निवेदन।


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बुधवार, 31 अगस्त 2016

411.....साँसें चल रहीं हैं! शायद जिंदा ही दफन किया जाऊँगा

सादर अभिवादन
कल भाई कुलदीप जी के वापसी नहीं होनी थी
पर अकस्मात वे टाईम से पहुँच गए
उसी फिक्र में मैं प्रस्तुति तैय्यार कर रखी थी

आज देखिए उन चुनी रचनाओं के साथ कुछ और रचनाएँ..


अपनी बात.....अनुपम वर्मा
आज वो पौधे बडे हो चुके हैं !!!खुशबू है उन चम्पा के फूलों में
मगर जुबैर और हानिया की मोहब्बत की खुशबू !!
अकसर कुंदुस बेगम के आँसुओं के क़तरे ओस के कतरों के साथ इन पौधों की सब्ज पत्तियों पर जम जाते हैं
अकसर वह इन मासूमों की अनाम कब्रों पर अपने गुनाह की सज़ा के लिये दुआ माँगती हैं



तेरे लिए खुद ही तेरा नजराना हुआ फिरता हूँ...... विजयलक्ष्मी
" दीवानगी बताऊँ क्या मस्ताना हुआ फिरता हूँ
न हो मुलाक़ात उनसे दीवाना हुआ फिरता हूँ ||

बेख्याली है कि बारिश में भीगता फिरता हूँ
बरसते है बादल जब मस्ताना हुआ फिरता हूँ ||



मन ,जी हाँ मन ,एक स्थान पर टिकता ही नही पल में यहाँ तो अगले ही पल न जाने कितनी दूर पहुंच जाता है ,हर वक्त भिन्न भिन्न विचारों की उथल पुथल में उलझा रहता है ,भटकता रहता है यहाँ से वहाँ और न जाने कहाँ कहाँ ,यह विचार ही तो है

थम जा बस इंसान यही पे
सरकार तो दोषी है ही
दर्द किसी का देख
इक दिल नहीं पसीजा
लानत है बेदर्द दुनिया तेरी


हर तारीख पुरानी याद जगा जाती है 
न भूल सका अभी एहसास दिला जाती है 
हर बार मेरा इतिहास मेरे आज से जीत जाता है 
घंटों मुझे गहराई में डूबा जाती है 
हर तारीख पुरानी याद जगा जाती है. 

कल ज़िंदगी मेरे पास आई 
चुपके से मुस्कुराई 
हौले से मेरे बाल सहलाये
धीरे से गालों पर चपत लगाई 
और फिर मेरी उंगली पकड़ 
मुझे उठा ले गयी


आज की पहली प्रस्तुति बेहद मार्मिक है
आज्ञा दें
सादर




मंगलवार, 30 अगस्त 2016

410....राजनीतिक दलों की फंडिंग , चन्दे का मायाजाल और सूचना के अधिकार का प्राविधान /


जय मां हाटेशवरी...

काफी समय बाद...
दिल्ली से आते हुए...
चंडीगढ़ भी रुका...
कई पुराने मित्रों से भेंट हुई...
बहुत आनंद आया...
कॉलिज की पुरानी यादें ताजा हो आयी...
मैं खुद को बहुत सौभाग्यशाली समझता हूं...
मुझे जीवन में अच्छे ही इनसान मिले...
पर एक या दो बुरे लोगों से सामना भी  हुआ...
वो इतने बुरे थे कि...
वो इनसान नहीं हो सकते...
उनके बारे में कभी अवश्य चर्चा करूंगा...
पर अभी समय है...आज की चर्चा का...

अपनों से मिला है न ज़माने से मिला है
जलने का तज़ुर्बा भी बड़ी चीज़ है यारों
मुझको हवन में हाथ जलाने से मिला है
किसको फ़िकर है दर्द की, सब पूछते हैं ये
किसकी गली से किसके ठिकाने से मिला है
रिसता न गर लहू तो कोई जान न पाता
क्या ज़ख्म लिए कौन ज़माने से मिला है

