आज 9 अगस्त है...
भारत के इतिहास का स्वर्णिम दिन...
राम मनोहर लोहिया ने भारत छोड़ो आंदोलन की पचीसवीं वर्षगांठ पर लिखा था....
"9 अगस्त का दिन हम भारतवासियों के जीवन की महान घटना है और यह हमेशा बनी रहेगी। 15 अगस्त
राज्य की महान घटना है, अभी तक हम 15 अगस्त को धूमधाम से मनाते हैं,क्योंकि उस दिन ब्रिटिश वायसराय माउंटबेटन ने भारत के प्रधानमंत्री के साथ हाथ मिलाया था और क्षतिग्रस्त आजादी हमारे देश को दी थी, वहीं 9 अगस्त देश की जनता की उस इच्छा की अभिव्यक्ति थी जिसमें उसने यह ठान लिया था कि हमें आजादी चाहिए और हम आजादी ले कर रहेंगे।'
आजा़दी के आंदोलन के इतिहास में 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन सबसे
अधिक ताकतवर गरिमामयी और ज्योतिर्मय अध्याय है"
भारत छोड़ो आन्दोलन 9 अगस्त, 1942 ई. को सम्पूर्ण भारत में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के आह्वान पर प्रारम्भ हुआ था। भारत की आज़ादी से सम्बन्धित इतिहास में
दो पड़ाव सबसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण नज़र आते हैं- प्रथम '1857 ई. का स्वतंत्रता संग्राम' और द्वितीय '1942 ई. का भारत छोड़ो आन्दोलन'। भारत को जल्द ही आज़ादी
दिलाने के लिए महात्मा गाँधी द्वारा अंग्रेज़ शासन के विरुद्ध यह एक बड़ा 'नागरिक अवज्ञा आन्दोलन' था। 'क्रिप्स मिशन' की असफलता के बाद गाँधी जी ने एक और बड़ा
आन्दोलन प्रारम्भ करने का निश्चय ले लिया। इस आन्दोलन को 'भारत छोड़ो आन्दोलन' का नाम दिया गया।
ऐसे ही क्रांतिकारी प्रदेशों में से बिहार भी एक था. विधान सभा पर राष्ट्रीयध्वज लहराने की तमन्ना के साथ उमड़ी भीड़ को अंग्रेजों की गोलियों का सामना करना पड़ा।
किन्तु न तो भीड़ का उत्साह डिगा न ही उनके हाथ का ध्वज. इस घटना में शहीद हुए 7 नौजवानों जो मात्र 9 - 12 वीं कक्षा के ही छात्र थे के नाम- 'उमाकांत प्रसाद सिन्हा, रामानंद सिंह, सतीश प्रसाद झा, जल्पति कुमार, देवीपद चौधरी, राजेंद्र सिंह तथा रामगोविंद सिंह थे '।
गाँधी जी ने कांग्रेस को अपने प्रस्ताव को न स्वीकार करने की स्थिति में चुनौती देते हुए कहा - "मैं देश की बालू से ही कांग्रेस से भी बड़ा आन्दोलन खडा कर दूँगा|"
जवाहर लाल नेहरू ने कहा - " हम आग से खेलने जा रहे हैं | हम दुधारी तलवार का प्रयोग करने जा रहे हैं, जिसकी चोट उल्टे हमारे ऊपर भी पड़ सकती है |"
"अंग्रेज तो चले जायेंगे लेकिन हमें क्या मिलेगा" ठीक वही सोच विद्यमान थी जो १८५७ के विद्रोह और उससे पहले भारतीय सामंतों की थी | यहाँ मैं जानबूझकर सामंत
शब्द का प्रयोग कर रहा हूँ, क्योंकि सभी भारतीय राजे-राजवाडे अंग्रेजों के सामंत ही थे | 1857 से पहले कंपनी को और उसके बाद बितानिया हुकूमत को कर देकर प्रजा
का शोषण करके अपनी विलासिता का साधन जुटाने वाले सामंत | भारतीय सामंत राजाओं की सोच वैसी ही थी जैसी वर्तमान राजनैतिक नेताओं की है - "हमारा राज (कुर्सी) बना
रहे, बाकी सब चलता है | हमारा अस्तित्व सिर्फ़ कुर्सी में है|"
