।। प्रातःवंदन ।।
उर्मिलेश शंखधर जी के जन्मजयंती पर कोटि- कोटि नमन💐💐🙏
भीतर-बाहर सभी दिशा में
बरस रहा वह झर-झर-झर-झर,
पुलक उठाता होश जगाता
भरता अनुपम जोश निरंतर !
जैसे कोई द्वार खुला हो
आज अमी की वर्षा होती,..
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मनमोहक शब्दों से सजी रचना...
ये चाँद बरफ के टुकड़े -
बेबस अहसासों की रुत है,
मौसम है भीगी आँखों का ।
बहके - बहके जज्बातों में
मन जाने कैसे सँभलता है।
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सतत सारगर्भित लेखनी से पढिए..
वैदिक वांगमय और इतिहास बोध-२४
२ – हड़प्पा में अश्वों के जीवाश्म नहीं पाए जाने के आधार पर घोड़ों से अपरिचित होने की दलील में भी कोई ख़ास दम नहीं है। सच तो यह है कि हड़प्पा स्थलों की खुदाई और भारत के अंदरूनी हिस्सों की खुदाई से भी आर्यों के कथित आक्रमण-काल (१५०० ईसापूर्व के बाद) से भी पहले के समय के अश्व-जीवाश्म मिले हैं। ब्रयांट इस बात का उल्लेख
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शानदार रचनाओं का समागम
जवाब देंहटाएंसाधुवाद..
सादर.
शानदार प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसुंदर भूमिका और पठनीय रचनाओं का चयन, सुंदर प्रस्तुति, बहुत बहुत आभार पम्मी जी!
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति।
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जवाब देंहटाएंएक पृष्ठ है भूमिका,एक पृष्ठ निष्कर्ष।
बाक़ी पन्नों पर लिखा एक सतत संघर्ष।।
भूमिका की ये पंक्तियाँ मन को छू गई हैं। बहुत अच्छी प्रस्तुति। अपनी रचना को पाँच लिंकों में पाकर बहुत अच्छा लगता है। हृदय से आपका आभार आदरणीया पम्मी जी।
अत्यंत सारगर्भित भूमिका से आग़ाज़ करता आज का संकलन बहुत मायनों में विशेष है। किंतु यह भी उतना है सत्य है कि मानव सभ्यता की इस पांडुलिपि की भूमिका और निष्कर्ष दोनों अज्ञात हैं। सच है तो केवल यह सतत संघर्ष जिससे समूची सृष्टि का आज साक्षात्कार हो रहा है। सम्भव है कि इसका निष्कर्ष भी इसकी भूमिका में ही समाहित हो जाय! अत्यंत साधुवाद और आभार इतनी सुंदर प्रस्तुति का, पम्मीजी!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया पम्मी जी।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंशुक्रिया और आभार आपका।
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