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शनिवार, 4 नवंबर 2023

3934...काश न ऐसे डूबती बीच भँवर में नाव...

शीर्षक पंक्ति:आदरणीया साधना वैद जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

शनिवारीय अंक में पढ़िए आज की पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

कोई नया नहीं

अपने  बच्चों को भी यही सिखाती

प्यार प्रेम को गले लगाओ

दुनिया में सफल होजाओ

सब के प्रिय होते जाओ |

७४१. कुर्सी-टेबल

दोनों धीरे-धीरे

पुराने हो गए हैं,

कुर्सी का एक हाथ,

टेबल का एक पाँव

अब टूट गया है.

शब्द सीढ़ी

है स्वभाव का दास वो आदत से मजबूर

किसको हम अपना कहें दिल है गम से चूर

काश न होता इस कदर लोगों में बदलाव

काश न ऐसे डूबती बीच भँवर में नाव

डर

उसे प्यार की बात 

बदलनी आती थी 

वो कह सकता था 

बहुत कोमल बात 

बिना प्यार की ध्वनि का सहारा लिए 

अंतत: वो सिद्ध हुआ एक बातफ़रोश 

बातों की कोमलता बदल गई 

वाग विलास में।

नहीं खौलता हमारा खून

या भीड़ द्वारा किसी की हत्या के

या कोई धार्मिक किताब ही जलाने के

लेकिन साँसों में जाने वाले धुंआ के लिए

कभी नहीं खौलता हमारा  खून.

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 


3 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    शानदार अंक
    आभार..
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  3. शानदार प्रस्तुति. आभार.

    जवाब देंहटाएं

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