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सोमवार, 28 मार्च 2022

3346...फिर सोचा शायद यह खुदगरजी तो नहीं ...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया आशा लता सक्सेना जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

सोमवारीय प्रस्तुति लेकर हाज़िर हूँ।

आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-

मोहब्बत किससे

सबसे सरल सबसे सहज

अपनी ओर झुकाव

लगने लगा मुझे

फिर सोचा शायद यह

खुदगरजी तो नहीं |

स्वर सुर सरगम

मन में सरगम जब बजे, मुख पर लाली लाज।

पाँवों में थिरकन मचे, रोम बजे हैं साज।।

राग नहीं सरगम बिना, लगे अधूरी जीत।

मधुर रागिनी जब बजे, कोमल मुखरित गीत ।।

मेरी तन्हाई | ग़ज़ल | डॉ शरद सिंह | नवभारत

रंग बहुत है इंद्रधनुष में, पर बेरंग हालात हुए

कोई भी तस्वीर आंख को अब तो नहीं लुभाती है।

किसके ख़ातिर जीना है अब, किसके ख़ातिर मरना है

एक यही तो बात समझ में, मुझे नहीं अब आती है।

 " रिश्तों पर कविता "


अपने रक्त के रिश्तों से हो रहा परायों सा बर्ताव

बेबुनियाद के रिश्तों से रख के अपनों सा लगाव

इस तरह उलझ ना रिश्तों से मन में गाँठ बाँधिए

नाते अनमोल अंश जीवन के अहमियत जानिए

छत विहीन प्रासाद - -

नहीं रूकती है चेहरे पर सुबह की -
नरम धूप, उसे तो हर हाल
में है ढल जानाछत
विहीन स्तंभ रह
जाते हैं अपनी
जगह ओढ़े
हुए दूर
तक वीरानगी के चादर

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


5 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर रचनाओं का बेहतरीन गुलदस्ता
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. आभार सहित धन्यवाद रवीन्द्र जी मेरी अचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए सभी रचना कारों को बधाई |

    जवाब देंहटाएं
  3. वेहतरीन संकलन, अधिकतर रचनाओं को चर्चा मंच से अवलोकन किया , सुन्दर साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. सभी रचनाएं व प्रस्तुति अद्वितीय हैं मुझे शामिल करने हेतु हृदय तल से आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  5. सभी लिंक बहुत ही आकर्षक पठनीय सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    शानदार प्रस्तुति।
    मेरी रचना को इस प्रस्तुति में शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं

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