआ फिरता हूँ ||



मन ,जी हाँ मन ,एक स्थान पर टिकता ही नही पल में यहाँ तो अगले ही पल न जाने कितनी दूर पहुंच जाता है ,हर वक्त भिन्न भिन्न विचारों की उथल पुथल में उलझा रहता है ,भटकता रहता है यहाँ से वहाँ और न जाने कहाँ कहाँ ,यह विचार ही तो है

थम जा बस इंसान यही पे
सरकार तो दोषी है ही
दर्द किसी का देख
इक दिल नहीं पसीजा
लानत है बेदर्द दुनिया तेरी


हर तारीख पुरानी याद जगा जाती है 
न भूल सका अभी एहसास दिला जाती है 
हर बार मेरा इतिहास मेरे आज से जीत जाता है 
घंटों मुझे गहराई में डूबा जाती है 
हर तारीख पुरानी याद जगा जाती है. 

कल ज़िंदगी मेरे पास आई 
चुपके से मुस्कुराई 
हौले से मेरे बाल सहलाये
धीरे से गालों पर चपत लगाई 
और फिर मेरी उंगली पकड़ 
मुझे उठा ले गयी


आज की पहली प्रस्तुति बेहद मार्मिक है
आज्ञा दें
सादर




6 टिप्‍पणियां:

  1. हमेशा की तरह एक बढ़िया प्रस्तुति यशोदा जी ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति यशोदा जी ! कुछ व्यक्तिगत समस्याओं के कारण कल प्रतिक्रया नहीं दे सकी क्षमाप्रार्थी हूँ ! आज की प्रस्तुति में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार !

    जवाब देंहटाएं
  4. यशोदा जी बहुत सुन्दर प्रस्तुति,मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत आभार आपका

    जवाब देंहटाएं

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