शीर्षक पंक्ति: आदरणीया आशा लता सक्सेना जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति लेकर
हाज़िर हूँ।
आइए अब
आपको आज की
पसंदीदा रचनाओं की
ओर ले चलें-
सबसे सरल सबसे सहज
अपनी ओर झुकाव
लगने लगा मुझे
फिर सोचा शायद यह
खुदगरजी तो नहीं |
मन में सरगम जब बजे, मुख पर लाली लाज।
पाँवों में थिरकन मचे, रोम बजे हैं साज।।
राग नहीं सरगम बिना, लगे अधूरी जीत।
मधुर रागिनी जब बजे, कोमल मुखरित गीत ।।
मेरी तन्हाई | ग़ज़ल | डॉ शरद सिंह | नवभारत
रंग बहुत है इंद्रधनुष में, पर बेरंग
हालात हुए
कोई भी तस्वीर आंख को अब तो नहीं लुभाती है।
किसके ख़ातिर जीना है अब, किसके ख़ातिर मरना है
एक यही तो बात समझ में, मुझे नहीं
अब आती है।
अपने रक्त के रिश्तों से हो रहा परायों सा बर्ताव
बेबुनियाद के रिश्तों से रख के अपनों सा लगाव
इस तरह उलझ ना रिश्तों से मन में गाँठ बाँधिए
नाते अनमोल अंश जीवन के अहमियत जानिए ।
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
सुंदर रचनाओं का बेहतरीन गुलदस्ता
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
आभार सहित धन्यवाद रवीन्द्र जी मेरी अचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए सभी रचना कारों को बधाई |
जवाब देंहटाएंवेहतरीन संकलन, अधिकतर रचनाओं को चर्चा मंच से अवलोकन किया , सुन्दर साधुवाद
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं व प्रस्तुति अद्वितीय हैं मुझे शामिल करने हेतु हृदय तल से आभार ।
जवाब देंहटाएंसभी लिंक बहुत ही आकर्षक पठनीय सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति।
मेरी रचना को इस प्रस्तुति में शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।