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गुरुवार, 23 नवंबर 2023

3953...कांच के टुकड़ों पर नाचती है ज़िन्दगी लहूलुहान क़दमों से...

शीर्षक पंक्ति:आदरणीय शांतनु सान्याल जी की रचना से। 

सादर अभिवादन। 

गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ। 

  आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

नीति के दोहे मुक्तक

मित्रता होय सज्जन की, मनु  गन्ना  मुँह  आन।

तोड़     चबाओ   चूसिये, हर विधि मीठा जान।।

गीत गाओ



यही है मन में मुझे न भुलाना 

नहीं चाहती अपने

अधिकार को किसी से बांटना

 तुम मुझे न भूल जाना

वजूद है मेरा यही

 इस को किसी की नजर न लग जाए

मुझे याद करना मेरे मन में बसे रहना। 

जीने की चाह--


कांच के टुकड़ों पर नाचती

है ज़िन्दगी लहूलुहान क़दमों

से, फिर भी दिल की

झोली से शबनमी

राहत कम नहीं

होती,

जब बैरागीजी को थाने में कविता सुनानी पड़ी


मेरे कार्यकाल मे, मनासा में गुलाबसिंहजी थानेदार थे। उनका तबादला हो गया। थाने के पुलिस कर्मचारियों ने उनका विदाई समारोह आयोजित किया। चाय-पानी, स्वल्पाहार की व्यवस्था थी। मैं भी इस आयोजन में निमन्त्रित था। मैं पहुँचा। थोड़ी देर में बैरागीजी भी आ पहुँचे। वे भी वहाँ निमन्त्रित थे। आप विचार कीजिए, थानेदार के तबादले की पार्टी में चाय-पानी के अलावा और क्या हो सकता है? कविता कैसे हो सकती है? लेकिन गुलाबसिंहजी ने अचानक ही दादा बैरागीजी से कविता सुनाने की फरमाइश कर दी। लेकिन दादा ने इस फरमाईश को सहज भाव से पूरा कर दिया। उन्होंने क्षण भर भी नहीं सोचा कि मैं अखिल भारतीय स्तर का कवि हूँ। इन पुलिसवालों को कविता क्यों सुनाऊँ? उन्होंने बहुत सुन्दर कविता सुनाई। कविता की शुरुआती पंक्तियाँ मुझे अब भी याद हैं - ‘जब तक मेरे हाथों में है नीलकण्ठिनी लेखनी, दर्द तुम्हारा पीने से इनकार करूँ तो कहना।’

बाल्की की चुप पर चुप्पी क्यों रही

फिल्म की कहानी फिल्म रिव्यू करने वालों के बारे में है। कैसे किसी फिल्म को रिव्यू बनाते हैं, बिगाड़ते हैं। एक दृश्य में हीरो कहता है 'तुमने फिल्म को 1 स्टार दिया तो कोई बात नहीं लेकिन इसकी वजह तो ठीक बताती न कि यह फिल्म कहाँ की कॉपी है, उसकी असल कमजोरी क्या है। यही दिक्कत है, जानते नहीं हो तुम लोग और कुछ भी बोल देते हो, लिख देते हो...'कागज के फूल' गुरुदत्त, फिल्मों से प्यार, फिल्मों की समझ, नासमझ इन सबके बीच ट्यूलिप के फूल, चाँदनी रात, बरसात और रोमांस को गूँथते हुए एक सीरियल किलर ड्रामा को आर बाल्की बहुत अच्छे से लेकर आए हैं।*****फिर मिलेंगे। रवीन्द्र सिंह यादव 

4 टिप्‍पणियां:

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