राजनीतिक दलों की फंडिंग , चन्दे का मायाजाल और सूचना के अधिकार का प्राविधान / विजय शंकर सिंह
2013 में मुख्य सूचना आयुक्त , भारत सरकार ( सीआईसी ) ने एक निर्णय दिया कि, सभी राजनीतिक दल पब्लिक अथॉरटी हैं और इस कारण वे, सूचना के अधिकार के अंतर्गत मांगी गयी सूचना देने के लिये बाध्य हैं । सीआईसी ने सभी राजनितिक दलों को, इस अधिनियम के अंतर्गत सुचना अधिकारी और उनके आदेशों पर अपील की सुनवाई के लिए अपीलीय अधिकारी की नियुक्ति करने की बात कही । आरटीआई अधिनियम की धारा 20 ( h ) के अंतर्गत पब्लिक अथॉरटी हर उस गैर सरकारी संगठन को माना गया है जिसे सरकार कोई न कोई सहायता देती है । सरकार भी जो धन देती है वह अंततः जनता का ही धन होता है जो उसे करों के रूप में मिलता है । इस पर सभी राजनीतिक दल एकजुट हो गए और उन्होंने सीआईसी के इस प्राविधान का विरोध किया । अब यह मामला अदालत में है ।
राजनीति में शुचिता की बात सभी करेंगे, पर जब ठोस कार्यवाही की बात आएगी तो सभी बगलें झाँकने लगेंगे । हर राजनीतिक दल पर, जब जिसका भविष्य थोडा सा भी अच्छा दिखने लगता है तो कुछ  प्रत्याशी खुद ही थैली ले ले कर दौड़ने लगते हैं । राजनीतिक दल भी यह अवसर भी चूकना नहीं चाहते । इस से उस छोटे से वर्ग में जो राजनीति में शुचिता को खोजते हुये देशहित और समाज सेवा के लिए आगे आने लगता है को यह थैली दौड़ निराश और कुंठित करती है । बहुत से अच्छे और विद्वान तथा योग्य लोगों को जिन्हें सच में संसद या विधान सभा में होना चाहिए के मुंह से मैंने स्वयं सुना है कि, अब चुनाव उनके बस का नहीं रहा । इसी धन के लालच के कारण राज्य सभा और विधान परिषदें जो उन लोगों को सदन में लाने के लिए बनायी गयी थीं, जो अपने अपने क्षेत्र में योग्य तो हैं पर किन्ही कारणों से प्रत्यक्ष चुनाव नहीं लड़ सकते हैं को यहाँ ला कर उनकी मेधा तथा प्रतिभा का लाभ उठाया जा सके, को दरकिनार कर पूँजीपतियों को केवल धन के बल पर सदन में लाया जा रहा है । यह लोकतंत्र के कैचमेंट एरिया का संकुचन है । धीरे धीरे जनता की प्रतिभागिता, कुछ ख़ास वर्ग से सिमटते सिमटते , कुछ ख़ास परिवारों तक सिमटने लगी है । इसे आप लोकतंत्र की विडंबना भी कह सकते हैं ।






















क्या आँच दे सकेंगे बुझते हुए शरारे
गोया के आ रहे हैं अब तक सँभालते ही
पागल नदी को फिर भी दिखते नहीं किनारे
डालो अलाव में जी! कुछ और अब जलावन
क्या आँच दे सकेंगे बुझते हुए शरारे
तुर्रा है यह के उल्फ़त ख़ंजर की धार सी है
और उसपे रक्स को हैं बेताब लोग सारे
वह बेल इश्क़ वाली सरसब्ज़ क्या रहेगी
ग़ाफ़िल रहेे जो तेरे शाने के ही सहारे












सिर्फ एक दो ईंटों से ही
सिर्फ एक दो ईंटों से ही
कोई मकान नहीं बनता
सिर्फ नारों -इश्तिहारों से
कभी हिंदुस्तान नहीं बनता -
बूंद बूंद से सरिता बनती
सरिता सरिता से सागर है
धागों से धागे न जुडते
कोई परिधान नहीं बनता -










उम्मीदों की सलीब
एक बोझिल सुबह
जिसमें समेटना है दिन का विस्तार
इसके पहले कि मायूसियाँ
शाम के साथ
लिपटने लगे पहलू के साथ
धन्यवाद।



















सोमवार, 29 अगस्त 2016

409..ले भी लीजिये हजूर छुट्टी के दिन ऐसा ही बेचा जायेगा

सादर अभिवादन..
दो दिन के बाद
उत्सवों का सिलसिला जारी हो जाएगा
तीजोत्सव फिर गणेशोत्सव के दस दिन
तदोपरान्त पितृोत्सव
चलिए..उत्सव तो आते-जाते रहेंगे
हम भी साथ-साथ ही चलें इनके........


जो बात है हद से बढ़ गई है
वाएज़ के भी कितनी चढ़ गई है
हम तो ये ही कहेंगे तेरी शोख़ी
दबने से पहले कुछ और बढ़ गई है


आजकल पता नही क्यों?
गुलाब खूबसूरत तो बहुत होते हैं
मगर उनमें खुश्बू नही होती
लगता है इनको भी शहरों की
लत लग गई है ।



विश्वभ्रमण,धन खूब मिलेगा, पूँछ उठाये घूमेंगे ,
देशभक्ति का बोर्ड लगाए रहते हैं, उल्लू के पट्ठे !


