निवेदन।


फ़ॉलोअर

शनिवार, 3 जुलाई 2021

3078... एकाग्र

 

हाज़िर हूँ...! उपस्थिति दर्ज हो...

एकै साधे सब सधे, सब साधे सब जाय। रहिमन मूलहि सिंचिबो, फूलहि फले अघाय॥ -रहीम

एकाग्र

‘‘...कहने की शैली हमारी जो भी हो, बहुत गंभीर अर्थ में किसी कृतिकार या युग को ‘समझना’ उसकी वंदना करने से ज्यादा बड़ा काम है और सचमुच बड़ा लेखक, अगर उसमें कुछ भी दम है तो अभिनंदित होने से अधिक ‘समझा जाना’ पसंद करेगा। अभिनंदन की प्यास दिमागी दुकड़ेपन की द्योतक है। कहने की जरूरत नहीं कि ‘समझने’ की एक (एकमात्र नहीं) अनिवार्य प्रक्रिया सीमारेखा का निर्धारण है।’’ —विजयदेव नारायण साही

लक्ष्य साधने की सफलता अभ्यास से अधिक मन की एकाग्रता पर निर्भर करती है। —स्वामी विवेकानंद

एकाग्र

कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के चलते उत्पन्न अभूतपूर्व संकट और उससे बरती जा रही सावधानी के अंतर्गत हुए लॉकडाउन के कारण इस अंक की मुद्रित प्रति अभी नहीं आ पाई है। अतः मिश्र जी के जन्मदिवस पर हम इस अंक को सोशल मीडिया और वेबसाइट के माध्यम से हिंदी साहित्य के पाठकों, उनके स्नेही मित्रों एवं लेखकों तक पहुंचा रहे हैं।

चित्त की एकाग्रता योग की समाप्ति नहीं है। वहाँ से योग की शुरूआत है।  —विनोबा भावे

एकाग्र

ख्यात समीक्षक, आलोचक पूर्णचंद्र रथ का मानना है कि, ‘‘ओम भारती की काव्य भाषा की विशेषता है कि वे नितांत रूढ़ अर्थ परिभाषित कर चुके शब्दों के विन्यास से नए अर्थ हासिल कर लेते हैं। वह भी भावों के तनावों और क्रम के साथ।’’ इसलिए ओम भारती आज के उन असंख्य तथाकथित कवियों से अलग नजर आते हैं जो किसी बेतुके विमर्श अथवा विमर्श की आड़ में चर्चा में बने रहना चाहते हैं। सुबोध श्रीवास्तव, मलय तथा प्रहलाद अग्रवाल भी उनके व्यक्तिव से उन विशेषताओं को खोजकर सामने रखते हैं जो अब तक उनके सम्पर्क में रहे साहित्यमर्मज्ञों भी नहीं जानते होगें? 

चित्त एकाग्र हुए बिना ध्यान और समाधि कठिन है।  —मनु 

एकाग्र

यह सारल्य इस बात का प्रमाण भी है कि ऐसे लोगों की तादाद इधर बढ़ी है जो 'कविता-कविता' तो बहुत करते हैं, और अपने लेखे उन्होंने कविता को अनेक कामों में लगा भी रखा है, लेकिन कविता जिस भाषा में संभव होती है उससे उनका सम्बन्ध बहुत उथला है। वे कविता को बहुत सीमित और तात्कालिक मांग-पूर्ती के नियमों पर खरा उतरनेवाली कोई पण्य वस्तु ही समझते हैं। कविता का सामजिक सरोकार उन्हें जुमलेबाजी करने के लिए याद रहता है, उसका भाषिक सरोकार वे अक्सर भूलते हैं ! उनमें यह चिंता सिरे से ग़ायब है कि हमारे यहां संस्कृत, ( सिर्फ़ उर्दू नहीं) फारसी और अनेक बोलियों से संपन्न एक विपुल काव्य भी है, जिससे भाषा के स्तर पर एक स्मृतिजन्य सम्बन्ध बनता है।

पवित्रता के बिना एकाग्रता का कोई मूल्य नहीं होता।  —स्वामी शिवानंद

एकाग्र

तलुए आत्मा का रूप नहीं हैं पर जिस चिपचिपाहट का जिक्र कवि ने छेड़ा है, वह उस खरोंच के निकट है, जो जाने अंजाने इस जीवन संघर्ष में हमारी आत्मा पर लग जाते हैं. समझने-समझाने के लिहाज में अगर एक अधीर उदाहरण, अपमान का ही लें. संस्थाएं, सत्ताएं, कम्पनियां धीरे धीरे अपने ‘मिशन विजन स्टेटमेंट’ में ‘मूल्य / वैल्यू’ नामक हिस्से से जिस तरह ‘परस्परसम्मान’ नामक शब्द युग्म गायब होता जा रहा है, वह विचारणीय है. बाज दफे अपमान ही कोई मूल्य होता जाता है. वह अपमान भी इतना बारीक होता है, जैसा इस कविता में चप्पल पर चिपका हुआ भात.

>>>>>>><<<<<<<
पुन: भेंट होगी...
>>>>>>><<<<<<<

3 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमन
    हमेशा की तरह
    शोधपरक प्रस्तुति..
    एकाग्रता से चुनी हुई रचनाएँ
    श्रम को नमन..
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. एकाग्र का सुंदर बोध कराती हुई खूबसूरत संकलन

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।




Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...