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सोमवार, 5 जुलाई 2021

3080 ------ जूझना होगा ......

  सोमवार को हाज़िर हैं कुछ लिंकों के साथ इस पाँच लिंक के आनंद के मंच पर ...... यूँ तो इस मंच को पाँच लिंक से बाँध रखा है लेकिन जो आज़ादी लेना चाहें वो ले सकते हैं ऐसा मुझे लगा .......दरअसल कभी कभी इतनी खूबसूरत रचनाएँ , या विचारणीय   रचनाएँ  या फिर रोचक रचनाएँ मिल जातीं हैं कि मन ही नहीं होता कि किसी को मंच पर लाने से छोड़  दिया  जाए ..... तो बस कल  ऐसी बहुत  सी  रचनाएँ  मुझे मिल गयीं   और   मैंने उनको आज की  चर्चा में शामिल कर लिया है .....  पाठकों से निवेदन कि आराम से पढियेगा ...... आँखों पर अत्याचार या फिर कोई समय  की चोरी करने  की ज़रूरत नहीं :)   यूँ मैंने ये निर्मल हास्य के तहत ही लिखा है ...... जब आप लोगों  की  लिंक तक जा कर पढने के बाद प्रस्तुति पर प्रतिक्रिया आती है तो मन  आह्लादित  हो जाता है .... 

प्रारंभ  करते हैं आज  की  चर्चा .....

एक बात कहना चाहती हूँ  , मज़ाक न  बनाइएगा  वैसे थोडा हँस भी लेंगे तो मेरा क्या बिगड़ने वाला है ........ मैंने बी. ए. तक हिन्दी विषय पढ़ा है  लेकिन मुझे याद नहीं कि  सवैया छंद के इतने सारे प्रकार कभी पढ़ें होंगे  , वैसे तो अब छंद  की बातें ही भूल गए हैं ..... फिर भी छंदबद्ध रचना पढने का अपना ही आनन्द है ...... तो आज सबसे पहले  आनन्द लीजिये  अनुराधा जी के ब्लॉग पर 

सुमुखि ( मानिनी ) सवैया





शिल्प विधान 
मानिनी सवैया 23 वर्णों का छन्द है। 7 जगणों और लघु गुरु के योग से यह छन्द बनता है।११,१२ वें वर्णों पर यति अनिवार्य है।
121 121 121 12, 1 121 121 121 12
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यूँ कभी कभी सच बोलना भी आनंदित कर जाता है .......  वो बात दूसरी है कि आनन्द किसको मिल रहा ये देखने वाली बात है ...... सोच के ताने बाने में उलझी उषा किरण  जी लायी हैं एक संस्मरण अपनी यादों के झरोखे से ----

मा ब्रूयात सत्यमsप्रियम्  ------



बात तीस साल पुरानी है-

कई बाइयों के आगम व प्रस्थान के बाद आखिर एक अच्छी बाई मिली `बीना ‘ जो काम अच्छा करती थी। एक दिन आते ही बड़बड़ाने लगी-

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इस समस्या से  निपटे नहीं कि  लोग ज्ञान दे रहे कि आखिर जीवन में प्रेम क्या है ?     बड़े बड़े ज्ञानी  जो आज   तक न  बता  पाए वो हमारे साथी  ब्लॉगर  ने सहज ही बयाँ  कर दिया है ....  वैसे राहुल उपाध्याय जी उधेड़ बुन  में लगे रहते  हैं ....

प्रेम


प्रेम वही होता है

जो बर्तन की खटपट से

भाँप लेता है

कि रात की दो बज गया है

और अब तक खाना नहीं खाया है.

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सच तो यह है कि प्रेम के भी अनगिनत रूप हैं ........ वात्सल्य रस में भी प्रेम ही प्रेम है ...... इस रचना को पढ़ते हुए सूर दास जी के पद याद आ रहे थे .... .. आप भी अपने उन दिनों में पहुँचिये जब सूर , कबीर और तुलसी जी की रचनाओं से परिचय हुआ होगा ....



पकड़ ग्यो आजु माखनचोर


सबरे गोपाल बाल, भागे हैं भवन निज
हाथ मेरे चढ़ो आज, सबको प्रधान है ।।

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यहाँ हम कान्हा के प्रेम में डूबे हैं और देखिये एक  नायब प्रेम का उदाहरण ...... मन की भावनाओं से जोड़ लिया है  संदीप कुमार शर्मा  जी ने    रेत   पर एक बेटी को ......

