सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में आपका स्वागत है।
थी फ़ज़ाओं में फुसफुसाहट
वो भी अब शोर बन गई,
क़ुदरत की सौगात हवा भी
कभी मौत कभी ज़ोर बन गई।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आइए पढ़ते हैं आज की चुनिंदा रचनाएँ-
मजदूर का जन्म -
केदारनाथ अग्रवाल:स्वयं शून्य
जनता रही पुकार,
सलामत
लानेवाला और
हुआ!
सुन
ले री
सरकार!
कयामत
ढानेवाला और
हुआ!!
एक
हथौड़ेवाला घर
में और
हुआ!
माँ
तुम थीं तो घर भरा-भरा सा था
सन्नाटा सा पसरा है , वीराना सा लगता है
गुजर गया कोई कारवाँ सा
यादों का कोई अफ़साना सा लगता है
धुंधलाते राह
अब भी पथराई आँखें, तकती हैं राहें,
धुंधलाऐ से पथ में, फैलाए बाहें,
धुंधला सा इक सपना, बस है अपना!
उन सपनों में, खोए से हम,
और अधूरा, स्वप्न तुम!
करें हम धान की रोपाई: सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
पहली वर्षा में बोया बिचड़ा।
जनम वह मोरी बन निकला।
हरी-हरी खेतों में लहराई।
करें हम धान की रोपाई।
खेतबा में....
साहब प्रमोट हुए
डिनर होते होते तक गोयल सा को समझ आ गया की मैं अब वाक़ई बड़ा साहब बन गया हूँ. लगातार फोन का सिलसिला
जारी था. अगर मीना पर ध्यान नहीं गया तो क्या फर्क पड़ता है? रात के बारह बजने वाले थे बिस्तर में लेट कर एक बार फिर लम्बी साँस लेकर पूरे दिन का फिर ज़ायक़ा
लिया. मज़ा आ गया. मीना की तरफ़ हाथ बढ़ाया पर उसने 'हुंह' करके हाथ वापिस फैंक दिया. फिर ट्राई मारी पर इस बार कर्कश आवाज़ में घोषणा हुई 'क्या है?' गोयल सा ने मायूसी से करवट ली और बड़बड़ाए
'यो न समझे सुसरी'!
*****
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले गुरुवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
शानदार अंक
जवाब देंहटाएंकेदारनाथ जी जमीन से जुड़े कवि हैं
शारदा जी व पुरुषोत्तम भाई का क्या कहना
आभार आपका...
सादर..
सादर..
सुंदर रचनाओं से लवरेज प्रस्तुति। बहुत बढ़िया अंक। हार्दिक बधाई सभी कलमकारों को।
जवाब देंहटाएं'कलमकार' शब्द पसंद आया.
हटाएंबढ़िया संकलन ,
जवाब देंहटाएंविविध रचनाओं से सजा सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएं'साहब प्रोमोट हुए' शामिल करने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसभी कलमकारों को बधाई.
अनेक रंगों की दमदार प्रस्तुति
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