शुक्रवारीय अंक में मैं श्वेता
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन
करती हूँ।
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क्या सचमुच एक दिन
क्षमाभाव समाप्त हो जायेगा?
प्रेम की आकांक्षा शेष रहेगी
किंतु क्रोध की एकता मिसाल बनेगी?
श्रेष्ठ होने की होड़ में
सबको समान रूप से शत्रु मानते
लोगों को देख, सोचती हूँ अक़्सर
क्या क्रूरता को आत्मा के पवित्र भावों,
धर्म ग्रंथों में उद्धरित पात्रों के साथ रखकर
ऐतिहासिक बनाकर आने वाली पढ़ियाँ
गौरवान्वित होगी?
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आइये आज की रचनाएं पढ़ते हैं-
रिश्तों के वर्गीकरण में, असंख्य विश्लेषण और व्याखाओं में सबसे पवित्र एहसास होता हैं-
रिश्ता मन का
पानी की यही ख़ासियत है
जिसमे मिला दो
उस जैसा हो जाता है
रिश्ता मन का
पानी की पारदर्शिता लिये
जहाँ नमी हो
वो पौधे सूखा नहीं करते
ऐसा माँ कहती है।
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नभ के रहस्यों को समझ सका कौन?
प्रश्नों के प्रतिउत्तर में सुनो प्रकृति का मौन
नभ तेरे हिय की जाने कौन
उमड़ घुमड़ करते ये मेघा
बूँद बन जब न बरखते हैं
स्याह वरण हो जाता तू
जब तक ये भाव नहीं झरते हैं
भाव बदली की उमड़-घुमड़
मन का उद्वेलन जाने कौन
ये अकुलाहट पहचाने कौन....
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प्रकृति प्रदत्त विषमाओं और
रचना पर सदैव
अचंभित और निःशब्द हो जाती हूँ -
मैं अपने टूटे, अनसुलझे
इन हौसलों का क्या करूँ
अब कौन सा रूप धरूँ
आख़िर उन्हें कैसे समझाऊँ
कैसे अहसास दिलाऊँ
कि उन जैसे ही मनुष्य हैं हम
थोड़ा समझो हमारा गम
हमारे मन में उतरकर
एक कोने में ठहरकर
जरा सोचो एकबार
मेरा आकार
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कुछ लोगों का स्वभाव ही होता है दूसरे की हर बात में दोष निकालना।
लोगों की परवाह करके अपनी खुशियों से समझौता करने से कोई लाभ नहीं।
असली मतलब तो जिंदगी के उतार -चढाव झेलकर ही समझ आया ...कुछ तो लोग कहेगे .....लोगों का काम है कहना ....।
और हम भी लोगो की परवाह करके अपनी जिंदगी खुलकर नहीं जीते ।हर बात में सोचते हैं लोग क्या कहेगें ।
और चलते-चलते
रख लीजिए,समझ लीजिए
बातें सारी
अपने सहूलियत के हिसाब से
जो न कह सकी क़लम मेरी
उस राज़ को इशारों में
आबाद रखिएगा।
बहुत
बड़ी है मगर है
तमन्ना है
कुछ कर दिखाने की
सब की होती है याद रखियेगा
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कल का विशेषांक.पढ़ना न भूले
लेकर आ रही विभा दी।
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मैं अपने टूटे, अनसुलझे
जवाब देंहटाएंइन हौसलों का क्या करूँ
अब कौन सा रूप धरूँ
आख़िर उन्हें कैसे समझाऊँ
कैसे अहसास दिलाऊँ
बेहतरीन..
सादर..
आज की रचनाओं को पढ़ ली
जवाब देंहटाएंउम्दा चयन
सभी रचनाएं बहुत सुन्दर हैं।
जवाब देंहटाएंआभार श्वेता जी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक..
जवाब देंहटाएंसादर..
सुंदर प्रस्तुति श्वेता । मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति श्वेता । मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंरिश्ता मन का हो या लोग का ,बिन बुलाए मेहमान का भी स्वागत है , अब वक्त ऐसा है कि लोग खुद को बेचने को तैयार हैं तो खरीदने वालों की भी कमी नहीं तो भई सलाह दी जा रही कि खरीदार रखियेगा , कब बिकना पड़ जाए क्या पता ?
जवाब देंहटाएंमहीना सावन का तो उमड़ रही कुछ बातें -
नभ तेरे हिय की जाने कौन
संवेदनाएँ समेटते नारी है मौन ।
यूँ आज समाज में क्रूरता ज्यादा दिखाई देती है असल में ये क्रूरता जितनीं है उसे बढ़ा चढ़ा कर , धर्म का मुल्लमा चढ़ा कर आपस में भेद भाव करके दिखाया ज्यादा जाता है । हर चीज़ का अंत होता है तो क्रूरता ही कब तक रहेगी ?
जैसे रात के बाद सुबह होती है वैसे ही पतन के बाद उत्थान होगा । चरित्र का नवनिर्माण होगा ।
बढ़िया प्रस्तुति
प्रिय श्वेता जी आज का वैविध्यपूर्ण,सुंदर,सामयिक अंक सजाने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन,मेरी रचना को स्थान तथा मान देने के लिए आपका बहुत शुक्रिया, शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और पठनीय सूत्र। मेरी रचना को सम्मिलित करने का बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंविविधता से भरी सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिंक्स
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट लिंकों से सजी लाजवाब हलचल प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी! सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।
क्या क्रूरता को आत्मा के पवित्र भावों,
धर्म ग्रंथों में उद्धरित पात्रों के साथ रखकर
ऐतिहासिक बनाकर आने वाली पढ़ियाँ
गौरवान्वित होगी? नहीं शर्मसार होंगी मेरे विचार से..एक दिन सबको क्षमाभाव का महत्व समझ आयेगा प्रेम के आकांक्षी बनने से पहले प्रेम बाँटना श्रेयकर समझा जायेगा... क्रूरता से उपजे विध्वंस से थक हारकर वापस क्षमा और प्रेम की थाह लेंगी पीढियां ।
विचारणीय भूमिका के साथ बेहतरीन प्रस्तुति हेतु बहुत बहुत बधाई।
सुंदर लिंक संयोजन के बीच रिश्ता मन का भी शामिल हुआ ... स्नेहिल आभार श्वेता आपका ..
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचनाओं का संगम प्रिय श्वेता। सभी रचनाएँ रोचक और भावपूर्ण हैं। सभी रचनाकारों को बधाई और शुभकामनाएं।
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