गांधीजी हज़ारों निशस्त्र और बेगुनाह लोगों की निर्मम हत्या के विरोध में मरणव्रत पर बैठ गए. नतीजा यह हुआ कि देश और विदेश में ब्रिटेन सरकार की बहुत निन्दा हुई. वायसराय कौंसिल के तीन सदस्यों ने त्यागपत्र दे दिए. ''भारत छोड़ो आन्दोलन'' एक ऐसा आंदोलन था जिसने अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिला दी. जनता का मनोबल बढ़ा और सरकार की दमनकारी एवं दोगली नीतियों का पर्दाफाश हो गया. इसका सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव इन्डियन नेशनल आर्मी की स्थापना में तेजी लाना था जिसके फलस्वरूप जनरल मोहन सिंह की कमाण्ड में सितम्बर, 1942 में 16300
युद्धबंदियों के साथ एक फौजी डिविज़न का गठन किया गया. जनरल मोहन सिंह का लक्ष्य दो लाख युद्धबंदियों से इण्डियन नेशनल आर्मी का निर्माण करना था परन्तु जापानियों
से गंभीर मतभेद होने के कारण यह संभव न हो सका. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के सिंगापुर पहुंचने पर उन्होंने दक्षिण पूर्व एशिया के भारतवासियों अैर आईएनए को लेकर
अंतरिम सरकार बनाई जिसे मित्र देशों ने शीघ्र ही मान्यता प्रदान कर दी. नेताजी ने अपने ऐतिहासिक उद्बोधन में कहा था- ''तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा.'' इन शब्दों ने जवानों में नया जोश भर दिया और वे सभी बाधाओं को रौंदते हुए आगे बढ़ते गए, आगे बढ़ते गए. उन्हें न परिवारों की चिन्ता थी न मौत का डर. आज ''भारत छोड़ो आन्दोलन'' दिवस है. उत्सव, खुशी और उल्लास का दिन. उन शहीदों को याद करने का दिन, जिनकी बदौलत आज हम आज़ाद हैं. उन्होंने हंसते-हंसते अपना सब कुछ हमारे लिए कुर्बान कर दिया. उनके कुछ सपने थे पर वे अभी भी अधूरे हैं. हम अभी तक उनके सपनों के उस सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक ढांचे का निर्माण नहीं कर पाए जहां सभी को निःशुल्क शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार, इंसाफ और आगे बढ़ने के समान अवसर मिल सकें. उनके ख़्याल में पूर्ण आज़ादी का अर्थ सिर्फ़ अंग्रेजी
चंगुल से छुटकारा प्राप्त करना ही नहीं बल्कि हर प्रकार की दिमागी गुलामी से भी मुक्ति प्राप्त करना था. क्या हम यह सब कर पाए? शायद नहीं. आइये, उनकी बेमिसाल
कुर्बानियों से प्रेरणा लें और अपने आपको उनके स्वप्नों को साकार करने में लगा दें. यही आज के दिन उनको सही श्रद्धांजली होगी.
शहीदों को सलाम, शहीदों को सलाम, शहीदों को सलाम. जय हिंद.
अब पेश है....आज की चुनी हुई कड़ियां...
साथ तुम्हारा
विरह मे छलके थे कभी जो आँसू ,
अब मिलन मोती बन गए हैं |
जमाने में तुम्हारा साथ क्या मिला,
पराए भी हमारे बन गए हैं |
हरेक वृक्ष नहीं फलवाला वृक्ष ही झुकता है
नम्र बनने के लिए कोई मोल नहीं लगता है।
सदा तराजू का वजनदार पलड़ा ही झुकता है।।
जो झुक जाता है उसे काटा नहीं जाता है।
वह कभी टूटता नहीं जो लचकदार होता है।।
मनभावन सावन ऋतू आया
मौन ह्रदय में हलचल करते
पवन झकोरे चूमते माथ
सिहर से जाते कोमल गात
भर प्राणों में पुलक घनेरी
प्रेम सजाता अंतस नगरी
नैनों में होता सम्मोहन
मन मोहती रुत ये पावन
मखमल सी पसरी हरियाली
गीता का प्रथम अध्याय हमें बतलाता है इस जीवन और जगत को देखने का हमारा तरीका विकार ग्रस्त है
कृष्ण अर्जुन को बतलाते हैं तुम सीमित शरीर नहीं हो ,असीम हो सच्चिदानंद स्वरूप हो ,कोई ऐसा वक्त नहीं था जब तुम नहीं थे या मैं नहीं था या ये कथित कुलगुरु
नहीं थे ,ये आगे भी रहेंगें ,देह नष्ट होती है ,जो परिवर्तनशील है वही माया है जो परिवर्तन शील नहीं है वह 'तुम' यो -ओर रीयल सेल्फ है ।
बुलंदशहरों की बुलंदियों को कब तक लगता रहेगा ग्रहण??
