सादर अभिवादन।
कल 5 अगस्त को
कविवर डॉ. शिवमंगल सिंह 'सुमन' की जयंती थी। आदरणीय सुमन जी का सादर स्मरण
करते हुए प्रस्तुत है उनकी एक रचना का अंश-
'कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा हुआ, तुम मिल गई
कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ,
राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है।'
आइये अब आपको आज की
पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
मैं तुम्हारी बेरुखी,
तुम्हारी बेमुरव्वती,
तुम्हारी बेदिली की
सूखी बेजान डालियों को थाम
तुम्हारी जड़ों तक पहुँचने की
एक निरर्थक कवायद कर रही हूँ !
घास उगी वन औ उपवन
गीले सूखे चहल पहल कुछ तेज हुई
हरा बिछौना कोमल तन की सेज हुई
दृश्य है कितना मन-भावन
घास उगी .
मुस्कुराहट
छलकी अनायास
सूर्य आभा के साथ
निर्विघ्न खुले
मन की देहरी के
सांकल चढ़े द्वार
एक घड़ा खटिया से दूर
दवाइयां अंगीठी में ऊंचाई पर
चश्मा भी इधर ही कहीं होगा
ये सब मेरी पहुँच से दूर
लेकिन मेरे लिए छोड़े।
गाँव ग़ुमराह हुए हमारे ,
रौनक लगे शहर की प्यारी,
खेतों के अश्रु झर रहे ,
सैर मार्किट में उगति फ़सलें सारी,
तोड़ इस का बतलाओ साधो !
गर्दिश में जनता सारी |
हम-क़दम के तेरासीवें (83 ) अंक का विषय है -
शर्त
इस विषय पर आप अपनी रचनाएँ
आगामी शनिवार 10 अगस्त 2019, सायं 3:30 बजे तक इसी ब्लॉग में बायीं ओर
निर्धारित संपर्क फ़ॉर्म के ज़रिए भेजिए।
इस विषय पर उदाहरण स्वरुप कविवर डॉ. धर्मवीर भारती जी की रचना 'ठंडा लोहा' का एक अंश प्रस्तुत है-
'मेरी स्वप्न भरी पलकों पर
मेरे गीत भरे होठों पर
मेरी दर्द भरी आत्मा पर
स्वप्न नहीं अब
गीत नहीं अब
दर्द नहीं अब
एक पर्त ठंडे लोहे की
मैं जम कर लोहा बन जाऊँ -
हार मान लूँ -
यही शर्त ठंडे लोहे की'
सौजन्य :कविता कोश'
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे आगामी गुरूवार की प्रस्तुति में।
रवीन्द्र सिंह यादव
शानदार प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंअप्रतिम रचनाएँ..
आभार...
सादर..
इस 1481वीं अंक की इंद्रधनुषी संकलन से भोर सज गया जैसे ...आगाज का सारगर्भित शीर्षक (एक घड़ा खटिया से दूर) से लेकर अंत (शर्त्त) की शर्त्त तक ... सब कुछ अचम्भित करता हुआ ... शुक्रिया रविन्द्र जी !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंवाह !बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सर 👌)
जवाब देंहटाएंआदरणीय कविवर डॉ.शिवमंगल सिंह 'सुमन'जी को शत शत नमन |बेजोड़ रचना से प्रस्तुति का प्रारभ, मुझे स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार आप का
सादर
कवि को शत-शत नमन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन
रविन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंइस हलचल के मंच से मुझे हमेशा सम्मान मिला है. इसके लिए इस मंच की पूरी टीम का मैं तहेदिल से आभार व्यक्त करता हूँ. उसी क्रम में आज फिर इस हलचल का शीर्षक मेरी कविता की एक पंक्ति को चूना गया है. फिर से आभार.
साधना जी का किसी की रूह बनने की कोशिश, 'जहाँ न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि' को सार्थक करते नासवा जी, किसी अनछुई स्थिति को शब्द देना कोई मीना जी के सेदोका से सीख सकता है, अनीता जी की चिंता समाज के लिए चिता भी है... सब शानदार और कमाल की रचना रहीं. आज का दिन बनाने के लिए हृदय तल धन्यवाद.
कविवर शिवमंगल सिंह सुमन को सादर नमन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई,सादर
वाह!!रविन्द्र जी ,सुंदर प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं"मैं बढ़ा ही जा रहा हूँ, पर तुम्हें भूला नहीं हूँ...
जवाब देंहटाएंचल रहा हूँ, क्योंकि चलने से थकावट दूर होती,
जल रहा हूँ क्योंकि जलने से तमिस्त्रा चूर होती"..
नमन शिव मंगल सिंह सुमन जी को ।
बहुत शानदार संकलन शिव मंगल सिंह सुमन जी की अप्रतिम कविता से शुरूआत सभी लिंक शानदार।
सभी रचनाकारों को बधाई।
सुनाम जी को नमन है ... उसकी रचनाएं पढ़ के बड़े हुए हैं हम ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल है ... आभार मेरी रचना को जगह देने के लिए आज ...
बहुत खूबसूरत हलचल
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत संकलन ...