काफी दिनों से खुद
को टटोल रही हूँ ,
ढूंढ रहीं हूँ वो शब्द 
जिसे अपने 
एहसासो मे 
पिरो कर 
कविता बना सकूँ ,


तो अपनेआप पर काबू रखें!.....ज्योति देहलीवाल
बेटी की बात एक पल को तो ख़राब लगी, पर मुझे अपनी ग़लती का एहसास भी हुआ। सच में, कभी-कभी बच्चे भी अनजाने में हमें बहुत बड़ी सीख दे देते है। तब से मैने यह मंत्र अपना लिया है कि यदि किसी बात को सम्भालना या ठीक करना हमारे बस में नहीं है, तो कम से कम हमें ख़ुद पर काबू रखना चाहिए,
ताकि स्थिती न बिगड़े।



आज खामोश है सब कुछ जहाँ मे......अनुपम चौबे
आज खामोश है सबकुछ जहान में ,
एक भँवर सा उठ रहा है मेरे ईमान में
कभी तोहफे में मिली थी आजादी हमें ,
क्या भूल गए हम खुदगर्जी के तूफ़ान में .




ठीक एक साल पहले
ले लीजिये साहब ...सुशील कुमार जोशी
दिखने दिखाने में
कुछ नहीं रखा है
बहुत काम का है
बहुत काम आयेगा
आगे काम ही
काम दिखेगा
बचा कुछ भी
नहीं रह जायेगा
रख ही लीजिये
हजूर देखा जायेगा ।

आज मैं भी अतिक्रमण कर बैठी
नहीं गर मांगी इज़ाज़त तो
गबज हो जाएगा
(मेरा चीकू गज़ब को गबज ही कहता है)

रविवार, 28 अगस्त 2016

408......जिन्दगी कुछ ना कहा तूने

  सुप्रभात 
नमस्कार
आज रविवारीय चर्चा मे 
आपका स्वागत है

. बचने का कोई रास्ता न खुला हो तो मनुष्य डटकर संघर्ष करता है और उसके संकल्प में अटूट दृढ़ता आ जाती है । वह घोर कठिनाई व असह्य कष्ट को भी सहन करता है।
                      

अभी अभी सोया है वह बच्चा
पाँच मिनट पहले तक वह मजदूर था
अभी उतरी है चेहरे पर बाल्य की आभा
कि तभी मालिक हुड़कता है
कि धोया नहीं तीन जूठे ग्लास
आँखें मलते हुआ वह मजदूर पुनः
और फिर सो गया थकान लपेटकर
भूख की किरचें गड़ती हैं ऐंठी हुई नींद में जगह जगह

           

प्यारे भाई आनंद सिंह 
सादर दिवंगतस्ते!
बहुत ही दुखी और उदास मन से तुम्हें यह पत्र लिख रहा हूँ। कलम चलते-चलते अचानक रुक सी जाती है, लेकिन तुम जैसे बहादुर पुलिस के सिपाही को पत्र लिखने में ये कलम भी गौरव का अनुभव करते हुए रुक-रूककर एकदम से चल पड़ती है। कुछ रोज पहले तुम अद्भुत शौर्य दिखाते हुए एक गरीब रेहड़ीवाली महिला को लुटने से बचाते हुए उन तीन बदमाशों से जाकर भिड़ गए और बदमाश की गोली खाकर भी तुमने तब तक उनका पीछा किया जब तक कि तुम निढाल होकर धरती पर गिर नहीं पड़े।

     

22 साल पहले जब मैंने भारतीय पुलिस सर्विस में शामिल होने का निर्णय लिया था, जब मुझे लगा की ऐसा करने के लिये बहुत ताकत की जरुरत होती है, ऐसे ताकत जिससे चीजो को किया जा सकता है और सही करने की ताकत।” मेरा यही मानना है की किसी भी देश की पुलिस वहाँ के नागरिको के हक्को की सबसे बड़ी रक्षक है।


ज़िंदगी कुछ नहीं कहा तूने,
मौन रह कर सभी सहा तूने।

रात भर अश्क़ थे रहे बहते,
पाक दामन थमा दिया तूने।

लगी अनजान पर रही अपनी,
दर्द अपना नहीं कहा तूने।



गहरी काली रात,
न चाँद, न सितारे,
न कोई किरण रौशनी की.

चारों ओर पसरा है 
डरावना सन्नाटा,
सिर्फ़ सांय-सांय 
हवा बह रही है.