यूं रेत पर 

बैठा था 

अकेला

कुछ विचार 

थे, 

कुछ कंकर 

उस रेत पर। 

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चलिए बहुत हो गयीं भावनात्मक रचनाएँ और उस पर अपनी बात ..... अब आपको पढ़ाते हैं ठोस धरातल पर क्या हो रहा ... कौन कितना समर्पित है अपने काम के प्रति या अपने मनोरंजन के प्रति ..... पढ़िए मीना भरद्वाज की एक लघु कथा ......

"महिला दिवस"






चार-पाँच औरतें खिलखिलाती हुई होटल में लंच हॉल  में घुसी और कोने में व्यवस्थित सीटिंग व्यवस्था पर जा बैठी । शायद "रिजर्व" की तख्ती पर ध्यान देने की फुर्सत नहीं थी किसी के पास । सभी अपने अपने लुक्स पर फिदा थी .

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इस उत्सव के बाद आपको ले चलते हैं कुछ पुराने दिनों की याद ताज़ा कराने ..... ...... जब हर घर में दूरदर्शन नहीं होता था ....... होता था तो रविवार को इंतज़ार रहता था फिल्म देखने का ..... इस उत्सव के बारे में बता रही हैं डॉ . शरद सिंह -----


पुराने अख़बार के
आख़िरी पन्ने के
निपट कोने में
छपे समाचार की भांति
रविवार का एक दिन और 
तहा कर रख दिया जाएगा
सिरे से भुलाकर
इस डिज़िटल युग में

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इस उत्सव के बाद हम आपको ले जा रहे हैं हाइकु  की दुनिया में .....  आज कल इस विधा पर काफी काम हो रहा है ..कुछ शोध भी ज़ारी हैं ......   आज के हाइकु हमारी नदियों को समर्पित हैं ..... बेहतरीन हाइकु ...... एक एक हाइकु बहुत कुछ भावों को समेटे हुए ..... जेन्नी शबनम  जी को इन हाइकु के लिए साधुवाद 

प्यारी नदियाँ



अपना प्यार   
बाँटती धुआँधार   
प्यारी नदियाँ।   

9. 
सरिता-घाट   
तन अग्नि में भस्म   
अंतिम सत्य।   

10. 
सबके छल   
नदी है समेटती   
कोई न भेद।   

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और आज  की अंतिम प्रस्तुति  ......... आज के  सभी लिंक्स का नेतृत्त्व  सा करती हुई ..... या यूँ कहा जाए कि आह्वान है ......  जब चारों ओर नैराश्य का भाव हो और भय मन पर हावी हो ..... मन अकर्मण्यता से ग्रसित हो  ....... तब ऐसा बिगुल  फूँकना भी  एक लेखक का धर्म होता है ...... 

श्वेता सिन्हा  के शब्द  जैसे कह रहे हैं कि  तुम्हारे  भीतर ही तो आग है बस  तुमको ...


जूझना होगा




जूझना होगा...
झोली फैलाये, भाग्य भरोसे
नभ ताकती अकर्मण्यताओं से...
आशा की चिरौरी में
बाँधी गयी मनौतियों के कच्चे धागे 
प्रार्थनाओं की कातर स्वर लहरियों से
अनुकम्पा बरसने की बाँझ प्रतीक्षा को 
बदलना होगा उर्वरता में
 जोतने होंगे 
 कर्मठता के खेत
 बहाने होंगे अमूल्य स्वेद।

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अंतिम लिंक के बाद कुछ कहने को बचा नहीं .......... तो आज अभी विदा लेती हूँ ....अपनी प्रतिक्रिया से अवगत करियेगा ........ 

फिर मिलते हैं  अगले सोमवार  

संगीता स्वरुप 

43 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय दीदी...
    मनभावन प्रस्तुति
    महिला दिवस मनाकर बह
    बिटुआ के पास बैठी हूँ
    थोड़ी देर में छुटकी के पास जाऊँगी
    सादर नमन..

