क्या पहचान लेना इतना आसान है
हर पल तो सब बदल जाता है
बदल जाती है इच्छाएं परिस्थति बदलते
तब तक साथ कौन निभाता है
जब तक स्वार्थ नहीं सधता है
बस सोच में अटकता है
कुछ अच्छा करना है
भरोसा रखो, भीड़ भी होगी इक दिन तुम्हारे नक़्शे-कदम पर
चिलचिलाती धूप से मत तिलमिलाओ, सफर का मज़ा लो
अगर ठंडी रात में तारों की शीतल छाँव में एक गहरी निश्चिन्त नींद चाहते हो
बस धैर्य मत खोना, विचलित मत होना
तेरी हँसी
छोटी सी दुनिया
कितने सारे लोग
रज तम सत का
विभिन्न संयोग।
सहूलियत के हिसाब से
बाँट लिया,
कितने नामों से
पुकार लिया,
लोगों को दीवाना बनाने की
उसकी कूबत का हर समय कायल रहा है।
आज के आउटलुक, शुक्रवार जैसे
लोकप्रिय मासिक, पाक्षिक हर अंक में
शब्दों का सफर
शब्दों को
रटते हुए
बुढ़ाती रहीं
पीढ़ियां
शब्दों को
अर्थ से जोड़ कर
बरतना
उन्हें
तब भी न आया
अपनी भाषा की
लेकिन छोटे भूगोल वाली
भाषाओं की सीमा और
सहूलियत ये होती है कि
इसमें हम बिना विशेषज्ञता के भी
अपने अनुभव शेयर करते हैं।
इसी सहूलियत का लाभ उठाते हुए
><
शुभ प्रभात दीदी..
जवाब देंहटाएंसादर नमन..
क्या पहचान लेना इतना आसान है
हर पल तो सब बदल जाता है
सादर..
लाजवाब प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंजी दी आपकी ऐसी अनूठी प्रस्तुति सच में क़माल है।
जवाब देंहटाएंसभी सूत्र बहुत अच्छे है प्रभावशाली प्रस्तुति दी।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति दी जी
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति हर बार की तरह अलहदा अप्रतिम।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया दी हमेशा की तरह।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसब में से नहीं हो, तुम कुछ अलग हो
जवाब देंहटाएंतुम निश्छल हो, तुम समर्पण हो
तुम में हज़ारो रंग है होली के
तुम में प्रकाश है दिवाली का
यही है आज के अंक का सार। आपने बहुत उम्दा अंक पढ़वाये आदरणीय दीदी। सबसे आग्रह है, कविता पोस्टर लिंक को बिल्कुल ना छोड़े , जुर् पढ़ें । हार्दिक आभार । 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
शानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन..
जवाब देंहटाएंलाजवाब व शानदार संकलन दीदी ।
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