अब दीजिए आज्ञा
विरम सिंह सुरावा
सादर


शनिवार, 27 अगस्त 2016

407 .... शनिवार 27 अगस्त 2016




सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष


शनिवार मेरा खुद से चयनित दिवस है
क्यूँ ना इस बार शनिवार को पोस्ट हुए ही
सारे के सारे पोस्ट पढ़े जाएँ






आज कब आओगी ।
और  क्या पकाओगी ?
और सूखी लकड़ियों ने
ख़ुशी मनाई ।
आज वह जलने से ,
बच गयीं  ।







"भला कलयुग में सत्य का क्या काम?", उसने गुहार लगाया 
और  दिये  को  न्याय की तराजू में बैठने को मजबूर कर  दिया.
"सम्पूर्ण सृष्टि जब आकंठ कलयुग में समायी हुई है तो 
फिर सतयुगी प्रतीक का क्या औचित्य, यदि न्यायधीश हैं 
तो पट्टी हटा मेरे अस्तित्व को चुतौती देने वाले को सजा दें  ?"






गरीबी और अशिक्षा का सीधा असर रोजगार पर पड़ता है
और सरकारी नौकरियों में उनका बहुत कम प्रतिनिधित्व है.
इस समुदाय के अधिकांश लोग स्व-रोजगार से जुड़े हैं
और यह स्व-रोजगार भी उनके लिए "जैसे-तैसे पेट भरने" का माध्यम भर होते हैं,
 उनकी आर्थिक उन्नयन का माध्यम नहीं. यही कारण हैं कि 
मुस्लिमों में बेरोजगारी दर ग्रामीण क्षेत्रों में 3.9% तथा शहरी क्षेत्रों में 2.6% है.







मेरा बेटा कभी हार मान ही नही सकता,
क्योंकि उसे तो दुनिया की हर एक ख़ुशी,
मेरे इस आँचल में ला कर डालनी है ना।
तुम खुश हो तो खुश हूँ मैं, ये सिर्फ एक माँ कहती है,
मैं कहता हूँ, माँ साथ है तो हर जंग में जीत पक्की है,






फल वाला – ठीक है. 80 के 8 ले लो
लड़की –
.
.
.
.
थैंक यू सो मच भैया दे दो😆😆😆😆😆😆






एक स्त्री बुन लेती है कविता 
पुराने कपड़े की सीवन उधेड़ते हुए 
घूम आती है चाँद पर 
रसोई में गोल- गोल रोटियाँ बनाते हुए

एक स्त्री कल्पनाओं के शहर में 
स्वर्ग बना लेती है अपना 
और जी लेती है अनकहे ... अनगिनत खूबसूरत लम्हे 





ढेर सारी बधाईयाँ पाकर
खुशह हो जाया करते हैं...
जब बहुत सारे लोग करते हैं विश हमें
जन्मदिन तो है ही सबका कोई ना कोई दिन 
मगर हर दिन को खुशियों से जी लें 
अपनी समस्त जिम्मेवारियों के बावजूद 
अपने तमाम दुखों और पीडाओं के बाद भी 
तो दोस्तों...इस जीवन का कोई अर्थ है...
है ना दोस्तों मेरे प्यारे दोस्तों....
तो आज मेरे जन्मदिन से 



फिर मिलेंगे ..... तब तक के लिए

आखरी सलाम


विभा रानी श्रीवास्तव

शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

406....आज का यह पृष्ठ कृष्ण मय हो गया है

सादर अभिवादन..

भगवान श्री कृष्ण का जन्म आधी रात को 
भारी बारिश के बीच हुआ
सब ताल-तलैया नदी-नाले लबालब थे
ऐसे में वसुदेव जी भगवान को सूप में रखकर
जमना जी को पार किए..
सोचिए प्रभु की लीला...कितनी न्यारी
आज का यह पृष्ठ कृष्ण मय हो गया है

भाई कुलदीप जी आज लौटेंगे दिल्ली से
आज मेरी पसंद....

सुनो राधा तुम हो हमरी नजरिया 
तुम्ही को सोचूं मैं सुबह शामरिया 
कैसे तुमको बताऊँ कैसे ये समझाऊँ 
जल्दी ही आऊंगा मैं वृन्दावन नगरिया 
जबसे हुआ है तुमसे प्यार ओ कन्हैया.

मथुरा को पहले मधुपुरी भी कहा जाता था। कहते हैं, इसे मधु नामक दैत्य ने बसाया था। 
कालांतर में यह शूरसेन राज्य की राजधानी बनी और उसी 
वंशानुक्रम में उग्रसेन के आधिपत्य में आयी। 


जपे राधा जपे मीरा ,,दिवानी वो कन्हैया की ,,
कभी यमुना किनारे पर कभी डारन बसैया भी ,,
कभी गोपी रिझाये वो, कभी ममता सताये वो ,,
गजब धेनू चरैया वो ,,वही मुरूली बजैया भी ||

जन्मे कृष्ण कन्हैया..............कंचन प्रिया
ए बुआ आओ ज़रा काजल लगाओ
नज़र ना लग जाये भईया
जन्मे कृष्ण कन्हैया


