।। प्रातः वंदन।।
शरद चांदनी बरसी
अँजुरी भर कर पी लो
ऊँघ रहे हैं तारे
सिहरी सरसी
ओ प्रिय कुमुद ताकते
अनझिप क्षण में
तुम भी जी लो ।
~अज्ञेय
लिजिए आज की पेशकश में शामिल
एक चौथ का
चाँद गगन में
अनगिन नदी किनारे
कहाँ स्वर्ग में
ऐसी
पूरनमासी होती प्यारे.
🌟
कितनी यादें लेकर आते हो साथ
मन तोला-माशा होता है।
बिस्तर पर चाँदनी का सोना
हरसिंगार का खिलना-महकना-गिरना
🌟
नहीं गिरी थीं बारिश की बूँद
पर थी मिट्टी की सोंधी महक
छू रहा था बदन को
नमी का गहरा एहसास.
.🌟
भैंस, भैंस की बात ठहरी।
ना ही अभिमान करती, ना स्व:गुणगान गाती,
🌟
मैं रोज़ जीती हूँ एक कविता
और रोज़ ही पी जाती हूँ उसे
अपनी श्वासों में घोलकर।
मैं रोज़ जीती हूँ एक ज़िंदगी
और दिन ढलने के साथ ही...
।। इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'
भीनी हलचल … आभार मेरी रचना को जगह देने के लिए 🌹🌹
जवाब देंहटाएंभैंस का लिंक नही बना है |
जवाब देंहटाएंलिंक दीजिए
हटाएंलगा देती हूं
सादर वंदे
आदरणीया मैम, सादर प्रणाम । शरद ऋतु का सौन्दर्य और त्योहारों के उल्लास से भरी हुई सुंदर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति । हर एक रचना पढ़ कर आनंद आया । स्वहि रचनाएं शुभता और शांति की अनुभूति कराती है । भैंस -भैंस की बात है का लिंक नहीं है । हार्दिक आभार इस सुंदर प्रस्तुति के लिए एवं पुनः प्रणाम ।
जवाब देंहटाएंआपका हृदय से आभार. बहुत अच्छे लिंक्स.
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंsundar aur sarthak sanklan, behatreen rachnaon ke liye sabhi rachnakaron ko badhai
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