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मंगलवार, 24 दिसंबर 2024

4347...फटी एड़ियों वाली स्त्रियों

 मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।

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समय के नाजुक डोर से
लम्हा बेआवाज़ फिसल रहा हैं,
जाने अनजाने- गुज़रते पलों पर
आवरण इक धुंधला सा चढ़ रहा है;
तारीखों के आख़िरी दरख़्त से 
जर्द दिसंबर टूटने को मचल रहा है।

आज की रचनाएँ-


सजी वसुधा
ओढ़ हरी चूनर
मोतियों जड़ी 

लुटाता चाँद
रुपहले माणिक
दोनों हाथों से



फटी एड़ियों वाली स्त्री के हाथ भी 
होते हैं अमूमन खुरदुरे 
नाखून होते हैं घिसे 
जिस पर महीनों पहले चढ़ा नेलपेंट 
उखड़ चुका होता है 
उसकी उँगलियों में भी दिखती है दरारें 
जो सर्दियों में अक्सर बढ़ जाती है 
लेकिन वह इसकी फिक्र ही कहाँ करती 
या फिर कर ही नहीं पातीं 





ख़ुद ही खुद से बात करते हुए
कुरेदता हूॅं अपने ज़ख्म 
मरहम भी लगाता हूॅं अपने ही हाथों
सोचता हूॅं मैंने क्यों अपना हक़ नहीं छीनना सीखा,
क्यों नहीं कहा कि मेरा भी एक परिवार है खेती भरोसे 
मेरे बाल-बच्चों के तन पर भी पेट है 
जिसकी तस्वीर टाइम्स मैगजीन के मुखपृष्ठ पर छपती है
यदाकदा 
मैंने नहीं कहा कि किसान औरतें 
एक साड़ी में गुजार देती हैं दो-तीन वर्ष
खीझ तो होती है जब कोई नायिका स्क्रीन से बाहर आकर 
पत्नी से पूछती है 
मेरी साड़ी तुम्हारी साड़ी से सफेद क्यों?
जबकि मैंने उससे कभी नहीं कहा 
कि फास्फोरस से नहीं 
अपनी हड्डियां घोलने से बनते हैं 
अन्न के दाने चमकदार।



शब्दों से क्यों बोल रहा , तू कर्मों से बोल
जिसके जीवन ध्येय रहा ,उसका पल अनमोल

अंधे के दिन रात नहीं, मूक क्या करता बात 
आलस जिसमें व्याप्त रहा वह तो है बिन हाथ 





विधि अपनी नौकरी छोड़कर गाँव चली गई, वहीं पर उसने बेटे को जन्म दिया। उसको यह नहीं पता था कि अंशुल का परिवार एक बहुत दकियानूसी परिवार है। इसीलिए दकियानूसी के चलते विधि को सामंजस्य बिठाने में परेशानी आने लगी। उसने अपने पिता को बुलाया उसके सारे हालत देखते हुए उसके पिता ने विधि को अपने साथ ले जाने का प्रस्ताव रखा, जो उसके सास ससुर को अच्छा नहीं लगा। गाँव में कुछ दिन रहने की बात तो सही थी, लेकिन लंबे समय तक रहना उसके लिए संभव नहीं था और वह अपने पिता के साथ अपने घर आ गई। अंशुल के घर वालों ने अंशुल से क्या? 


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आप सभी का आभार।
आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

3 टिप्‍पणियां:

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