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बुधवार, 8 अप्रैल 2020

1727..कट जाएंगे बेशक ये भी, बेहद मुश्किल वाले दिन..

।। प्रातः वंदन ।।
दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे 
उदासियों में भी चेहरा खिला खिला ही लगे 
- बशीर बद्र 
करोना पर जिंदगी की जीत का संघर्ष हर घर से ही जारी है..इसी संकल्प के साथ आज के 
लिंकों में शामिल रचनाकारों के नाम क्रमानुसार पढ़ें..✍

आ० आकिब जावेद जी
आ० अनिता जी
आ० शशि गुप्ता जी
आ० विश्वमोहन जी
आ० डॉ वर्षा सिंह जी
⚜️⚜️⚜️



ग़ज़ल में ग़मों के तराने लिखे
कई  दर्द  अपने  पुराने  लिखे
मुझे प्यार  में तूने धोखा दिया
हरिक  ज़ख़्म तेरे पुराने लिखे

⚜️⚜️⚜️



शब्द खो गए इस पीड़ा में, 
ठहरे हैं जन जो डूबे थे  
जग की मनमोहक क्रीड़ा में  !

थमी जिंदगी सी लगती है 
दुःख है, दुःख का कारण भी है 
जूझ रहा है विश्व समूचा 
करोना का निवारण भी है

⚜️⚜️⚜️

    *******************
My photo
     स्वास्थ्य संबंधित कारणों से भोजन बनाने की इच्छा नहीं हुई। बत्ती बुझा मैं कमरे में लेटा हुआ था कि तभी नौ बजते ही घंटा-घड़ियाल, शंखनाद, थाली और पटाख़ों की आवाज़ आने लगी। जिसे सुन मैंने जैसे ही कमरे की खिड़की खोली तो देखा कि दीपावली की तरह ही आसपास के घरों के बारजे पर असंख्य दीपक झिलमिला रहे थे। 
⚜️⚜️⚜️



रामचरितमानस के बालकांड के छठे विश्राम में महाकवि तुलसी ने राम अवतार की पृष्ट-भूमि को गढ़ा  है। भगवान शिव माँ पार्वती को राम कथा सुना रहे हैं। पृथ्वी पर घोर अनाचार फैला है। धरती माता इन पाप कर्मों के बोझ  से पीड़ित हैं। वह मन ही मन विलाप कर रही हैं। समुद्र और पहाड़ों का बोझ भी इस पाप की गठरी के समक्ष कुछ नहीं है। समाज का आचरण कलूषता की समस्त सीमाओं को लाँघ गया है। जब मनुष्य किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्टता के जिन सोपानों के सहारे उसके वैभव की पराकाष्ठा  पर पहुँचकर वांछित चरित्र की मर्यादा को लाँघता है, तो वह फिर उन्ही सोपानों को पद मर्दित करता पतन की गहराईयों  में नीचे उतरना शुरू कर देता है। इस पद मर्दन में वे तमाम मूल्य, वे तमाम आदर्श, वे तमाम प्रतिमान 
⚜️⚜️⚜️



तालाबंदी के आलम में, लगते भोले-भाले दिन।

ग़ैरज़रूरी आपाधापी, कहीं दुबक कर बैठ गई,
लम्हा-लम्हा कछुए जैसे सरके ढीले-ढाले दिन।

बस्ते एक तरफ रख्खे हैं, ऑनस्क्रीन पढ़ाई है,
कुछ भी कह लो लेकिन ये हैं बच्चों के रखवाले दिन

⚜️⚜️⚜️
हम-क़दम का नया विषय
यहाँ देखिए

⚜️⚜️⚜️

।। इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ‘ तृप्ति ’..✍

10 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह! बहुत सुंदर संकलन, विशेषकर गज़लों के गजरे से गमकती प्रस्तुति। बधाई और आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. इस वैश्विक महामारी से जब विकसित राष्ट्र सहमे हुये हैं, तो भारत जैसे विकासशील देश में लॉकडाउन को आगे बढ़ाने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं है। उधर, जमाती अब भी छुपे हुये हैं। उन्हें दिल्ली से मिल रही सूचनाओं अथवा स्थानीय लोगों की शिकायत पर ढ़ूंढा जा रहा है। यह एक बड़ा सिरदर्द है प्रशासन के लिए और वैमनस्यता भी बढ़ रही है।
    निम्न -मध्यवर्गीय लोगों का बटुआ खाली हो गया है। सरकार इस पर गंभीरता से विचार करे। वैसे भी कुछ महीनों के लिए, सम्भवतः वर्ष भर से भी अधिक उद्योग -धंधे प्रभावित रहेंगे।
    सशक्त भूमिका , प्रस्तुति और श्रेष्ठ रचनाओं के मध्य मेरे लेख को स्थान देने के लिए आपका हृदय से अत्यंत आभार प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  4. व्वाहहहहह......
    बेहतरीन..
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  5. दुआ है सभी पौधे सदा हरा रहे

    सराहनीय प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति ।
    हनुमान जयंती की सबको शुभकामनाए

    जवाब देंहटाएं
  7. हनुमान जंयती के शुभ पर्व की अनेकानेक मंगलकामनाएं
    सभी जन सुरक्षित व स्वस्थ रहें

    जवाब देंहटाएं
  8. सुंदर भूमिका के साथ सुंदर हलचल ! आभार मुझे भी शामिल करने हेतु !

    जवाब देंहटाएं
  9. आज के इस संयोजन की तुलना ऐसे गुलदस्ते से की जा सकती है, जिसमें भांति-भांति की सुगंधों से युक्त अनेक फूल सजे हों 🌹💐🌺🌻🌷🌸
    बहुत सुंदर संयोजन 🙏👌


    मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏🌺🙏

    जवाब देंहटाएं

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