निवेदन।


फ़ॉलोअर

रविवार, 26 अप्रैल 2020

1745....लॉकडाउन में

जय मां हाटेशवरी.....
कुछ यक्ष प्रश्न जो पूछे जाने चाहिए
प्रश्न - घर मे बंद कौन रहे? 
उत्तर - जनता
प्रश्न - सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कौन करे? 
उत्तर - जनता
प्रश्न - दान कौन करे? 
उत्तर - जनता
प्रश्न - मूक पशु-पक्षियों को दाना-पानी कौन दे? 
उत्तर - जनता
प्रश्न - आसपास के गरीबों का ध्यान कौन रखे? 
उत्तर - जनता
प्रश्न - PM केअर फंड में कौन पैसा डोनेट करे? 
उत्तर - जनता
प्रश्न - दुकान के नौकर का वेतन कौन न रोके? 
उत्तर - जनता
प्रश्न - कामवाली और माली का पैसा कौन न काटे? 
उत्तर - जनता
प्रश्न - किराएदारों से किराया कौन न ले? 
उत्तर - जनता
प्रश्न - समय पर EMI कौन चुकाए? 
उत्तर - जनता
.
.
.

प्रश्न - परंतु कोरोना से जंग कौन लड़ रहा है? 
उत्तर - देश के नेता और सरकार

अब पेश है..... आज के लिये मेरी पसंद.....


लघुकथा : सैनिटाइज़
गगन व्यथित मन से बोल उठा ,"वसुधा ! तुम्हारी सहायता करने कोई और नहीं आएगा । तुम स्वावलम्बी बन अपना उपचार स्वयं करो । कभी करवट ले कर तो कभी गर्मी बढाकर सेंक लें कर । कभी छालों को ठण्डा करने के लिये शीतलहर भी बहाना होगा । देखना सब बेचैन हो कर तुमको कोसेंगे भी ,परन्तु तुम बिलकुल भी विचलित मत होना । "

वसुधा भी विचारमग्न हो कह पड़ी ,"हाँ ! मुझे प्रकृति को भी तो खुद को सैनिटाइज करना चाहिए  ... फिर कुछ तो  बैक्टीरिया छटपटाहट में मेरी भी पीड़ा समझ कर सम्हल
जाएंगे ।"

बीती रात की बारिश और तुम
वर्जित है किस राग में और किस पहर में गाना है कोई राग...ऐसा ही तो है इच्छाओं का संसार. कि बस एक जरा सी, बहुत मामूली सी बात से सुख तर-ब-तर कर देता है और
उससे भी बेहद मामूली, बेहद जरा सी बात पे हजारों टुकड़ों में बंटकर चकनाचूर भी हो जाता है मन.
राग साधना आसान नहीं...
चिड़ियों की आवाज इन दिनों बड़ा भरोसा बनी हुई हैं. क्या तुम्हारे शहर की चिड़ियाँ भी ऐसा ही मीठा गाती हैं? तुम भागते फिरते थे हमेशा कि तुम्हारे जीवन में स्मृतियों के लिए समय नहीं था. इन दिनों कैसे टालते होगे तुम स्मृतियों को वो आती तो होंगी ही, तुम 'अभी बिजी हूँ बाद में आना' कहकर अब जा तो न पाते होगे


चूल्हा
लेकिन चूल्हे पर ही जितने लाजवाब
व्यंजन उन्होंने पका कर खिलाये
संसार का कोई भी मास्टर शेफ
उनकी बराबरी नहीं कर सकता
माँ तो साक्षात अन्नपूर्णा का रूप थीं
कोई उनसे उनका यह तमगा
नहीं छीन सकता !

 लॉकडाउन में
अच्छा है, घरवालों के साथ रहते हैं,
बहुत कुछ कहते,बहुत कुछ सुनते हैं,
पर याद आता है,पार्टियों के लिए सजना
और घर की कॉल बेल का अचानक से बजना.

