शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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वृक्षों के पातों की खन-खन,हवाओं की रून-झुन सुनो,
मंजरियों,निबौरियों पर मंडराते भौंरों की हुम-हुम सुनो।
इंद्रधनुषी तितलियाँ छिड़क रही खुशबू और रंग देखो,
बदलते ऋतु की मदमस्त थिरकन और फागुनी धुन सुनो।
गर्मियों के पहले पीपल,नीम जैसे सभी घने वृक्षों के पत्ते
गिर जाते है और नये पत्तों के वृक्ष ढक जाते हैं ताकि ऋतु अनुरूप झुलसते तापमान से धरती को ठंडी छाँव मिल सके,पर हमने वृक्ष रहने कहाँ दिये हैं...।
प्रकृति के उपहारों की उपयोगिता समझे बगैर अंधाधुंध दोहन का परिणाम कैसा होगा विचारणीय है।
खैर..
आइये रचनाएँ पढ़ते हैं-
बिना सोचे समझे भावनाओं में बहकर लिए गये फैसलों का परिणाम दर्द ही क्यों होता है अक़्सर?
वो मेरा ही आईना था
जो मेरे अक्स से
रूठ के खड़ा था
जज़्बाती होकर
लिए थे कुछ फैसले
हमारी मर्जी के बगैर अब न कोई फैसला होगा
ऐलान है कि हर जुल्म के खिलाफ़ बुलंद हौसला होगा।
तुम्हारा ही वजूद बस और बस हमसे है
हमें कुछ मत कहना क्योंकि सच को
हम जानतें हैं कि हमारा भी होना तुमसे हैं
गर कभी सच को हम इनकार कर दें
व इनकार कर दें अपने अंदर तुम्हें रखने से
फिर हम भी किसी कीमत पर
तुम्हारी तरह ही न बदलें
हँसते मुस्कुराते चेहरों के पीछे
अनकहे दर्द की लकीरों को भींचे,
जीना पड़ता है क्योंकि जीना है,
विष समझो या अमृत इसे पीना है।
ये सूनी पथराई सी आँखें
कोरों का बाँध बना
आँसुओं का सैलाब थामें
जबरन मुस्कराती हुई
ढूँढ़ती हैं कोई
एकांत अंधेरा कोना
जहाँ कुछ हल्का कर सके
पलकों का बोझ।
एकदिवसीय सम्मान लेकर क्या करेंगे?
औपचारिक त्योहार लेकर क्या करेंगे?
सच कहूँ, ऐसे मौकों पर रानी लक्ष्मीबाई, कल्पना चावला, इंदिरा गांधी, किरण बेदी, बछेंद्री पाल आदि की स्मृतियाँ भी मुझमें वीरांगना वाला भाव नहीं भर पाती हैं । तो आज भी अपने स्वाभिमान के गांडीव को ताक पर रखकर मैंने महान धनुर्धर अर्जुन का स्मरण किया और सोचा, " छोड़ो, अपनों से क्या लड़ना।"
कविताएं कवि हृदय की अनुभूतियों का महीन
भावनात्मक ज्वार होता है।
चलते-चलते पढ़िये एक भावपूर्ण कहानी
आप नहाने जाइए,मैं शर्ट निकाल देती हूं ।’ इला उठ खड़ी हुई । यद्यपि कामदेव का नुकीला बाण उसके वक्ष में चुभ रहा था ।
भैया का हो-हल्ला मचाना इला के लिए कोई नई बात नहीं है । बिला नागा प्रतिदिन सवेरे से यही चींख-पुकार मची रहती है । भाभी लड़कियों के स्कूल में पढ़ाती हैं । उनकी सुबह की शिफ्ट में ड्यूटी रहती है । वैसे सच तो ये है कि भाभी ने जानबूझ कर सुबह की शिफ्ट में अपनी ड्यूटी लगवा रखी है । इससे घर के कामों से बचत रहती है ।
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आज के लिए बस इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर
आ रही हैं प्रिय विभा दी।
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वृक्षों के पातों की खन-खन,हवाओं की रून-झुन सुनो,
जवाब देंहटाएंमंजरियों,निबौरियों पर मंडराते भौंरों की हुम-हुम सुनो।
इंद्रधनुषी तितलियाँ छिड़क रही खुशबू और रंग देखो,
बदलते ऋतु की मदमस्त थिरकन और फागुनी धुन सुनो।
सुन्दर अंक..
आभार
सादर..
महिलाओं का यलगार वाली रचनाओं का सराहनीय संग्रहनीय शानदार प्रस्तुतिकरण छुटकी
जवाब देंहटाएंवृक्षों की पातों अच्छी व सार्थक रचना है ।
जवाब देंहटाएंमहिलाओं को समर्पित सुंदर सराहनीय अंक।
जवाब देंहटाएंबहुत शुभकामनाएँ श्वेता जी🌹🌹
इस इन्द्रधनुषी प्रस्तुति से छिटक रही खुशबू की थिरकन अनुपम है। प्रभावी एवं सशक्त सूत्र स्वयं अपनी सार्थकता सिद्ध कर रहा है। हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई।
जवाब देंहटाएंवृक्षों के पातों की खन-खन,हवाओं की रून-झुन सुनो,
जवाब देंहटाएंमंजरियों,निबौरियों पर मंडराते भौंरों की हुम-हुम सुनो।
इंद्रधनुषी तितलियाँ छिड़क रही खुशबू और रंग देखो,
बदलते ऋतु की मदमस्त थिरकन और फागुनी धुन सुनो।
वाह! फागुनी सौंदर्य को मोहक शब्दोँ में उकेरती भूमिका के साथ सुन्दर प्रस्तुति प्रिय श्वेता। सभी रचनाकारों को बधाई और शुभकामनाएं।
प्रकृति के उपहारों की उपयोगिता समझे बगैर अंधाधुंध दोहन का परिणाम कैसा होगा विचारणीय है।सही कहा...सारगर्भित भूमिका के साथ उत्कृष्ट लिंको से सजी लाजवाब प्रस्तुति... मेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एव़ आभार श्वेता जी ! सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत पंक्तियों से प्रारंभ होता अंक... प्रेरणा, ऊर्जा, शक्ति, वेदना....सब कुछ तो समा लिया। बधाई प्रिय श्वेता।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को अंक में शामिल करने हेतु सस्नेह आभार।
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