।।प्रातः वंदन ।।
"फिर दरका पूरब —
बही धार,
लाली से
धरती का सिंगार,
रंग भरे व्योम के
ओर-छोर
पूरब जागा
दिशि रोर घोर!
यह लाली —
जैसे नई ज्वाल
नूतन लय जीवन में
जीवन की नई ताल!"
रामशरण शर्मा 'मुंशी'
अलसाई सी दुपहरी और वही शब्दों के ताना -बाना में आजकल न जाने क्यों कुछ हलचल सी होती है…✍️
न जाने क्यों…
तुम्हारी याद मेरे मन के
दरवाज़े पर
पछुआ पवन सी
दस्तक देने लगी है
तुम्हारे घर का आंगन
नींद में भी
🔶🔶
यह तो उसे न खोज पाने का
एक बहाना हो गया
अतिव्यस्त हूँ
कहने को हो गया|
ख्याल तक नहीं
आया उसका
जिससे मिले
ज़माना हो गया |
तुमने अपने मन में
झांकने की
कोशिश तो की होती
🔶🔶
विभीषिका
प्यारी चिड़िया
आकुल मन से देख रही हूँ तुम्हें
बेहद काले गाढ़े धुँए के गुबार से
बाहर निकलते हुए
हैरान, परेशान,
आकुल व्याकुल, रोते, चीखते
🔶🔶
एक पड़ताल: क्यों बढ़ रहे हैं भारत में थिंक टैंक?
जाते- जाते सच बताना ...क्या तुम्हें भी कुछ मिला..
सरस रचनाएं
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
विविध रचनाओं का उम्दा संकलन ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएं पम्मी जी ।
बहुत सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित सुन्दर संकलन । आपका बहुत बहुत आभार पम्मी जी “न जाने क्यों” को संकलन में सम्मिलित करने हेतु। सादर ।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार सहित धन्यवाद पम्मी जी मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए |
उम्दा संकलन।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज की हलचल ! मेरी रचना को भी सम्मिलित किया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार पम्मी जी ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुतआभार पम्मी जी कि मेरी रचना को अपने इस नायाब मंच पर स्थान दिया। हार्दिक धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंबधाई
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन 👍👍
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