कोरोना की  देन
अपव्यय छूटा ,मितव्ययी हुए ,हम स्वालम्बी बन पाये
ये सच है पर हम बदल गए ,जीवन में कितने सुख आये
कुछ परेशानिया आयी मगर ,हो गए आत्मनिर्भर है हम
निज सेहत के प्रति जागरूक ,अब फुर्तीले तत्पर है हम

दोहे
नैन सखा है हृदय की , समझे उसकी पीर।
हृदय कराहे दर्द से , गिरे नैन से नीर।।
धोखा खाता नेत्र भी , कहते संत सुजान।
सोने का मृग देखकर , कर न सके पहचान।।

हमने संत समझा........
आंसुओं की नदी में भींगते डूबते ,
उतराते कराहते लोग हासिये पर ,
विकृत हो जाएँगी परिभाषाएं ग्रंथों की ,
राजतन्त्र हो जायेगा जिसे लोकतंत्र समझा -

फिक्र
एहसास भी नहीं होता
कोई कष्ट नहीं होता |
जब जलने लगती चिता
आत्मा हो जाती स्वतंत्र
फिर चिंता फिक्र जैसे शब्द
लगने लगते निरर्थक |
तभी मैं फिक्र नहीं पालती
मैं हूँ संतुष्ट उतने में ही


रश्मि भारद्वाज का आलेख 'स्मार्टफोन ने बनायी एक स्मार्ट पीढ़ी'
जीवन आगे बढ़ने, नयी ऊंचाइयों को छूने का नाम है पर नयी पीढ़ी जिस तरह से अपने ही अवसाद और असुरक्षा के बीच घिरी जा रही है, उसे देखते हुए कभी कभी यही महसूस होता है कि....
वह काले रिसीवर और लंबे तारों वाला पुराना 'आलसी' लैंडलाइन फोन ही ठीक था, जो जोड़ता चाहे कितना भी हो, कम से कम तोड़ता तो नहीं था। जिसकी ट्रिन-ट्रिन कर्कश भले ही हो, मन में प्रेम, प्रतीक्षा और उम्मीद जगाती थी, अविश्वास नहीं। आज की पीढ़ी के पास सब कुछ उपलब्ध है लेकिन प्रतीक्षा का वह सुख उससे छिन गया है जो दो ह्रदयों को जोड़ता था और हमेशा के लिए एक अटूट बंधन में बांध जाता था।

धन्यवाद।

10 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर संकलन. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन प्रस्तुति
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. भूमिका से जनता में से अधिक मतदाता सहमत होंगे
    कहने का जज़्बा सराहनीय है

    उम्दा प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  4. सच सबसे भारी मार जनता पर ही पड़ती है
    बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  5. अचरज वाली बात कहाँ "देश के नेता और सरकार" के द्वारा किसी बात का श्रेय लेने में, सरकार नामक तन्त्र ही तो बनी ही है जनता के द्वारा और जनता के करों से। सरकार अगर अपने बारे में कह रही है, मतलब स्वाभाविक है कि हम जनता भी साथ हैं। अलग कहाँ ?
    ठीक वैसे ही जैसे हमारे पुरुष-प्रधान समाज में लाख बच्चे ले साथ पिता का नाम जुड़ता हो, पर संतति तो वो होता जननी का ही है।
    अपने -अपने मानने की बात है ... शायद ..

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आज की ! मेरी रचना को आज के अंक में सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कुलदीप भाई ! सादर वन्दे ! आज की प्रस्तावना में आपने बहुत ही ज्वलंत प्रश्नों को उठाया है ! 'जनता' उन कर्मियों की श्रेणी में आती है जो बेक स्टेज पर काम करते हैं ! कोई भी फिल्म सफल होती है तो नाम उसमें काम करने वाले अभिनेता और अभिनेत्री का ही होता है ! और सारा श्रेय भी वे ही ले जाते हैं ! यहाँ भी जनता अपना दम लगा कर लॉक डाउन को सफल बना रही है लेकिन श्रेय सरकार, प्रशासन, पुलिस और पैरा मेडिकल स्टाफ को मिल रहा है क्योंकि कोरोना से जंग लड़ने के लिए वे मोर्चे पर तैनात हैं अपने घरों से बाहर और जनता सुकून से सुरक्षित है अपने घरों के अन्दर !

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।




Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...