सामान्यत: यह कहा जाता है कि रात को महिला अकेली घर से बाहर निकली थी और उसने भड़काऊ कपड़े पहन रखें थे इसलिए बलात्कारियों को प्रोत्साहन मिला! लेकिन बुलंदशहर
हादसे की पीड़िताएं अकेली नहीं थी और उन्होंने कपड़े भी कम नहीं पहने थे फिर क्यों हुआ उनके साथ गैंगरेप? आइए, हम थोड़ा इस बात पर गौर करें कि आखिर इंसान इंसानियत
की सभी हदे पार करकर बलात्कार जैसे कुकर्म क्यों करता है?
आज ‘बुलंदशहर रेप कांड’ की सभी चैनल पर साधारण खबर है। मायावती का कोई बयान नहीं आया, केजरीवाल जी चूप है, राजीव गांधी मिलने नहीं गए और न ही टी. व्ही. पर ‘दलित
बनाम अदलित’ की बहस छिडी! क्यों? क्योंकि ‘बुलंदशहर रेप कांड’ की पीड़िताएं सामान्य कैटेगरी की थी और आरोपी दलित थे!! क्या सामान्य कैटेगरी के लोग इंसान नहीं
होते? अचंभा तो तब अधिक होता है जब सामान्य कैटेगरी के नेता भी ऐसे समय चुप्पी साध जाते है और आजम खान जैसे नेता बलात्कार जैसी घटना को भी विरोधियों की साजिश
बताने से बाज नहीं आते। हमारें यहां जब-तक कोई घटना वोटबैंक में बदली नहीं जा सकती तब-तक वो घटना, एक सामान्य घटना रहती है। चाहे वह किसी का बलात्कार ही क्यों
न हो!!!
व्यर्थ नहीं यह जीवन
कार्य की पूर्णाहुति पर
जो भी हो प्रतिक्रया
वही उसकी मापनी होगी
कहने वाला कह पाएगा
जिन्दगी व्यर्थ नहीं गवाई
जिन्दगी का कुछ अभी
तो सार बाक़ी है
आज से ठीक 70 वर्ष पूर्व अमेरिकी परमाणु हमले में जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी पूरी तरह से तहस नहस हो गए थे । उस परमाणु हमले की विभीषिका आज भी रोंगटे
खड़े कर देने वाली है ,ऐसा लगता है कि अब अगर परमाणु युद्ध हुए तो पूरी दुनियाँ ही तबाह हो सकती है । हिरोशिमा दुनिया का पहला ऎसा शहर है जहां अमेरिका ने 6
अगस्त 1945 में यूरेनियम बम गिराया था और इसके तीन दिन बाद यानी 9 अगस्त को नागासाकी पर परमाणु बम गिराया गया। इस बमबारी के बाद हिरोशिमा में 1 लाख 40 हजार
और नागासाकी में 74 हजार लोग मारे गए थे। जापान परमाणु हमले की त्रसदी झेलने वाला दुनिया का अकेला देश है। यह परमाणु हमला मानवता के नाम पर सबसे बड़ा कलंक
है । 6 अगस्त, 1945 की सुबह अमरीकी वायु सेना ने जापान के हिरोशिमा पर परमाणु बम लिटिल बॉय गिराया था। तीन दिनों बाद 9 अगस्त को अमरीका ने नागासाकी शहर पर फैट
मैन परमाणु बम गिराया।
अमेरिका द्वारा किये गए परमाणु हमले के बाद अमरीका के राष्ट्रपति हैरी ट्रूमन ने कहा कि हिरोशिमा पर गिराया गया बम अब तक इस्तेमाल में लाए गए बम से दो हजार
गुना शक्तिशाली है। इससे हुई क्षति का आज तक अनुमान नहीं लगाया जा सका है। बम को अमरीकी जहाज बी-29 से गिराया गया था जिसे इनोला गे के नाम से जाना जाता था।
धन्यवाद।
बहुत मेहनत से उम्दा प्रस्तुतिकरण
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएं9 अगस्त वाकई में महत्वपूर्ण
महत्ता संमझ में आ रही है लोगों को
पर कुछ ही लोगों को
जिन्होंने उस पल को जिया है
सादर
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम
बहुत खुबसूरत और जानकारी से भरी प्रस्तुति
ब्लॉगर भाई कुलदीप जी, मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहूत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद इस सामयिक जानकारी की प्रस्तुति और मेरे ब्लॉग 'गांधीजी' की पोस्ट को भी इसमें शामिल करने के लिए।
जवाब देंहटाएंखूबसुरत प्रस्तुति मनभावन सावन रीतु आया को शामिल करने लिये बहुत-बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंखूबसुरत प्रस्तुति मनभावन सावन रीतु आया को शामिल करने लिये बहुत-बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रसतुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
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