जल,धरा,नभ, अंतरिक्ष में छाए हम,
थोड़ा और फैलाएँ सोच का दायरा,
ख़ुद से पूछें अब कहाँ पहुँच गये हम ?
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शुभ प्रभात....
जवाब देंहटाएंविविधताओं से परिपूर्ण प्रस्तुति..
आभार...
सादर..
अति सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अंक।
जवाब देंहटाएंसंग्रहणीय प्रस्तुति, मेरी पोस्ट को स्थान् देने हेतु हार्दिक धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंअति सुंदर संकलन सह्रदय धन्यवाद मेरी रचना को एक कोना देने के लिए
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंविविधरंगी विषयों पर लिखी रचनाओं की खबर देता सुंदर संग्रह, आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर
उम्दा लिंक संकलन शानदार प्रस्तुति करण...
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवीन्द्र जी -- सार्थक और मर्मिक प्रश्न करती भावपूर्ण भूमिका के साथ बेहतरीन लिकं संयोजन ! कथित सभ्य समाज के बीच अत्यंत असभ्य और कुत्सित व्यवहार से यही प्रश्न मन को बेचैनी से भर देता है कि चाँद सूरज और मंगल जैसे ग्रहों को दुर्लभ लक्ष्य बनाने वाले मानव ने अपने नैतिक चरित्र की रक्षा क्यों ना की ? सभी रचनाकारों को सस्नेह शुभकामनायें | आपको हार्दिक बधाई | सादर
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