यहां जो भी है सब खो जाता है। यहां जो भी है खोने को ही है यहां मित्रता खो जाती है, प्रेम खो जाता है; धन पद, प्रतिष्ठा खो जाती है। यहां कोई भी चीज जीवन को भर नहीं पाती; भरने का भ्रम देती है, आश्वासन देती है, आशा देती है। लेकिन सब आशाएं मिट्टी में मिल जाती हैं, और सब आश्वासन झूठे सिद्ध होते हैं। और जिन्हें हम सत्य मानकर जीते हैं वे आज नहीं कल सपने सिद्ध हो जाते हैं। जिसे समय रहते यह दिखाई पड़ जाए उसके जीवन में क्रांति घटित हो जाती है। मगर बहुत कम हैं सौभाग्यशाली जिन्हें समय रहते यह दिखाई पड़ जाए। यह दिखाई सभी को पड़ती है, लेकिन उस समय पड़ता है जब समय हाथ में नहीं रह जाता। उस समय दिखाई पड़ता है जब कुछ किया नहीं जा सकता। आखिरी घड़ी में दिखाई पड़ता है। श्वास टूटती होती है तब दिखाई पड़ता है। जब सब छूट ही जाता है हाथ से तब दिखाई पड़ता है। लेकिन तब सुधार का कोई उपाय नहीं रह जाता। जो समय के पहले देख लें, और समय के पहले देखने का अर्थ है, जो मौत के पहले देख लें। मौत ही समय है।
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
निवेदन।
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सोमवार, 31 मार्च 2025
4444 ,, जो समय के पहले देख लें, और समय के पहले देखने का अर्थ है
रविवार, 30 मार्च 2025
4443 ..माता रानी राजित है आज से
सादर अभिवादन
शुभ प्रभात
तो चलिए चलें
माता रानी राजित है आज से
रचनाएं देखें
वर्ष का पहला दिन
2082 सिध्दार्थी संवत
होते हैं रचनाओं से रूबरू
बिच्छू की चाय .. आय हाय
( पढ़िए पूरी रिपोर्ट )
ये इक टूटा जाम है
ईंटों की धड़कनों में मगर और नाम है.
किराए की कोख

महिला ठठा कर हँस पड़ी, “हमारा शरीर तो है ही किराए की कोख बहू जी ! किरायेदारों से कैसा मोह ! यह कोई पहला बच्चा थोड़े ही है ! पहले भी तीन बच्चे पैदा करके सौंप चुके हैं उनके माँ बाप को ! हाँ किराया अच्छा देना पड़ता है ! सो तो तुम्हें बता ही दिया होगा मिश्रा मैडम ने !” वह नज़रों में प्रियांशी की औकात को तोल रही थी और प्रियांशी हतप्रभ सी उसे देख रही थी !
पल-पल बरसे वह चाहत है

महिमावान नहीं वह केवल
माधुर्य से ओतप्रोत है,
करुणावान नहीं दिल उसका
अतिशय स्नेह से युक्त भी है !
कहा गए है पद्य
छंदों से है हुआ विसर्जन
कविता सर्वोत्तम
सृजन से हर प्यास बुझी है
पद्य है सर्वोत्तम
कविता अब उन्मुक्त हुई
कवित हुआ गद्य
जोरो से खूब शोर हुआ
कहा गए है पद्य
*****
आज बस
सादर वंदन
शनिवार, 29 मार्च 2025
4442 ...इस संवत का नाम सिद्धार्थी संवत होगा
सादर अभिवादन
शुक्रवार, 28 मार्च 2025
4441...मृगतृष्णा का आभास
मृगतृष्णा का आभास
अथाह बालू के समन्दर में ही नहीं होता
कभी-कभी हाइवे की सड़क पर
चिलचिलाती धूप में भी
दिख जाता है बिखरा हुआ पानी
बस…,
मन में प्यास की ललक होनी चाहिए
निःशब्द कर जाता है फिर से दर्पण का
सवाल, अस्तगामी सूर्य के साथ
डूब जाता है विगत काल ।
आदिम युग से बहुत
जल्दी लौट आता
है अस्तित्व
मेरा
गुरुवार, 27 मार्च 2025
4440...हम जल्दी अइबे तेरी नगरी...
