तू चाहता है
मैं तुझे पढ़ूँ
इसीलिए तूने
मेरे हाथों में किताबें थमा दीं
तू चाहता है
मैं तुझे लिखूँ
इसीलिए तूने
मेरे जीवन में चाहत भर दी
शौर्य का टीका सजा ललाट पर
गौरव गीता गाता विराट स्वर
प्रेम का परिचय देता पथ पर
स्वागत करता हृदय मंच पर।
वे झुके नहीं थे ,नहीं थे कायर
देश धर्म पर शीश कटाकर
बलिदान हुये थे तेग बहादुर
वे वीर रत्न है आज धरोहर।
कई ख्वाब आँखों में सजाये रखती है
तिवारी जी का जिंदगी के प्रति नजरिया एकदम साफ था। उनका शुरू से मानना रहा की अगर जीवन में आप अपना उद्देश्य जानते हैं तो सफलता जरूर हाथ लगेगी। तिवारी जी का उद्देश्य एकदम स्पष्ट था। जब तक पिता जी की नौकरी और फिर पेंशन आएगी तब तक तो उनके भरोसे चल लेंगे और जल्दी शादी करके पिता जी के गुजरने के पहले अपने बच्चों को इतना बड़ा कर लेंगे ताकी वो कमाने लगें तो बाकी की जिंदगी उनके भरोसे चल जाएगी।
मिलते हैं अगले अंक में।
सुप्रभात।
जवाब देंहटाएंसुंदर पठनीय रचनाएँ।
ग़ज़ब
जवाब देंहटाएंवंदन
यूँ तो कोई भी फर्क नहीं पड़ता
जवाब देंहटाएंमेरे यहाँ होने या न होने से...वैसे तो इस दुनिया में किसी को भी किसी के होने या न होने से क्या फ़र्क़ पड़ता है, पर आपके यहाँ होने से हमें तो बहुत फ़र्क़ पड़ा, 'मन पाये विश्राम जहां 'को आज के अंक में शामिल कर आपने पाठकों तक उसकी पहुँच बढ़ा दी, बहुत बहुत आभार !
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
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