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात!
    आदरणीय दीदी, प्रणाम,
    पूरा अंक देख लिया,वैविध्य रंगों से सजा बहुत रुचिकर संकलन। कुछ पढ़ चुकी,कुछ अभी पढ़ूंगी, आपकी रोचक शैली हमेशा आनंदित कर जाती है,आपके श्रमसाध्य कार्य को मेरा हार्दिक नमन,यही प्रार्थना है, कि आप हमेशा ऐसे ही ऊर्जावान रहें और हमें प्रेरित करती रहें।
    मेरी रचना के चयन के लिए आपका बहुत बहुत आभार।
    सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह।

    जवाब देंहटाएं
  3. सभी रचनाएँ बहुत ही खूबसूरत है और प्रस्तुति और भी खूबसूरत है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मनीषा जी ,
      प्रस्तूति पसंद आई ,इसके लिए हृदय से धन्यवाद ।

      हटाएं
  4. नोट कर लिया है. पढ़ते हैं सभी बारी -बारी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. वाणी ,
      आपको यहाँ देख कर अच्छा लगा ।
      हार्दिक धन्यवाद ।

      हटाएं
  5. सदैव की तरह लाजवाब संकलन आ.संगीता स्वरूप जी!
    आपके द्वारा रोचक अन्दाज में की गई टिप्पणियाँ संकलन को और अधिक खूबसूरती प्रदान करती है । आज के संकलन में मेरे सृजन को शामिल करने के लिए सादर आभार ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
    2. अंदाज़ पसंद करने के लिए हार्दिक आभार मीना जी ।

      हटाएं
  6. बहुत फुर्सत से संवारी गईप्रस्तुति, हर रचना की बात शब्दों द्वारा अलंकृत होने से और भी खास बन जाती है। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ये अलंकरण पसंद आया , प्रसन्नता हुई ।
      हृदय तल से आभार पम्मी ।

      हटाएं
  7. जी दी,
    प्रणाम।
    आज के विशेष कैनवास में आपके द्वारा उकेरी गयी कलाकृतियां सभी बेहद सराहनीय है।
    आपकी तूलिका ने हर कलाकृति को अनूठे अंदाज़ में रेखांकित किया है जिससे उसकी सुंदरता द्विगुणित लग रही।
    अनुराधा जी के द्वारा रचित सुमुखि सवैया साहित्य की अनमोल धरोहर है,ऊषा जी की लेखनी संस्मरण इतनी जीवंतता से गढ़ती है कि पाठक बँधा रह जाता है रोचक पढ़कर मुस्कान आ गयी,राहुर उपाध्याय सर ने.प्रेम की परिभाषा में नयी पंक्तियाँ जोड़ी हैं,जिज्ञासा जी की कान्हा के बाल रूप को चित्रित करती प्रवाहमयी रचना बहुत मनमोहक है,संदीप सर की गहरी रचनाएँ प्रकृति और जीवन के साथ अद्भुत तारतम्य स्थापित करते हैं बिटिया के लिए पिता के भावों को महसूस किया जा सकता है,मीना दी ने महिला दिवस पर दो पीढ़ी के महीन भावों को दक्षता से बुना है, शरद जी का रविवारीय उत्सव सार्थक संदेश प्रेषित कर रहा जिसे आज की पीढ़ी को समझना अति आवश्यक है और जेन्नी शबनम जी द्वारा कम शब्दों में संपूर्ण अभिव्यक्ति की कला हायकु का संदेश आत्मसात करने योग्य है।
    इतनी गूढ़,विविधतापूर्ण सिद्धहस्त रचनाओं से सुसज्जित अंक में मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत आभारी हूँ दी।

    सप्रेम
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय श्वेता ,
      तुम्हारे शब्द इस कैनवास के चित्रों को आउट लाइन प्रदान कर रहे 😊😊😊 । सब रचनाओं को पढ़ कर उन पर अपने विचार से अवगत कराना प्रशंसनीय है ।
      मनोबल बढ़ गया । जुझारूपन सीखना है तो तुम्हारी कविता को आत्मसात करना ही होगा ।
      स्नेह ।

      हटाएं
  8. बहुत बहुत आभारी हूं आपका संगीता जी...। प्रस्तुतिकरण मन को गहरे छू गया। मन से रचनाओं के लिंक यहां तक लेकर आईं हैं आप। मेरी रचना को सम्मान देने के लिए बहुत बहुत आभार आपका। सभी ब्लॉगर ऐसे हैं जिन्हें लेखन में महारत हासिल है लेकिन विषय शब्दावली सभी की अपनी और अनूठी है। इस मंच पर अपनी रचना को पाना एक गहरा अहसास है...। आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. संदीप जी , इतने सुंदर शब्दों में आपने प्रतिक्रिया दी है मन बाग बाग हो गया । आभार

      हटाएं
  9. बेहतरीन लिंक्स, सुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया।

    जवाब देंहटाएं
  10. आदरणीय दीदी
    सादर नमन
    एक ही रचना पढ़ी हूँ...