जवाब देंहटाएंसंकलन में मेरे सृजन को मान देने के
लिए हृदय से सादर आभार ।
आजकल वैसे ही लोग सिर्फ अपनी हांकते दिखते हैं दूसरों की रचनाओं को पढ़ना धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। शायद ही कोई पोस्ट पूरी पढ़ी जाती हो ! जब तक आपस में कुछ आत्मीयता ना हो ! फिर भी कभी-कभी कोई रचना दिल को छू जाती है तो प्रशंसा करना जरुरी लगता है ! पर जब सामने वाले के दरवाजे पर ''approval'' की कुंडी लगी दिखती है तो झुंझलाहट और अपने पर ही कोफ़्त होने लगती है कि क्या जरुरत थी ख्वामखाह, एवंई किसी की हौसला अफजाई करने की ! उस समय ऐसा लगता है कि किसी ने बाहर ही रोक दिया हो और ''साहब'' को इत्तला करने गया हो..............इसीलिए आजकल पाठकों की राय मिलनी लगभग बंद हो चुकी है।
जवाब देंहटाएंएक बार आप यदि एक पोस्ट इस मुद्दे पर, अप्रूवल हटाने की विधि के साथ डाल दें तो हो सकता है कुछ फर्क पड़े। क्योंकि यह भी हो सकता है कि अधिकाँश को इसके बारे में पता भी ना हो।
गगन जी,
हटाएंनमस्कार।
आपके उपयोगी सुझाव में व्यंग के मिश्रित हो जाने से अब इसे ज़्यादा से ज़्यादा रचनाकार अपने संज्ञान में लेंगे।
इस विषय पर तकनीकी जानकारी के साथ शीघ्र ही एक लेख प्रकाशित करने का प्रयास किया जायेगा।
सादर आभार।
आपकी बात से सहमत हैं हम लेकिन असभ्य भाषा को कमेंट बनने से रोकने के लिए अप्रूवल लगाए जाते हैं।
हटाएंजो लेखक इसका शिकार हुए हैं उन के लिए अप्रूवल वरदान है।
रोहिताश जी आपके ब्लॉग पर अप्रूवल की अपेक्षा नहीं है | कृपया इसे हटाने के लिए सोचें जरुर |
हटाएंगगन जी, ब्लॉग पर पाठकों की उपस्थिति निश्चित रूप से कम होती जा रही है जो कहीं ना कहीं लेखन में उदासीनता भरती है | पर इसके कई कारण हो सकते हैं | जैसे कभी कभी व्यस्तता और कभी कभी ब्लॉग पर ना पहुँच पाना | लिंकों से जुड़कर रचनाएँ बड़े पाठक वर्ग तक पहुँच जाती हैं पर हर रचना तो लिंकों में नहीं आ पाती अतः वह पाठकों तक सही ढंग से नहीं पहुँच पाती | अप्रूवल पर आपकी बात से सहमत हूँ | किसी साहित्यिक ब्लॉग पर अशिष्ट टिप्पणी की संभावना कम होती है , राजनीतिक विषयों पर तो लोग लिख भी देते हैं शायद पर मैंने कोई ऐसी टिप्पणी नहीं पढ़ी , क्योकि मैं तो साहित्यिक ब्लॉग ही देखती हूँ | हाँ fb पर मैंने देखा लोग साहित्यिक विषयों पर भी सीमायें लांघ जाते हैं |
हटाएंइसके साथ कई ब्लॉग पर पाठकों को एक शब्द आभार तक नजर नहीं आता | भले एक ही बार में करें सभी का आभार बनता है | जिस इन्सान ने हमारी रचना पर पहुंचकर उसका मान बढ़ाया , दो शब्द लिखने का शिष्टाचार जरूरी है | साहित्य की शोभा शिष्टाचार और शालीनता से द्विगुणित हो जाती है | आपका आभार आपके माध्यम से मुझे भी अपनी बात कहने का अवसर मिला |
मैं भी गगन जी से पूर्ण सहमत हूं और सैकड़ों बार इस कोफ्त का शिकार हो चुकिज्ञहूं मुझे ब्लाग जगत पर इस तरह की बंदिश का औचित्य आज तक समझ नहीं आया हम रचनाओं पर प्रतिक्रिया देकर भी उसका सही आनंद नहीं ले पाते ।
जवाब देंहटाएंसादर
कृपया हो चुकी पढ़ें।
हटाएंआदरणीय शिवमंगल सिंह सुमन जी को सादर नमन
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...
बहुत खूबसूरत सूत्रों से सजी आज की हलचल ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवीन्द्र जी , सार्थक प्रस्तुति के लिए सादर आभार | साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर आदरणीय शिवमंगल जी 'सुमन ' की पुण्य स्मृति को कोटि नमन | प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ी उनकी अत्यंत प्रसिद्ध और स्वाभिमान का उद्गोष करती रचना किसे याद ना होगी --
जवाब देंहटाएंहम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाऍंगे
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाऍंगे ।
हम बहता जल पीनेवाले
मर जाऍंगे भूखे-प्यासे
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से ।
स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
सह्तीय के पुरोधा का स्मरण कराने के लिए साधुवाद | आजके लिंक हमेशा की तरह बहुत शानदार हैं | सभी रचनाकारों को शुभकामनायें | सादर
बेहतरीन रचनाओं के साथ बेहतरीन प्रस्तुति। वैसे तो सभी रचनाएँ सराहनीय है पर जो रचना मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया वो है-
जवाब देंहटाएं"तोड़ इस का बतलाओ साधो !......... अनीता सैनी"
किसानी और किसान के स्थिति की ओर ध्यान आकर्षित करती रचना....जिसे हम चकाचौंध में नजरअंदाज कर देते हैं।
बहुत सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंवाह, क्या बात है, बहुत प्यारे कलेक्शन।
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