कविता की मौत........धर्मवीर भारती 
याद आती है मुझे
भागवत् की वह बड़ी मशहूर बात
जबकि ब्रज की एक गोपी
बेचने को दही निकली,
औ' कन्हैया की रसीली याद में
बिसर कर सुध-बुध
बन गई थी खुद दही.
और ये मासूम बच्चे भी,
बेचने जो कोयले निकले
बन गए खुद कोयले
श्याम की माया

प्रलय... डॉ. जेन्नी शबनम
नहीं मालूम कौन ले गया
रोटी को और सपनों को
सिरहाने की नींद को
और तन के ठौर को
राह दिखाते ध्रुव तारे को

........
कल जन्म तो हो गया
गोकुल में आज धूम मची है
खील-बताशे
दूध-दही-माखन
लूटा व बांटा जा रहा  है
और रायपुर में
दही-लूट के लिये टोलिया सज-संवर रही है
आज्ञा दें यशोदा को..
इसे तो कल देना था खैर..
सादर














गुरुवार, 25 अगस्त 2016

405...बहुत कुछ गिरता है, पहले भी गिरता था, गिरता चला आया है

श्री कृष्ण-जन्माष्टमी की बधाई 


अभिवादन स्वीकार करें
आरम्भ 
रमेश जी की लिखी एक हाईकू के साथ
विष की वर्षा
अब रसना पर
बसी मन्थरा 

...
अब शुरु होता है नयी-जूनी रचनाओं का सिलसिला..



सुख की मंगल कामना....शशि पुरवार
चाहे कितने दूर हो, फिर भी दिल से पास 
राखी पर रहती सदा, भ्रात मिलन की आस 

प्रेम डोर अनमोल ये, जलें ख़ुशी के दीप 
माता के आँचल पली, बेटी बनकर सीप 


अंतर्मन के शब्द.... मुकेश सिन्हा
हाँ, नहीं लिख पाता कवितायें, 
हाँ नहीं व्यक्त कर पाता अपनी भावनाएं 
शायद अंतस के भाव ही  मर गए या हो चुके सुसुप्त!
या फिर शब्दों की डिक्शनरी चिंदी चिंदी हो कर 
उड़ गयी आसमान में !!


ज़िन्दगी से बात... रेवा
बहुत दिनों बाद
तुमसे मुलाकात हुई
ऐसा लगा
मानो
ज़िन्दगी से बात हुई ,


पिघलते क़तरों में..........अनामिका घटक
नालिश जो थी तेरे लिए तेरे ही खातिर
बयाँ न हो पाया वो अहसास गुज़र गया -

दरों दीवार जो दो दिलों का था आशियाना
मजार-ए-इश्क़ आज वहीँ पे दफ़न है  ॥ 

दिल में खंज़र न चुभाना की तेरा नाम भी है... सिद्धार्थ सारथी
अब तो बातें न बना और हमें इतना बता 
सिर्फ साकी है यहाँ पर या कोई ज़ाम भी है 
वक़्त बेवक़्त मुझे यूँ ही बुलाया न करो 
सारथी के तो बहुत से यहाँ निज़ाम भी है

लोग मिलते है यहाँ पत्थर के ..... कंचनप्रिया
लब सिल जायें तब भी क्या हो
लफ़्ज़ जाहिर हो तब भी क्या हो
कोई नहीं आता सँवारने ज़िंदगी बंजर से
लोग मिलते हैं यहाँ पत्थर के

अन्तिम पड़ाव..एक साल पहले
‘उलूक’ को ना बाजार..डॉ. सुशील जोशी 
समझ में आता है 
ना उसका गिरना गिराना 
रोज की आदत है उसकी 
बस चीखना चिल्लाना 
हो सके तो उसकी कुण्डली 
कहीं से निकलवा कर 
उसके जैसे सारे उल्लुओं को 
इसी बात पर साधने का 
सरकारी कोई आदेश 
कहीं से निकाल दो । 
....
इज़ाज़त दें दिग्विजय को..
सादर









               
        


बुधवार, 24 अगस्त 2016

404.........आदमी आदमी से पूछे किसलिये है बैचेन

सादर अभिवादन
ब्लॉग सरदार भाई कुलदीप जी
प्रदर्शनी, मीटिंग व कार्यशाला में
हिस्सा लेने दिल्ली में हैं
सो.. शनिवार तक हम दो ही सरदार हैं
मैं व विभा दीदी.....

उनकी बात छोड़िए..
मैं व वे एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं

प्रस्तुत है...आज की पसंदीदा रचनाएँ...

