शीर्षक पंक्ति:आदरणीया साधना वैद जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
शनिवारीय अंक में पढ़िए आज की पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
अपने बच्चों को भी यही सिखाती
प्यार प्रेम को गले लगाओ
दुनिया में सफल होजाओ
सब के प्रिय होते जाओ |
दोनों धीरे-धीरे
पुराने हो गए हैं,
कुर्सी का एक हाथ,
टेबल का एक पाँव
अब टूट गया है.
है स्वभाव का दास वो आदत से मजबूर
किसको हम अपना कहें दिल है गम से चूर
काश न होता इस कदर लोगों में बदलाव
काश न ऐसे डूबती बीच भँवर में नाव
बिना प्यार की ध्वनि का सहारा लिए
या भीड़ द्वारा किसी की हत्या के
या कोई धार्मिक किताब ही जलाने के
लेकिन साँसों में जाने वाले धुंआ के लिए
कभी नहीं खौलता हमारा खून.
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंशानदार अंक
आभार..
सादर
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति. आभार.
जवाब देंहटाएं