    आशा की चिरौरी में
    बाँधी गयी मनौतियों के कच्चे धागे
    बाकी..कल का होमवर्क
    आभार..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. भले ही एक रचना पढ़ी हो , लेकिन असल पढ़ लिया । शुक्रिया ।

      हटाएं
  11. अत्यंत सुंदर, अत्यंत रोचक संयोजन... आपके श्रम को नमन संगीता जी 🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय शरद जी,
      आपको यहाँ देख कर अच्छा लग रहा है ।
      आभार

      हटाएं
  12. प्रिय संगीता स्वरूप जी आपका बहुत-बहुत आभार एवं धन्यवाद कि आपने मेरी कविता "पांच लिंकों का आनंद" में शामिल की है 🌹🙏🌹

    जवाब देंहटाएं
  13. उत्कृष्ट लिंकों से सजी लाजवाब हलचल प्रस्तुति...
    हर रचना से पहले रचना के विषय में आपकी भावाभिव्यक्ति रचना को और भी पठनीय एवं सार्थक बना रही है...।कल समय की चोरी करने में सफल न हो पाई झूठ नहीं कहूँगी कि आपका सुझाव मान लिया। बस व्यस्तता ज्यादा थी ..।और आप लिंक भी ऐसे लाते हैं कि किसी को पढ़े वगैर रहा नहीं जाता....।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुधा जी ,
      आपसे संवाद करके मन प्रसन्न हो जाता है ।
      आपको लिंक्स पदण्ड आये हैं यह बात मेटे मन को आश्वस्त कर रही है । इतनी आत्मीय प्रतिक्रिया के लिए हृदय तल से आभार ।

      हटाएं
  14. आदरणीया दी,सबसे पहले देरी से आने के लिए क्षमा चाहती हूँ। आपकी प्रस्तुति मिस करना नहीं चाहती परन्तु वक़्त आभाव के कारण हो गया। दिलचस्प अंदाज में रोचक रचनाओं का संकलन करती है आप। आपके इस श्रमसाध्य कार्य के लिए साधुवाद,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें एवं नमन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय कामिनी ,
      मेरी प्रस्तुति तुमको रोचक और दिलचस्प लगती है , यही पुरस्कार है मेरे लिए । तहेदिल से शुक्रिया ।

      हटाएं
    2. संगीता जी विभिन्न रंगों से सजी यह अद्भुत प्रस्तुति है …सभी की रचना पढ़ आई हूँ और यथा संभव प्रतिक्रिया देने का प्रयास किया है …वाकई आनन्ददायक , रोचक व प्रेरक लिंक है…आपको व सभी रचानाकारों को बधाई…मेरी रचना को भी शामिल करने के लिए हृदय से आभार …आपके परिश्रम को नमन है 😊🙏

      हटाएं
  15. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  16. Profusely Thank You,Sangeeta
    For scooping out thought provoking creations of talented writers focusing on diversities of Life with your excellent introductory comments.

    Enjoyed interestingly arranged TOUR inviting attention on some essentialities like...
    - Discipline
    - Side effects of speaking truth
    - Sound of Love
    - Preference for being Self
    Centric.
    - Last but most effective
    Approach called Change
    Mechanism (for betterment)
    With Willingness
    And Strong Will Power.