आप यूं ही अपना आशीष देते रहना....सदा
पापा आपकी यादों से
आज फ़िर मैंने
अपनी पीठ टिकाई है
पलकों पे नमी है ना
मन भावुक हो रहा है

कोई उम्र तय की है क्या तुमने प्यार की...सुषमा वर्मा
क्यों अब इंतजार....
तुम्हारी आँखों में नही दिखता,
क्यों अब वो मुझ पर एतबार,
तुम्हारी बातो में नही मिलता,



तम जो फैला 
तन विक्रय हित
निकली लैला

“ मेरी मैया ! मैना मीठे सुर में जब मै ना , मै ना, मै ना कहती है तब मै नहीं , मै नहीं, 
इस बात को कहकर अपने मन के छोटेपन और संकुचित दृष्टिकोण से अनायास ही मुक्त हो जाती है । 
इसलिए उसके बोल सभी को अच्छे लगते है ।
इधर बकरी बोलती है तो ‘मै-मै-मै ‘ की आवाज गूंजती रहती है। 
इसलिए उसका बोलना अच्छा नहीं लगता । उसमे उसका अहं जो बोलता है ।

छत्तीसगढ़ का मॉरिशस बुका...ललित शर्मा
छत्तीसगढ़ में भले ही समुद्र नहीं है लेकिन ‘सी बीच’ की सैर करने और बोटिंग की तमन्ना रखने वालों को मायूस होने की जरूरत नहीं। शहरों की आपाधापी से दूर प्राकृतिक सौंदर्य से भरी यह ऐसी जगह है, जहाँ गर्मी में भी दिलोदिमाग को सुकून मिलता है। यहां मीलों तक 400-450 फीट की गहराई में पानी ही पानी है। हरे-भरे जंगल और पहाड़ों के बीच झीलनुमा इस जगह पर नीला जल दिल-ओ-दिमाग पर छा जाता है।



शीर्षक कहता है कुछ इस तरह..नये अंदाज में

ही बिना किसी के 
कहीं कोई जिक्र 
किये हुऐ और 
बाकी एक अरब से 
ऊपर के पास के 
झोलों के पेंदें रहें 
फटे और खुले 
ताकि बहती रहे 
हवा नीचे से ऊपर 
और ऊपर से नीचे 
आसान हो 
निकालना 
हवा को हाथ से 
मुट्ठी बांध कर 
और चिल्लाना
.....
आज्ञा दें आज..
यशोदा को
सादर..


मंगलवार, 23 अगस्त 2016

403...क्या सचमुच कोई नेता, कोई अफसर,कोई नही चाहता


जय मां हाटेशवरी...

कुछ अधिक व्यस्तता रही...
अधिक पढ़ना सका...
जो पढ़ा...
उसकी कुछ झलकियां

अपनी ही निगाह में अजनबी
s400/thoughtful
बिल्कुल ज़रूरी नहीं
कि हम बाहर बारूद बिछा दें !
धमाके से किसी निर्दोष का अवसान
क्या हमें सुकून देगा
क्या किसी पंछी का बसेरा
फिर कभी हमारे दालान में बनेगा ?
...
हमें मजबूत होना है
सजग होना है
ना कि असली फूलों की खुशबू से विलग होना है

कर लो हिन्दी से मुहब्बत दोस्तो
बोल अपनापन भरा कहती सदा
है यहाँ माँ की इबादत दोस्तो
क्यूँ विदेशी मूल की भाषा रहे?
इसलिए करती बग़ावत दोस्तो
विश्व में इज्जत की है हक़दार वो
कर रही अपनी वकालत दोस्तो

गज़ल
मन्जिल तक पहुँचने के लिए चलना तो पढ़ेगा ,
लड़ाई जितने के लिए हिम्मत से लड़ना तो पड़ेगा।
जिसने भी हिम्मत हारा ,परीक्षा से मुहँ मोड़ा ,
मिट गया वह ,जग ने भी उसको भुला दिया।

याद दे कर न तू गया होता
ज़िंदगी कट रही बिना तेरे,
याद दे कर न तू गया होता।
नींद से टूटता नहीं नाता,
खाब तेरा न गर पला होता।

क्या सचमुच ..
सैनिक रहें सज्ज सदा,
मिले उन्हे सम्मान और मुआवजा।
पडोसी देशों से मेल हो,
शांति से खेल हों।
वे भी और हम भी रहें खुशहाल,
किसी के दिल में ना हो मलाल।
प्रकृती की मार तो पडती ही है,
पर सरकार क्यूं हम से अकडती है।
क्या सचमुच कोई नेता, कोई अफसर,कोई नही चाहता
कि लोगों का काम हो

