जय मां हाटेशवरी...
बुलंदशहर में एक महिला और उसकी नाबालिग बेटी से हुए गैंग रेप की घटना
खौफनाक, बर्बर अमानवीय और मानव मन को झकझोर कर रख देने वाली घटना है...
इस लिये मन आज बहुत आहत है...
क्या कहूं...क्या लिखूं...
यही कह सकता हूं....
शायद राजतंत्र ही अच्छा था...
ऐसे जघन्य अपराध करने वालों के...
दोनों हाथ काट दिये जाते थे...
रेप पहले भी होते थे, आज भी होते हैं और शायद आगे भी होते रहेंगे, नेता और राजनेता अपनी राजनीति की रोटियां भी इस पर सेकते रहेंगे! सदन में हंगामा भी होता रहेगा,
कुछ अधिकारी निष्काषित भी होते रहेंगे लेकिन रेप भी होते रहेंगे और राजनेता हर तरह से ऐसे मुद्दों को भुनाते रहेंगे,लेकिन रेप फिर भी होते रहेंगे !
जी हाँ यही सच्चाई सी लगती है अब इस देश की जहाँ रेप जैसी घटनाएं देश के आज़ाद होने के ६९ वर्षों बाद भी कम होने का नाम नहीं ले रही हैं और बावजूद ऐसी घटनाओं के हमारे महान
नेतागण ऐसे मुद्दों पर भी अपनी राजनीति भुनाए बैठे हैं! पुलिस लापरवाह है, प्रशासन को कोई होश खबर नहीं है, सिर्फ परेशान है वो शख्स जिसके साथ यह दरिंदगी बीती है, जिसकी सुनने वाले तो बहुत लोग हैं लेकिन सिर्फ अपने अपने लाभ के लिए कोई भी शख्स उस पीड़ित के साथ तब तक खड़ा नहीं होता जब तक उसे उसमे अपने आप का लाभ नज़र
ना आए!
हे मन
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और सदा सत्य का हो जीवन में अनुसरण
सत्य की औषधि से हो पापों का प्रतिरोध
राष्ट्र जागरण धर्म हमारा रख ये याद
मन में न रहे अब तो कोई भी प्रतिशोध
गृहस्थी की धुरी पर संघर्षधर्मा स्त्री का दस्तावेज
कलम के संचालन की दक्ष मोनिका ने अपनी बातों को जिस प्रवाह के साथ लिखा है, उसे पढ़कर लगता है कि सधे सोच की सीधी-सपाट रेखाओं के रूप में इन कविताओं का सर्जन हुआ है। इसी के बरक्स फ्लैप पर अपने वक्तव्य में श्री नंद भारद्वाज ने लिखा है : कविताएं अपने पहले ही पाठ में सहृदय पाठक को अपने साथ बहा ले जाने की अनूठी क्षमता रखती है, अपने समय और समाज को लेकर कितना कुछ विलक्षण और विचारणीय कहने की समझ और सलीका है उनके पास।
सचमुच यह संग्रह गद्य का हुनर रखने वाली कलमकार के विचार का सुंदर वातायन है। यह समाज को एक विचार देने वाला है, नारी मन के कई भाव-अभाव भरे कलशों को छलकाता है और बहा ले जाता है पाठकों के मन को। गृहस्थी की धुरी पर अनगिनत दायित्वों को जीती स्त्री को लेकर ज़्यादा बात नहीं होती पर उसका होना घर के हर सदस्य के जीवन को सम्बल देता है । सरल बनाता है । इसी अनकही भावभूमि को लेकर उकेरी गयी ये कवितायें स्त्री मन की पीड़ा से गहरा परिचय करवाती हैं ।
कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है
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कहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हम
जुबां से दिल की बातो को है कह पाना बहुत मुश्किल
ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता
अपनों से मिली ठोकर तो सह पाना बहुत मुश्किल
संवेदना की नम धरा पर'... आदरणीय आर एन शर्मा जी की नज़र से
" पर उस स्पर्श में वो स्निग्धता
कहाँ होती है माँ,
जो तुम्हारी बूढी उँगलियों की छुअन में
हुआ करती थी"
...
" मेरी अहमियत
तुम्हारे घर में,
तुम्हारे जीवन में
मात्र एक मेज या कुर्सी की ही है"
...
मोहब्बत बूंद है..
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मोहब्बत
पारदर्शी बूंद है
दूबों की नोक पर ठहरी
लिए बेपनाह खूबसूरती
फुरस्तो का प्यार था हमारा....!!!
मैं हर लम्हे में तुम्हे जीती रही,
तुम फुर्सत से वक़्त निकालते रहे,
मैं तुम्हे ख्वाइशें अपनी बताना चाहती थी,
तुम्हारा हाथ थाम कही दूर,
निकल जाना चाहती थी,
तुम फुरस्तो में इन्हें टालते रहे है...
अब बस काफी है...
आज के लिये...
और अंत में...
आरजूओं की आग में जल कर
और भी कुछ निखर गए हैं हम
जब भी हम को किया गया महबूस
मिस्ल-ए-निकहत बिखर गए हैं हम
शादमानी के रंग-महलों में
"शाद" बा-चश्म-ए-तर गए हैं हम
धन्यवाद..
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया
सही व सटीक रचनाओं का चयन
सादर
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंहमारे ब्लॉग से जुड़े http://hareshcm.blogspot.com
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति कुलदीप जी ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार कुलदीप जी मेरे काव्य संकलन 'सम्वेदना की नम धरा पर' की श्री आर एन शर्मा जी द्वारा लिखित समीक्षा को आज की प्रस्तुति में सम्मिलित करने के लिये ! सभी सूत्र बहुत सुन्दर हैं !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद...
हटाएंआप के ब्लौग पर मुझे टिप्पणी विकल्प नहीं मिला। इस लिये सूचना न दे सका।
पुनः आभार।
Badhiya..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंBilkul sach kaha aapne..meri rachna ko sthan dene ke liye dhnyawad aur aabhar.
जवाब देंहटाएंदिल को हिला देने वाली रचना...उत्तम विचार हैं आपके...
जवाब देंहटाएंऔर भी पढ़ें... bhannaat.com, मोबाइल जानकारी के लिए... digitechon.com