सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ दो सप्ताह की भूल-भुलक्कड़ी के बाद।
बहुत दिन हुए
किसी नेता को
पौधा रोपते नहीं देखा
कुर्सी
अब लकड़ी के अलावा
और भी कई चीज़ों से बन रही है
पकड़कर लाए गए
कबूतर भी
किसी नेता के हाथ से
आज़ाद होते नहीं दिख रहे हैं!
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
अपनी गंजी खोपड़ी हमेशा की तरह
जैसा तू है और तेरे साथ होता है
कोई लेता है संज्ञान नहीं लेता है से क्या होता है
हो रहे अपने आस पास का कूड़ा हमेशा
वही कूड़ा
जो अपनी खबर छपवाने के लिये
किसी अखबार के दरवाजे पर खड़ा होता है ।
हम आपस में क्यूँ उलझें
ना तो मुझमें ना हीं तुझ में
जिसको हो जैसी आवश्यकता
वे वहीं दौड़ कर आते |
पिता,
सालों हो गए तुम्हें
यूँ ही मुस्कुराते हुए,
कभी तो गुस्सा दिखाओ,
कभी तो तस्वीर से निकलो,
कभी तो डाँटो-फटकारो.
सोलह आना सही
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट अंक..
सादर..
सुन्दर संकलन ।मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पठनीय अंक,बहुत शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंआभार रवीन्द्र जी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन आज का |मेरी रचना को आज स्थान देने के लिए धन्यवाद |
उम्दा लिंकों से सजी लाजवाब प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.रविन्द्र जी!
सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
बेहद खूबसूरत संकलन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
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