प्रातः वंदन
"बस! अब प्रभात आने वाला है
भेद कर तम के उर को
प्रज्वलित करेगा जीवन को
तीव्र करेगा पंछी के सुर को !
व्याकुल होकर खोजेगा अब
प्रभात भी शर्वरी को
नहीं विचारेगा मित्र को
और न सोचेगा अरि को..!!"
डॉ कुमार विमलेन्दु सिंह
त्योहारों का आनंद लीजिए साथ ही ... कुछ पल, खास रचनाओं के संग✍️
"इंसान का मन भी एक समुद्र है
किसी को क्या मालूम कि
कितने हादसे और कितनी यादें
उसमें समाई हुई है..❣️"
उम्र को दराज में रख दें, उम्रदराज़ न बनें
खो जाएं जिन्दगी में,
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एक बार कश्मीर जाने का ख़्वाब मन में न जाने कब से पल रहा था, पर पिछले कुछ दशकों में वहाँ के हालात देखते हुए इतने वर्षों में हम इस ख़्वाब को कभी हक़ीक़त में नहीं उतार पाये थे ।आज कश्मीर और शेष भारत के मध्य सभी दीवारें गिर रही हैं;
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मौन स्तब्ध स्वीकृति लिए स्पर्श जो था एक अजनबी स्पंदन का l
मानो इश्क़ इजहार था माधुर्य मधुरम आत्मबोध अभिनन्दन का ll
निश्छल कल कल रगों बहती इसकी प्रेरणा थी जीवनदयानी सी l
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मैं उसे रोकती हूँ,
उम्र का तकाज़ा देकर टोकती हूँ
करती हूँ सलीके और समाज की बात
समझाती हूँ उसे सौ-सौ बार
बहलाती हूँ उसे..
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।। इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'✍️
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाएं
आभार
सादर
सभी रचनाएं बहुत ही सुन्दर हैं। पांच लिंकों के आनंद पर मेरी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंवाह..सभी रचनायें बेहद शानदार हैं पम्मी जी...आपकी मेहनत हमें इतने अच्छे साहित्य से रूबरू करा रही है , इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुंदर भूमिका और सराहनीय रचनाओं की ख़बर देते सूत्र, बहुत बहुत आभार !
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