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बुधवार, 16 मार्च 2022

3334...फाल्गुण फिर आया...

 ।। उषा स्वस्ति ।।

मदोन्मत्त फाल्गुण फिर आया,

फिर रञ्जित नभ नील!

फिर सतरंग ब्रजरज उड़ती बन

नयन कल्पनाशील..!!

प०नरेन्द्र शर्मा

रंगोत्सव पर्व सन्निकट है,चलिए सामाजिक, सांस्कृतिक धागों संग कर्मयोग के भावों को पीरोते हुए फागुनी बतासिया का आंनद ले...✍️








बहे अईसने बयार जुग-जुग 

चढ़े अईसने ख़ुमार जुग-जुग 

रहे अईसने भगवा क लहरिया पिया 
मंगा द रंग केसरिया पिया ना,

🌼🌼

शब्द संजीवनी









बहुत दिनों बाद
लौटी एक किताब..
पुस्तकालय ।

शेल्फ़ में रखी गई 
जैसे ही, हर्ष सहित 
हुआ स्वागत 

🌼🌼

कविता

वक़्त की राह ,वक़्त की चाह 
वक़्त की एहमियत बतला जाती है 
जब वक़्त कम ,लंबे रास्ते , 
मंजिले दूरतलक आकाशमय प्रतीत हो जाती

🌼🌼


ज्यों ज्यों उमर मेहरबां हो रही है 
मेरे दिल की मस्ती ,जवां हो रही है 

यूं ही जूझते उम्र सारी गुजारी 
परिवार खातिर ,करी मारामारी

🌼🌼



एक ग़ज़ल --होली में

करें जो गोपियों की चूड़ियाँ झंकार होली में ,

बिरज में खूब देतीं है मज़ा लठमार होली में   ।

अबीरों के उड़ें बादल कहीं है फ़ाग की मस्ती

कहीं गोरी रचाती सोलहो शृंगार होली में  ।

🌼🌼

।। इति शम ।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️



4 टिप्‍पणियां:

  1. वक़्त की राह ,वक़्त की चाह
    वक़्त की एहमियत बतला जाती है
    बेहतरीन..
    आने वाले पर्वों की शुभकामनाएं
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. पम्मी जी, इस चर्चा में शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद. पंडित नरेन्द्र शर्मा की पंक्तियाँ उद्धृत करने के लिए भी आभार. रंग अब छाने लगे हैं कल्पना के आकाश में.
    एक अनुरोध है . जो पंक्तियाँ यहाँ ली गई हैं, उन्हें चित्र के नीचे ठीक से डिस्प्ले करवा दें. एंटर करते ही वो नीचे चली जाएँगी .

    जवाब देंहटाएं

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