शुक्रवारीय अंक में आपसभी का
स्नेहिल अभिवादन।
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गलत होकर ख़ुद को सही साबित करना उतना मुश्किल नहीं होता जितना सही होकर ख़ुद को सही साबित करना।
संकेत की भाषा पढ़ने के लिए दृष्टिभ्रम से बाहर निकलना होगा वरना हम जो देखना चाहते हैं वही देखने के प्रयास में उलझे रह जायेंगे....।
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आइये चलते हैं आज की रचनाओं के संसार में-
मन किसके अधीन होता है परिस्थितियों के या सहूलियत के?
क्या सचमुच पलक झपकते ही बदल जाता है मन का मौसम मन का मौसम
ज्यादा देर तक
नहीं रहता एक सा
बदलता रहता है
पल पल , छिन छिन
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एक सारगर्भित लघुकथा
भुक्तभोगी ही समझ सकता है समय का शोक, परिस्थितियाँ भूलने नहीं देती
दरवाजे पर खड़े व्यक्ति को देखकर तेजी से दरवाजा खोलते तेज आवाज में रो पड़ी गिन्नी । गिन्नी को पकड़कर घर के अन्दर आते हुए गिन्नी की माँ पर नज़र पड़ी जो दरवाजे के करीब आ चुकी थीं और पुनः -पुनः पूछ रही थीं, "कौन आया है गिन्नी, तुम क्यों रो रही हो?"
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बंदे ऐसे भी हैं जो जिंदा को मुर्दा कर दें
अमूमन तो ऐसे ही मिलते हैं
न यह कहूँगा के वो है तो है वज़ूद मेरा
न यह कहूँगा के बाबत मेरी वो क्या कर दे
ख़ुदा की हद है के रच देगा कोई कोह-ए-संग
इधर है इंसाँ जो पत्थर भी देवता कर दे
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किसी की ख़ातिर
अर्पण जैसा
कौन हो सका बता न
सोचा लम्हा एक चुरा लूँ उन हसीन खाब्बों के पल से l
फिसल गए वो हुनर ना आया मुट्ठी को इस पल में ll
वजूद मेरे किरदार का भी कुछ उस दर्पण जैसा l
अक्स निहार छोड़ गए जिसे हर कोई अकेला ll
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और चलते-चलते
एक ऐसे अनछुए विषय की बात करते हैं जिसे सभ्य समाज गालियों की तरह इस्तेमाल करता है
पढ़िये दार्शनिकता का पुट लिए प्रेरणादायक उद्धरणों के साथ
आत्मा को झकझोरती मचलते तापमानों में अब मैं पूरी तरह से संन्यासी बन चुका हूँ। क्योंकि यदि विकर्षण भी हो, तो वह आकर्षण का ही रूप है, बस दिशा विपरीत है। नर्तकी या वेश्या से बचना भी पड़े तो कहीं अचेतन मन के किसी कोने में छिपा हुआ यह वेश्या का आकर्षण ही है; जिसका हमें डर रहता है। दरअसल वेश्याओं से कोई नहीं डरता, वरन् अपने भीतर छिपे हुए वेश्याओं के प्रति आकर्षण से डरता है।"
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आज के लिए इतना ही
कल का अंक लेकर आ रही हैं
प्रिय विभा दी।
गलत होकर ख़ुद को सही साबित करना उतना मुश्किल नहीं होता जितना सही होकर ख़ुद को सही साबित करना।
जवाब देंहटाएंसुंदर आगाज...
सादर..
छुटकी...
जवाब देंहटाएंसुप्रभातम् वाले नमन संग आभार आपका .. आज "पाँच लिंकों का आनन्द" के मंच पर अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति के अंतर्गत मेरी बतकही/विचार को भी स्थान देने के लिए ...
जवाब देंहटाएंआज की प्रस्तुति की भूमिका की चंद पंक्तियाँ तो सच्ची-मुच्ची "संकेतात्मक संदेश" की पोटली हैं और संकलन की सारी रचनाएं भी इंद्रधनुषी रंगों की तरह कई अलग-अलग भावों को स्पर्श करती हुई हैं .. हर रचना के पहले मुहर की तरह आपकी लगायी गई अपनी संक्षिप्त समीक्षा भी पाठकों के लिए प्रेरणा की तरह साबित होती है .. बस यूँ ही ...
सुन्दर सन्देश से युक्त आजकी प्रस्तुति।👌👌
जवाब देंहटाएंआज की प्रस्तुति में सबसे मुख्य आकर्षण ---- मचलते तापमानों में .... है । धन्यवाद इस लेख तक पँहुचाने के लिए । दूसरा मुख्य लिंक प्रतिशोध लघु कथा है ।
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति ,
और सच ही सही होकर सही साबित करना कठिन होता है अक्सर । 👌👌👌👌👌
मचलते तापमानों मे
जवाब देंहटाएंप्रतिशोध..
बढ़िया रचना पढ़वाई..
आभार दी..
नमन..
वाकई मन का मौसम परिवर्तनशील होता है इतना कि उसकी गति का मापन बहुत मुश्किल है| बहुत बढिया|
जवाब देंहटाएंआदरणीया मैम, अत्यंत सुंदर और बहुत ही अलग सी भावपूर्ण प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआज इतने दिनों बाद आ कर बहुत अच्छा लग रहा है। इतने दिन न आ पाना बहुत खल रहा था और आप सब की और आप की प्रस्तुति की कमी भी महसूस हो रही थी।
हर एक रचना बहुत सुंदर है। मन का मौसम ने मन को छू लिया, प्रतिशोध एक अत्यंत सशक्त लघुकथा है जो बहुत ही महत्वपूर्ण सन्देश देती है। इंसां जो पत्थर को भी देवता कर दे बहुत ही सुंदर शायरी है।मचलते तापमानों में सच में ही बड़े विविध तापमान देखने को मिले और उसकी आध्यात्मिकता और सामाजिक महत्व ने मन को आंखें खोल दीं। हृदय से आभार इस सुंदर प्रस्तुति के लिए व आप सबों को प्रणाम।
बहुत ही उन्दा संकलन श्वेता जी,बेहतरीन प्रस्तुति,सभी रचनाकारों हार्दिक शुभकामनायें एवं नमन
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंरोचक तथा पठनीय संकलन,प्रिय श्वेता जी आपके श्रमसाध्य कार्य के लिए मेरा आपको सादर नमन और हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंगलत होकर ख़ुद को सही साबित करना उतना मुश्किल नहीं होता जितना सही होकर ख़ुद को सही साबित करना।
जवाब देंहटाएंसटीक एवं सारगर्भित भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुतीकरण उम्दा लिंक संकलन।
सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकमनाएं।