निवेदन।


फ़ॉलोअर

सोमवार, 3 मार्च 2025

4416 ...सखि वसन्त आया । भरा हर्ष वन के मन, नवोत्कर्ष छाया

 सादर अभिवादन

आगाज़
निराला जी की पंक्तियों से
सखि वसन्त आया ।
भरा हर्ष वन के मन,
नवोत्कर्ष छाया ।

किसलय-वसना नव-वय-लतिका
मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका,
मधुप-वृन्द बन्दी--
पिक-स्वर नभ सरसाया ।

लता-मुकुल-हार-गंध-भार भर,
बही पवन बंद मंद मंदतर,
जागी नयनों में वन-
यौवन की माया ।

आवृत सरसी-उर-सरसिज उठे,
केशर के केश कली के छूटे,

स्वर्ण-शस्य-अंचल
पृथ्वी का लहराया ।

रचनाएं देखें




ऐसे में मुझे
न जाने क्यों
बेसबब याद आती है बारिश ,
जिसमें घुल जाती हैं
अश्क की बूंदे
जिन्हें लोग अक्सर
बारिश में भीगी
खुशी समझते हैं।






मेरे मन ने प्रश्नों की बौछार से परेशान कर रखा है-
- वे लड़े क्यों नहीं?
- क्या वे आधुनिक लिबास में साधु थे ?
- क्या वे पूर्व परिचित थे ?
- क्या मालिक कोअपनी गाड़ी खुद पसन्द नहीं थी कि ठुक गई तो ठुकने दो …!
- तगड़ा इन्श्योरेंस होगा ?
-क्या वो दब्बू व डरपोक आदमी थे जो लड़ने में डर रहे थे ?
- क्या वे सज्जन किसी दुश्मन की गाड़ी उधार पर लाए थे ?……वगैरह…वगैरह…!



होली करीब है
तीन टायलेटी चुटकले





अल्लाह जाने मैं हूं कौन क्या है मेरा नाम


आज बस
सादर वंदन

रविवार, 2 मार्च 2025

4415 ...अपनी सार्थकता की तलाश जारी है ।

सादर अभिवादन

रविवार

आज से रमजान का महीना शुरु
रमजान इस्लाम धर्म का एक ऐसा पवित्र महीना है 
जो मुस्लिम समुदाय के लिए 
बहुत खास है. यह इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना है,
जहां लोग रोजा यानी उपवास रखते हैं 
और अपना समय इबादत में बिताते हैं.

रचनाएं देखें


गिरिजा कुलश्रेष्ठ
जीवन के छह दशक पार करने के बाद भी खुद को पहली कक्षा में पाती हूँ ।अनुभूतियों को आज तक सही अभिव्यक्ति न मिल पाने की व्यग्रता है । दिमाग की बजाय दिल से सोचने व करने की आदत के कारण प्रायः हाशिये पर ही रहती आई हूँ ।फिर भी अपनी सार्थकता की तलाश जारी है ।



केवल दूरी नहीं काफी
दूरियों के लिये .
नज़दीक होकर भी
बढ़ जाती हैं ,दूरियाँ  
जब होती है बीच में ,
व्यस्त चौड़ी सड़कें .
सड़कों पर अविराम यातायात...


अनुपमा त्रिपाठी
एम् .ए(अर्थशास्त्र)में किया.(महाविद्यालय)में पढ़ाया .आकाशवाणी में गाया और फिर सब सहर्ष छोड़ गृहस्थ जीवन में लीन हो गई .अभी भी लीन हूँ किन्तु कुछ मन में रह गया था जो उदगार पाना चाहता था .अब जब से लिखने लगी हूँ पुनः गाने लगी हूँ ...मन प्रसन्न रहता है .परिवार ...कुछ शब्द और एक आवाज़ .....बस यही परिचय है ....आप सभी मित्रों से स्नेह की अभिलाषा है .....




कह तो लूँ .....
पर कोयल की भांति कहने का ...
अपना ही सुख है ...

बह तो लूँ ......
पर नदिया की भांति बहने का .....
अपना ही सुख है ...



रश्मि प्रभा
मेरे एहसास इस मंदिर मे अंकित हैं...जीवन के हर सत्य को मैंने इसमें स्थापित करने की कोशिश की है। जब भी आपके एहसास दम तोड़ने लगे तो मेरे इस मंदिर में आपके एहसासों को जीवन मिले, यही मेरा अथक प्रयास है...मेरी कामयाबी आपकी आलोचना समालोचना मे ही निहित है...आपके हर सुझाव, मेरा मार्गदर्शन करेंगे...इसलिए इस मंदिर मे आकर जो भी कहना आप उचित समझें, कहें...ताकि मेरे शब्दों को नए आयाम, नए अर्थ मिल सकें ...



मैं एक माँ हूँ
जिसके भीतर सुबह का सूरज
सारे सिद्ध मंत्र पढता है
मैं प्रत्यक्ष
अति साधारण
परोक्ष में सुनती हूँ वे सारे मंत्र  ...
ॐ मेरी नसों में
रक्त बन प्रवाहित होता है
आकाश के विस्तार को
नापती मापती मैं
पहाड़ में तब्दील हो जाती हूँ


और अंत में मेरे ब्लॉग से दो रचनाएं



वही कृष्ण राधा बन डोले
प्रेम रसिक बन अंतर खोले
मीरा की वीणा का सुर वह
बिना मोल के कान्हा तोले !

बालक,  युवा, किशोर, वृद्ध हो
हुआ प्रेम से ही पोषित उर  
हर आत्मा की चाहत प्रेम
खिलती भेंट प्रीत की पाकर  !



रखता तीन गुणों को वश में  
मन अल्प, चंद्रमा लघु धारे,
मेधा बहती गंगधार में
भस्म काया पर, सर्प धारे !

नीलगगन सी विस्तृत काया
व्यापक धरती-अंतरिक्ष में,  
शिव की महिमा शिव ही जाने
शक्ति है अर्धांग  में जिसको !

अनीता कथन-
यह अनंत सृष्टि एक रहस्य का आवरण ओढ़े हुए है, काव्य में यह शक्ति है 
कि उस रहस्य को उजागर करे या उसे और भी घना कर दे! 
लिखना मेरे लिए सत्य के निकट आने का प्रयास है.


आज बस
वंदन

शनिवार, 1 मार्च 2025

4414, हे अखंड शिव आनंद वेश

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया भारती दास जी की रचना से।

सादर अभिवादन।

आइए पढ़तेे हैं आज की पाँच चुनिंदा रचनाएँ-
*******


*****

आस्था की डुबकी

सुना है सामूहिक भक्ति में बहुत शक्ति होती है तो उस समूह में शामिल होने गए थे। तुमको कहना है भेड़चाल तो कहते रहो, हमें क्या फर्क पड़ता हैहमने देखा वहाँ जाकर अपार सकारात्मक ऊर्जा का सैलाब, जाग्रत चेतना का प्रकाश, भक्ति, तप, समानता का माहौल , जहाँ न कोई अमीर था न गरीब, न जात न पाँत , उत्साह, सनातन की ताकत, तप की प्रबलता। दूर शहरों, गांव देहात से पधारे अनगिनत लोग। न थकन , न कमजोरी, न भूख न प्यास बस एक ही धुन चरैवेतिचरैवेतिहर हर गंगेहर हर महादेव का जयघोष …🙏

*****

हे अखंड शिव आनंद वेश




भावमयी प्रतिमा की माया

भक्त नेत्रों से रहे निहार

युगल-चरण की शक्ति साधना

प्राणों को देते आधार।

हे सर्वमंगले हे प्रकाशपूंज

करते हैं नमन पद में वंदन

हे अखंड शिव आनंद वेश

कर मोह नाश, कर पाप शमन।

*****

हिंदी का विस्तार और उसकी विसंगतियाँ

आज हिंदी मुंबई, बेंगलुरु और हैदराबाद में बोली जा रही है और हैरत नहीं होगी कि अगले कुछ वर्षों में चेन्नई में भी सड़कों पर उसे बोलने-समझने वाले मिलें। इसकी वजह है वे प्रवासी कामगार, जो अपना घर छोड़कर इन दूरदराज इलाकों में काम करने जाते हैं। हिंदी-क्षेत्र के लोगों की भी कुछ जिम्मेदारियाँ बनती हैं। उन्होंने ज्ञान-विज्ञान, कला-संस्कृति और सामान्य ज्ञान के विषयों की जानकारी के लिए अंग्रेजी का पल्लू पकड़ लिया है। अधकचरी अंग्रेजी का।

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...