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बुधवार, 22 नवंबर 2023

3952.. बदलते मौसम

 ।। प्रातः वंदन।।

"निशि के अनंतर सूर्य पूर्व में, उदित होता नित्य है,

चारों दिशा में रश्मियों में धारता आदित्य है ॥

सब प्राणियों के प्राण को, किरणों में धारण रवि करे,

वह सर्व लोकों, सृष्टि की, दिनमान मुखरित छवि करे॥

 डॉ. मृदुल कीर्ति

रचनाओं संग प्रस्तुति के क्रम को आगें बढ़ातें हुए आज कुछ गूढ़ शब्दों से रूबरू होते हैं..✍️



 तुझे भुलाने की कोशिश में सब याद रह गया

तु मुझमें मुझसे ज्यादा जाने के बाद रह गया।

उसके बिना इश्क का रोज़ा छूटे तो कैसे छूटे 

जाने किस छत मेरी हसरतों का चाँद रह गया।

🌟

आखिरी बार

इन बैलों के पीठ पर 

आखिरी बार हाथ फिरा रहा हूँ 

पुरखों की इस माटी पर..

🌟

मन मयूर नृत्य करता हो कर तन्मय

कोई खुशी मन में ना रहे शेष

यही दुआ करता प्रभु से

खुद नाचता झूम झूम प्रकृति में |

तब कोई उदास दिखाई ना देता

🌟

इस प्यारे से बदलते मौसम पर कुछ लाइनें

मौसम में मिस्री घोल रहा

अगहन का जाड़ा बोल रहा

पंखा कुलर एसी नहीं

अब काफी चाय पर चर्चा चल रहा

अगहन का जाड़ा बोल रहा ..

।। इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️


6 टिप्‍पणियां:

  1. अगहन का जाड़ा बोल रहा है
    एक शानदार अंक
    आभार
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपका हृदय तल से आभार।
      मेरी रचना को "पांच लिंको का आनंद" में स्थान देने के लिए आपका आभार।

      हटाएं
  2. धन्यवाद मेर्री रचना को इस अंक में स्थान देने के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  3. "पांच लिंको का आनंद" में शामिल की गई सभी रचनाएं बहुत ही उम्दा हैं।
    ब्लॉग से जुड़े सभी सदस्यों का अभिनंदन।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर पठनीय रचनाओं का संकलन। सभी को बधाई और शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं

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