कश्मीर पर साहसिक कदम - अशोक चतुर्वेदी
असल में आज़ादी के बाद से अब तक जम्मू कश्मीर के मसले में पाकिस्तान के आक्रामक रुख के मुकाबले भारत का रुख हमेशा रक्षात्मक ही रहा, 1948 में पाकिस्तानी आक्रामकों द्वारा जम्मू कश्मीर राज्य की कब्जाई हुई भूमि को दुश्मनों से छुड़ाने में लगी बढ़ती हुई भारतीय सेना को रोककर हम ही इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले गए अन्यथा कुछ दिनों की ही बात थी जब पूरे जम्मू कश्मीर राज्य से हमारी सेना उन्हें खदेड़ देती किन्तु हमने खुद संयुक्तराष्ट्र की पंचायत के चक्कर में कि संयुक्तराष्ट्र हमें उस हिस्से को पाकिस्तान से वापिस दिला देगा, राज्य के ऐक बड़े हिस्से को पाकिस्तान के कब्जे में रह जाने दिया और पाकिस्तान की नीयत जानते हुए भी इस अस्वाभाविक और बेवकूफी भरे सपने के सच होने का हमें इतना विश्वास था कि हमने इसी आशा में पीओके के क्षेत्रों और लोगों के नाम पर जम्मू कश्मीर राज्य विधान सभा में 24 सीटें खाली रखी कि उन क्षेत्रों के संयुक्तराष्ट्र द्वारा पाकिस्तान से वापिस दिला देने पर इन सीटों को वहां के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा भरा जायेगा ! 68 वर्ष बीत जाने पर आज भी पीओके के नाम पर खाली रखी ये सीटें आज भी नहीं भरी गयीं !

हमारी ब्रा के स्ट्रैप देखकर तुम्हारी नसें क्यों तन जाती हैं ‘भाई’? — सिंधुवासिनी
मेरे कुछ साथी महिलाओं द्वारा आजादी की मांग को लेकर काफी ‘चिंतित’ नजर आ रहे हैं। उन्हें लगता है कि महिलाएं ‘स्वतंत्रता’ और ‘स्वच्छंदता’ में अंतर नहीं कर पा रही हैं। उन्हें डर है कि महिलाएं पुरुष बनने की कोशिश कर रही हैं और इससे परिवार टूट रहे हैं, ‘भारतीय अस्मिता’ नष्ट हो रही है। वे कहते हैं कि नारीवाद
की जरूरतमंद औरतों से कोई वास्ता ही नहीं है। वे कहते हैं सीता और द्रौपदी को आदर्श बनाइए। कौन सा आदर्श ग्रहण करें हम सीता और द्रौपदी से? या फिर अहिल्या से?

छल इंद्र करें और पत्थर अहिल्या बने, फिर वापस अपना शरीर पाने के लिए राम के पैरों के धूल की बाट जोहे। कोई मुझे किडनैप करके के ले जाए और फिर मेरा पति यह जांच करे कि कहीं मैं ‘अपवित्र’ तो नहीं हो गई। और फिर वही पति मुझे प्रेग्नेंसी की हाल में जंगल में छोड़ आए, फिर भी मैं उसे पूजती रहूं। या फिर मैं पांच पतियों की बीवी बनूं। एक-एक साल तक उनके साथ रहूं और फिर हर साल अपनी वर्जिनिटी ‘रिन्यू’ कराती रहूं ताकि मेरे पति खुश रहें। यही आदर्श सिखाना चाहते हैं आप हमें?

फिर मिलते हैं...
शुकरवार को नहीं आ सकूंगा...
धन्यवाद।
















सोमवार, 22 अगस्त 2016

402..सच कभी अपने झूठ नहीं कहता है

शुभ प्रभात..
सादर अभिवादन स्वीकारें
उपस्थित हूँ आज की पसंदीदा रचनाओं के साथ..


कमर झुक -झुक कर
धरती से बतियाने लगी
कुछ ‘अपनें’ लोगो नें
‘अपनें समाज’ से निकाल दिया
घर की किसी कोठरी में
टूटी कुर्सी की तरह
डाल दिया !

मर्यादित रहना सदा हो सीमा का भान
बाधाएँ आती डरे रक्षित निज सम्मान
ओलम्पिक की रेस हो या जीवन का झोल
ले चुग्गा विश्वास से बिटिया री मुँह खोल

झूला झूलती
है बहिनभैया की 
है तीज आज |


बेटियाँ....डॉ. पूर्णिमा राय
आज खुद की कमी भाँपती बेटियाँ;
आसमाँ की ज़मीं नापती बेटियाँ।।

दुश्मनों को हराकर सदा खेल में;
मुस्कुराहट से' दिल जीतती बेटियाँ।।



बचपन जाने कहाँ गया  !
कस के मुट्ठी बाँधी फिर भी, रेत फिसलती जाती है !
इतनी जल्दी क्या सूरज को ? 
रोज शाम गहराती है !


