शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अनीता जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में आज पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
महज़ एक वार्तालाप ?
समझने, समझाने का माध्यम ?
या आने वाले सन्नाटे कि और बढ़ता, एक कदम ...
सूरज किसका चांद किसका
जो रेत सा अस्थिर है डांवाडोल है
जो रेत सा अस्थिर है डांवाडोल है
मोह बाँधता है, जकड़ता है
वरना तो टिकेगा कैसे
प्रेम मुक्त करता है, पंख देता है
ईसा ने कहा था
ईश्वर प्रेम है ज़िन्दगी दे उम्मीद
रिश्ते प्यार के बन भी जाये कभी विषाक्त
दोस्ती के नाम से हुतात्मा निरर्थक है दोस्त !
ज़िन्दगी है जब तक तू जीवित है फ़िज़ा
मरकर भी क्या कोई जी सका है यहाँ !!
मैं
किन्तु मुझे
सदा यह
भय लगा
रहता है
कि कहीं
ऊँची उड़ान
भरने हेतु
तुम्हारे पर न
निकला जाए और
काम 1760 फिर भी शादी के लाले पड़े हैं
थोड़ी देर यूँ ही इधर-उधर की बातें चली। हमने भी सोचा रविवार की अवकाश भी है इसलिए हम भी उनके साथ निकल पड़े। इस विषय में दिमाग हमेशा उलझता रहता है कि आजकल अच्छे खासे पढ़े-लिखे होने के बाद भी अच्छी नौकरी और घर परिवार के चक्कर में लड़के-लड़कियों की शादी की उम्र निकलती चली जाती है लेकिन रिश्ते पक्के नहीं हो पा रहे हैं। फिलहाल आपको बताती चलूँ कि हमारे इस चिर-परिचित शैलू भैया जिसकी उम्र 32 पार हो गई है और जो एम.कॉम, पीजीडीसीए, सीपीसीटी पास हैं, योगा में डिप्लोमा किये हैं, जिनकी अभी चार माह पूूर्व ही सरकारी नौकरी लगी है, फिर भी लड़की नहीं मिल पा रही है या लड़की वाले लड़की देने के लिए तैयार नहीं हो पा रहे हैं, जिसके लिए लड़की ढूंढने में हम भी जी-जान लगाने में पीछे नहीं है, जिनका तकिया कलाम 1760 काम हैं मेरे पास.......
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
Sunder prastuti
जवाब देंहटाएंसुप्रभात ! नव वर्ष के लिए अग्रिम शुभकामनाएँ ! पठनीय रचनाओं के सूत्र, आभार !
जवाब देंहटाएंसुंदर हलचल आभार मुझे आज की हलचल में शामिल किया आपने
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