।।मांग्यलयम् सुप्रभात।।
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होने लगा मौसम का असर
रंगीली रंगों का अब है बसर..
जी, हाँ..
बातें रंगों की और होली की जिक्र भी न हो..तो फिर गौर फरमाइए इस शेर पे..
"गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले"
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
रंगों के कारोबार को समेटते हुए नज़र डाले चुनिंदा लिंकों पर..✍
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"मेरी बातें " से आनन्द ले..
मैं थोड़ी जल्दीबाज़ी में था
पर किसी दोस्त ने अविराम
ठहरने को कहा
उसकी बातों ने
मेरी बेचैनी शांत कर दी ,
अपने पिछले कदमों को
देखने लगा
अपनी अगली कदमों को
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किसी शायर ने ठीक ही कहा है-
ज़िंदगी क्या है
फ़कत मौत का टलते रहना.
वक़्त कई बार इसका एहसास भी करा देता है. सांसे कब, किसकी कितनी देर टिकी रहेंगी
इसका अंदाज़ा न सांस लेने वाले को होता है न ही साथ रहने वाले को.
इसका अंदाज़ा न सांस लेने वाले को होता है न ही साथ रहने वाले को.
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(डिस्क्लेमर:- यह एक व्यंग रचना है और यह पूरी तरह से काल्पनिक, मनगढ़ंत और एक गधा के द्वारा ही लिखा गया है। इसका किसी भी राजनीतिक व्यक्ति, पार्टी अथवा समर्थक से कोई सरोकार नहीं है। यदि किसी भक्तिभाव में डूबे व्यक्ति को इस पर आपत्ति हो तो हमें सूचित करें इसे तुरंत डिलीट कर दिया जाएगा)
सुनो केजरीवाल, तुम
अभी भी गधा के गधा ही हो! पता नहीं आदमी कब बनोगे? जब तक आदमी नहीं
बनोगे तब तक तुम को आदमी बनाने के लिए भरपूर कोशिश होती रहेगी।
यदि तुम आदमी होते तो यह बात समझ में आ जाती कि आदमी होने के बहुत
सारे फायदे हैं और गधा होना बहुत ही हानिकारक। तुम इतनी
भी बात क्यों नहीं
अभी भी गधा के गधा ही हो! पता नहीं आदमी कब बनोगे? जब तक आदमी नहीं
बनोगे तब तक तुम को आदमी बनाने के लिए भरपूर कोशिश होती रहेगी।
यदि तुम आदमी होते तो यह बात समझ में आ जाती कि आदमी होने के बहुत
सारे फायदे हैं और गधा होना बहुत ही हानिकारक। तुम इतनी
भी बात क्यों नहीं
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मन पाए विश्राम जहाँ से सुंंदर अभिव्यक्ति..
पा संदेसा इक अनजाना,
नयन टिके हैं श्वास थमी सी
एक पाहुना आने वाला !
रुकी दौड़ तलाश हुई पूर्ण
आनन देख लिया है किसका,
निकला अपना.. पहचाना सा
जाने कैसे बिछड़ गया था !
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जिन्दगी को हमने यूँ मुख़्तसर कर लिया
चन्द सिक्कों में ही जीवन बसर कर लिया।
औरों की हंसी में ही छुपी है खुशी अपनी
गैरों के दर्द से आंखों में आंसू भर लिया।
फूल ही नही, कांटों से भी निबाह है अपनी
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सोये भाव जगा गया आज ।
हुआ सिंदूरी क्षितिज का अंचरा
नीले नभ मैं फैल गया
यादो की ठप्पे दार चुनरिया
पवन उड़ा कर खोल गया ।
फाग-फुहारों की बधाइयां
मिलते है नई प्रस्तुति के साथ
अगले सप्ताह तब तक के लिए..
।।इति शम।।
धन्यवाद