शीर्षक पंक्ति: आदरणीय अशर्फी लाल मिश्र जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
हर कोई बचन था माँग रहा,
फिर कब अइहौ मोरी नगरी।
प्रेमाश्रु टपक रहे अंखियन से,
हम जल्दी अइबे तेरी नगरी।।
ख़्वाब इश्क़ के जब भी देखना चाहो
दिल को धप्पा, दुनिया कम-ज़र्फ़ देती है।
सीले मन के आहातों में अंधेरा कर;
बे-वफ़ाई मोहब्बत का रंग ज़र्द देती है।
*****
नव प्रकाश से आलोकित हो जगती सारी । नव
संवत्सर।
गढ़े संवारे नवराष्ट्र
आप सुखमय हो
यह समाज सुखमय हो
यही शुभेच्छा हमारी
नव प्रकाश से आलोकित
हो जगती सारी
*****
हवाओं में एक खुनक थी
और तुमने मेरी देह पर
ख़ामोशी की चादर लपेट थी
तुम्हारी आँखों से सारा अनकहा
मनोकामिनी की ख़ुशबू सा झर उठा था
*****
बुधवार, 26 मार्च 2025
4439..तुम कह देना..
।।प्रातःवंदन।।
देख रहे क्या देव, खड़े स्वर्गोच्च शिखर पर
लहराता नव भारत का जन जीवन सागर?
द्रवित हो रहा जाति मनस का अंधकार घन
नव मनुष्यता के प्रभात में स्वर्णिम चेतन!
सुमित्रानंदन पंत
आज की पेशकश में शामिल रचनाए..✍️
लौट आता हूं मैं अक्सर
उन जगहों से लौटकर
सफलता जहां कदम चूमती
है दम भरकर
शून्य से थोड़ा आगे
जहां से पतन हावी
होने लगता है मन पर..
✨️
जूडिशियरी में बहुत पुराना है अंकल जज सिंड्रोम, जस्टिस वर्मा विवाद के बाद फिर छिड़ी बहस..
दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से 14 मार्च 2025 को करोड़ों रुपए के अधजले नोट बरामद होने के बाद अंकज जज सिंड्रोम एक बार फिर बहस का केंद्र बन ..
✨️
एक गौरैया थी, जो उड़ गई,
एक मनुष्य था, वह खो गया।
तुम तो कह देना
इस बार,
कुछ भी कह देना,
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कोई तो उस तरह से अब मेरे करीब नही,
कोई शिकवा कोई शिक़ायत कोई उम्मीद नही,
बस मुलाक़ात से बढ़कर हमे कोई चीज़ नही,
✨️
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️
मंगलवार, 25 मार्च 2025
4438...आत्मा का चरम संगीत
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
अधमाः धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमाः!उत्तमाः मानमिच्छन्ति मानो हि महताम् धनम् !!
हिन्दी अर्थ : निम्न कोटि के लोगो को सिर्फ धन की इच्छा रहती है, ऐसे लोगो को सम्मान से मतलब नहीं होता. एक मध्यम कोटि का व्यक्ति धन और सम्मान दोनों की इच्छा करता है वही एक उच्च कोटि के व्यक्ति के सम्मान ही मायने रखता है. सम्मान धन से अधिक मूल्यवान है।
असली प्रश्न यह नहीं कि मृत्यु के बाद
जीवन का अस्तित्व है कि नहीं,
असली प्रश्न तो यह कि
क्या मृत्यु के पहले तुम
जीवित हो?
गुलमोहर की टहनियों में
कोई चिड़िया ।
गाती है आत्मा का चरम संगीत
प्रेम तोड़ता नहीं , जोड़ता है परम से .
मनाती है आनन्द का उत्सव ,
अपने आप में डूबी हुई
एक उम्रदराज स्त्री ,
जब होती है किसी के प्रेम में ,
गाती गुनगुनाती हुई
उम्र की तमाम समस्याओं को
झाड़कर डाल देती है डस्टबिन में ।
खेत में जाकर उसे निहारना,
उसकी मिटटी को सूँघना,
मेड पर बैठकर, दूब को नोचना
और कभी-कभी
मुंह में रखकर चबाना;
और महसूस करना उसका स्वाद,
यह भी मेरे लिए जरूरी काम है !
मिलते हैं अगले अंक में।