मौसम कुछ अजीब सा हो गया है
कोई भी घर ऐसा नहीं है
जहाँ वायरल बुखार ने डेरा न डाला हो
ऐसे में सावधानी अत्यावश्यक है
और आप समझदार हैं..
एक खुला खत...सुनीता शानू
आज ज्ञान चतुर्वेदी जी का जन्म-दिन है, उनके जन्म-दिवस पर सब कुछ न कुछ उपहार स्वरूप लिख रहे हैं, मैने बस उन्हें एक पत्र लिखा है... आजकल खुले पत्र का रिवाज़ सा बन गया है, छुप-छुप कर लिखे जाने वाले प्रेम पत्र ही पत्रिकाओं में छपने लग गये हैं तो यह बहुत साधारण सी बात है कि मैने ज्ञान भाई जी को क्या लिखा है आप भी पढ़ियेगा
स्पर्श प्रेम का......ज्योति जैन
प्रेम का प्रथम स्पर्श
उतना ही पावन व निर्मल
जैसे कुएं का
बकुल-
तपती धूप में प्रदान करता
शीतलता-
जाग नारी पहचान तू खुद को..मालती मिश्रा
नारी की अस्मिता आज
क्यों हो रही है तार-तार,
क्यों बन राक्षस नारी पर
करते प्रहार यूँ बारम्बार।
क्यों जग जननी यह नारी
खिड़की मर गई है... डॉ. जेन्नी शबनम
खिड़की सदा के लिए बंद हो गई है
वह अब बाहर नहीं झाँकती
ताज़े हवा से नाता टूट गया
सूरज अब दिखता नही
पेड़ पौधे ओट में चले गए
बिचारी खिड़की
आज की शीर्षक रचना..
भ्रम....डॉ.सुशील जोशी
सिर्फ
अमन चैन
सुख की
हरियाली
में सोना
ढूंढता है
कड़वे स्वाद
में मिठास
और
दुर्गंध में
सुगंध
आज के लिए बस
आज्ञा दें दिग्विजय को
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमन को आनंदित
करनी वाली प्रस्तुति
धन्यवाद
सादर
बेहतरीन पठनीय लिंक , आभार आपका
जवाब देंहटाएंसुन्दर गुरुवारीय अंक दिगविजय जी । आभार 'उलूक' का सूत्र 'भ्रम' को शीर्षक देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन, मेरी रचना को शामिल करने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन, मेरी रचना को शामिल करने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएं