शीर्षक पंक्ति: आदरणीय उदय वीर सिंह जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
जुल्म और जबर को दोज़ख नसीब हो जाये,
वतनपरस्तों को उनके वतन की जरूरत है।
कायम हो दिलों में अमनोचैन आम शहरियों के,
बिंदास मासूम परिंदों को चमन की जरूरत है।
खुशियाँ हों तुम्हारी
दुआ हमारी ।
लाज-चूनर
उमंगों के कंगन
प्रेम का अर्घ्य ।
‘मैं पे और ग्रेड भी छोड़ सकता हूँ, यदि मुझे यही गुड्स क्लर्क बनाकर रख दिया जाये।
मेरे लिए मकान बहुत बड़ी समस्या है। रेलवे का क्वार्टर नहीं मिला तो मैं नष्ट हो
जाऊँगा। रीता ने तिनका-तिनका चुनकर जो घोंसला बनाया है, वह तबाह हो जायेगा। इस जमाने में तीन सौ रुपये
महीने का मकान एफोर्ड नहीं कर सकता हूँ। गेंद अब तुम्हारे गोले में है।
‘तुमने पूछा तो मैंने लिख दिया। मैं हल्का हो
गया। तुम बताओ कि अब तुम क्या करागे और मुझे क्या करना चाहिए?’
बाजार की गिद्ध दृष्टि एक मासूम से त्योहार पर
मरहब्बा
जवाब देंहटाएंबेहतरीर प्रस्तुति
सादर
बहुत सुन्दर, रोचक ! हार्दिक बधाई ,आभार 🙏
जवाब देंहटाएंसम्मिलित कर सम्मान देने हेतु हार्दिक आभार ! सभी को अशेष शुभकामनाएं 🙏
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर, सादर प्रणाम। विविध रचनाओं से सजी अत्यंत सुंदर और प्रेरक प्रस्तुति । हर रचना शिक्षाप्रद और सद्भाव लिए हुए है और अपने-आप में विशेष है । बहुत आनंद आया और बहुत सीखने को भी मिला । हार्दिक आभार एवं पुनः प्रणाम ।
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