    जवाब देंहटाएं
  17. शुक्रिया स्वरूप साहब ,
    आपके द्वारा इतनी गंभीर टिप्पणी पा कर मन आल्हादित है । हर रचना का निचोड़ प्रस्तुत कर दिया है । मुझे सच ही बहुत संतुष्टि है कि आपने मेरे काम को सराहा । 🙏🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  18. बढ़िया जुझारू लिंक हैं सब. कुछ पढ़ आये हैं. कुछ पढेंगे धीरे धीरे.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. 😄😄 तुम जुझारू रहना पढ़ने के लिए । शुक्रिया है जी ।

      हटाएं
  19. प्रिय दीदी , सबसे पहले इतनी देर से प्रस्तुति में उपस्थित होने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ | मुझे खुद ही अच्छा नहीं लगता कि मैं सबसे बाद में टिप्पणी करूं और कोई मेरी प्रतिक्रिया पढ़े भी ना |खैर आगे से कोशिश रहेगी कि इतनी देर ना हो | कल मैंने कुछ रचनाओं पर प्रतिक्रिया दे दी थी और बहुधा सभी पर लिख कर ही यहाँ लिखती हूँ | लेकिन पिछले कुछ दिन बहुत व्यस्तता भरे रहे |लेकिन आपकी भावपूर्ण प्रस्तुति पर ना लिखना बेइंसाफी होगी | बहुत ही श्रमसाध्य संकलन तैयार किया है आपने | भावपूर्ण हलकी फुलकी भूमिका के साथ शामिल सभी रचनाएँ अपनी मिसाल आप हैं जिनमें जीवन के कई रंग व्याप्त हैं | इनकी विविधता में ही भावनाओं का असीम सौंदर्य निहित है |मुझे छंद रस अलंकार का ज्ञान नहीं पर छंदों के ज्ञाताओं की रचनाओं का आनंद ललना एक अभूतपूर्व अनुभव है |अनुराधा जी ने छंदों से अपनी रचनाओं को सजाया और उसक लिए बहुत मेहनत की है | श्रृंगार और वीर रस में छंद विधान में बंधा उनका काव्य बहुत मनमोहक बन पड़ा है | उषा जी की घरेलू बाई के आगे सत्य-व्यक्तव्य की कथा की कम रोचक और चुटीली नहीं | राहुल जी की प्रेम कथा सरस ,सहज प्रेम की अभिव्यक्ति है तो जिज्ञासा जी ने सूरदास जी की शैली में सुंदर बाल लीला प्रस्तुत की है |
    अवचेतन मन में बिटिया की छवि को बसाए , हर जगह ढूंढते पिता ने बेजान कंकरों में भी बिटिया को ढूंढ लिया और वहीँ एक जीवंत कल्पना कर डाली | सराहना से परे है ये भावपूर्ण अभिव्यक्ति |कथित अभिजात्य वर्ग के ' महिला दिवस ' मनाने के ढंग पर सार्थक व्यंग है प्रिय मीना जी की रचना |तो पिछली पीढ़ी के चित्रहार और रंगोली से सजे , उत्सव सरीखे सुहाने रविवार को कितनी भावुकता से याद किया है शरद जी ने |प्यारी नदियों पर पहली बार जेन्नी जी के माध्यम से , इतने सुंदर हाइकु पढ़े हैं शायद |और प्रिय श्वेता ई लेखनी एक अंतराल के बाद जगी है और वो भी आशा और कर्मठता का सुंदर सन्देश देती हुई | अपनी विशेष शैली में सजी रचना में श्वेता ने स्वेदरस से सराबोर कर्मशीलता का जो आह्वान किया है , वह बहुत प्रभावी और सराहनीय है | आपको इस सुंदर अंक के लिए बधाईयाँ और शुभकामनाएं|सभी रचनाकारों का हार्दिक अभिनन्दन | सभी को पढ़कर बहुत अच्छा लगा \ सभी की लेखनी यूँ ही चलती रहे |

    जवाब देंहटाएं
  20. प्रिय रेणु ,
    मैं भी हमेशा तुम्हारी प्रतिक्रिया का इंतज़ार करती हूँ क्यों कि मुझे मालूम है कि हर लिंक पर जा कर तुम पढ़ कर ही प्रतिक्रिया दोगी । अनुराधा जी के काव्य के बारे में तुमने सही कहा । अहिल्या पढ़ा है मैंने ।
    सब रचनाकारों की रचनाओं पर तुम्हारी विशेष प्रतिक्रिया सभी रचनाकारों का मनोबल अवश्य बढ़ाती होगी ।
    तुम्हारी टिप्पणी से मेरी प्रस्तुति को भी संपूर्णता मिल जाती है ।
    सस्नेह

    जवाब देंहटाएं

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