लो बूटी और बेस हमारे गीतों में शामिल हो गए... कुलवन्त हैप्पी
बूटी का हिन्‍दीकरण पिछवाड़ा हालांकि उर्दूकरण थोड़ा सा सलीके वाला है, तरशीफ। इस गीत में जैकलीन फर्नांडीज ने जमकर बूटी थिरकाई है। जैकलीन फर्नांडीज श्रीलंकाई हैं। आप जैकलीन फर्नांडीज के जितने गाने देखेंगे, आपको बूटी के सिवाय शायद ही कोई अन्‍य मूवमेंट नजर आए।

और अंत में
एक साल पहले.. और आज का शीर्षक



सोच कर देख .....सुशील कुमार जोशी   
‘उलूक’ किसी दिन 
दुनियाँ दिखाती है 
बहुत कुछ दिखाती है 
उसमें कितना कुछ 
बहुत कुछ होता है 
कितना कुछ कुछ 
भी नहीं होता है 
जो कुछ भी कहीं 
भी नहीं देखता है 
जो कुछ भी कभी 
भी नहीं सोचता है 
....
आज्ञा दें यशोदा को
सादर






रविवार, 21 अगस्त 2016

401......जलाई जा रही हूँ हर रोज, बदज़ुबानी की आग से

नमस्कार
आज रविवारीय चर्चा 
मे आपका स्वागत है

आज की सीख 
चार बातों  को याद रखें   :-  बड़े बूढ़ों का आदर करना , छोटों से स्नेह रखना  व उनको पूर्ण सरंक्षण देना , बुद्धिमानों से सलाह लेना और मूर्खो के साथ कभी न उलझना |


आइए अब चलते है आज की
 पांच रचनाओ की लिंको की ओर

उन्हें पसंद नहीं 
तुम्हारा आँखें दिखाना.
वे कुछ भी कहें,
तुम सिर झुकाए सुनती रहो,
बीच-बीच में नाड़ हिलाकर 
हामी भर दो, 
तो और भी अच्छा.

बदले हालात को पहचानो,
अब छूट चुका है तुम्हारा मायका,
हो चुकी हो तुम किसी और की,


ज़िन्दगी की बालकनी से देखती हूँ अक्सर
हर चेहरे पर ठहरा अतीत का चक्कर

ये चेहरे पर खिंची गहरी रेखाएं गवाह हैं
एक सिमटे दुबके भयभीत जीवन की

ज़िन्दगी के पार ये सब कुछ है
मगर नहीं है तो बस 'ज़िन्दगी' ही



बकरे कटने 
के लिये ही 
होते हों 
या 
बकरे हर समय
हर जगह कटें ही 
जरूरी नहीं है 
हर कोई 
बकरे नहीं 
काटता है 
कुछ लोग 
जानते हैं 
बहुत ही 
अच्छी तरह 
कुछ बकरे 
शहर में 
मिमियाने 
के लिये 
छोड़ने भी 
जरूरी होते हैं



दुनिया मे ऐसा कोई नहीं - 
जिसे जमाने मे कोई गम नही।
हर कोई खोया है अपने गम में - 
हर किसी को लगता है कि -

उसका गम किसी से कम नहीं।
देखेंगे अगर अपने से ग़रीब किसी को - 
तो पता चलेगा कि उसका गम भी कुछ कम नही॥


    

बदहवाश एक जान को, ज़िन्दगी की जंग लड़ते देखा हैं?
हाँ मेरे हाथो में भी, खिंची कुछ वैसी ही रेखा हैं,
कुछ बदशक्ल सी हैं ज़िन्दगी, अपनों के ही दंश से,
गुरुर उनको सिर्फ इसका हैं, सब चल रहा हैं उनके वंश से।

जलाई जा रही हूँ हर रोज, बदज़ुबानी की आग से,
कमबख्त कौन सी वो चीज़ हैं, जिसे पाने के लिए जीती हूँ,
घिरी अपनों से हूँ लेकिन, पराई मेरी काया हैं,
मुझे हररोज़ उन्हीं हाथों ने, रह-रह कर जलाया हैं।



बस आज के लिए इतना ही ।
अब दिजिये 
आज्ञा 
विरम सिंह 
सादर

शनिवार, 20 अगस्त 2016

400 वीं पोस्ट ...... कारवां चलता रहे






400 के लिए चित्र परिणाम

रियो में लड़कियों के 400 मीटर की फाइनल रेस चौंकाने वाली थी।

मैं चिहुंकी ..... सबको ब्लॉग के इस पड़ाव पर देख कर


सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष






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पोस्ट बनाते बनाते सोच रही थी 400 लिंक्स सजा दूँ क्या

एक पेंच थोड़ा ढीला 


फिर मिलेंगे तब तक के लिए
आखरी सलाम



विभा रानी श्रीवास्तव



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