रश्मियाँ दास
पुनर्मिलन आस
बूँदों की सांस ।
ओस की बूँद
आँख जो बूढ़ी रोई
स्वेद की कहानी
किन्नर माँ कहानी
जहर
कैसे पूरा करूँ उन हसीन सपनो को
जो कभी मैने थे रातों में सजाए
मंजिल अब लगे है धुआं-धुआं
और कदम भी मेरे लड़खड़ाए
कैलेंडर
वरख बदलने लगा, तो दिल मे एक ख़याल आया।
कि क्यों न एक मासूम सी शरारत की जाए।
और लड़कपन के खेल की तरह, ज़रा सी रोमंची करके।
अक्टूबर का महीना; फिर से जिया जाए।
रक्त में रंगा न हो, आदमी नंगा न हो
फिर मिलेंगे ..... तब तक के लिए
आखरी सलाम
विभा रानी श्रीवास्तव
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंसादर नमन
बूंद-बूंद से सागर भर दिया आपने
सादर
वाह...
जवाब देंहटाएंअप्रतिम..
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
सादर
बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएं