वह चाहे तो उड़ सकता है
पिंजरा खुला है
हर बंधन ढीला है
एक भ्रम है
स्वतंत्र है हर आत्मा
स्वतंत्रता उसका
जन्मसिद्ध अधिकार है !
चाहे समर भूमि में धधकता शोला हाहाकार रहे
युद्धाय कृत निश्चय: आदर्श सर माथे पर रखता है
बद्री विशाल लाल की जय का, जय घोष करता है
रेड लाईन यार्ड वर्दी धारी औरों से जो परे पहचान है
भारतमाता की शान है जो, वो वीर गढ़वाली जवान है ।
द्वार आशा के सब बंद यों हो गये
निर्गत काव्य से छंद ज्यों हो गये
मुँह के बल गिरती जाती रही कोशिशें
जो भी अच्छा किये दण्ड क्यों हो गये
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द्वार आशा के सब बंद हो गए
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक
आभार
सादर वंदन
बहुत बढ़िया चयन आज का।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात ! मार्मिक भूमिका और पठनीय सूत्रों का चयन, आभार श्वेता जी !
जवाब देंहटाएंश्वेता जी मेरी रचना का चयन करने के लिए हृदय से आभार…पठनीय अंक…सभी रचनाकारों को बधाई 🙏
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